महाभारतम्-01-आदिपर्व-022
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सर्पौर्मातृवचनादुच्चैःश्रवःपुच्छवेष्टनम्।। 1 ।।
सौतिरुवाच। | 1-22-1x |
नागाश्च संविदं कृत्वा कर्तव्यमिति तद्वचः। निःस्नेहा वै दहेन्माता असंप्राप्तमनोरथा।। | 1-22-1a 1-22-1b |
प्रसन्ना मोक्षयेदस्मांस्तस्माच्छापाच्च भामिनी। कृष्णं पुच्छं करिष्यामस्तुरगस्य न संशयः।। | 1-22-2a 1-22-2b |
`इति निश्चित्य ते तस्य कृष्णा वाला इव स्थिताः।' एतस्मिन्नन्तरे ते तु सपत्न्यौ पणिते तदा।। | 1-22-3a 1-22-3b |
ततस्ते पणितं कृत्वा भगिन्यौ द्विजसत्तम। जग्मतुः परया प्रीत्या परं पारं महोदधेः।। | 1-22-4a 1-22-4b |
कद्रूश्च विनता चैव दाक्षायण्यौ विहायसा। आलोकयन्त्यावक्षोभ्यं समुद्रं निधिमम्भसाम्।। | 1-22-5a 1-22-5b |
वायुनाऽतीव सहसा क्षोभ्यमाणं महास्वनम्। तिमिंगिलसमाकीर्णं मकरैरावृतं तथा।। | 1-22-6a 1-22-6b |
संयुतं बहुसाहस्रैः सत्वैर्नानाविधैरपि। घोरर्घोरमनाधृष्यं गम्भीरमतिभैरवम्।। | 1-22-7a 1-22-7b |
आकरं सर्वरत्नानामालयं वरुणस्य च। नागानामालयं चापि सुरम्यं सरितां पतिम्।। | 1-22-8a 1-22-8b |
पातालज्वलनावासमसुराणां तथालयम्। भयंकराणां सत्त्वानां पयसो निधिमव्ययम्।। | 1-22-9a 1-22-9b |
शुभ्रं दिव्यममर्त्यानाममृतस्याकरं परम्। अप्रमेयमचिन्त्यं च सुपुम्यजलसंमितम्।। | 1-22-10a 1-22-10b |
महानदीभिर्बह्वीभिस्तत्र तत्र सहस्रशः। आपूर्यमाणमत्यर्थं नृत्यन्तमिव चोर्मिभिः।। | 1-22-11a 1-22-11b |
इत्येवं तरलतरोर्मिसंकुलं ते गम्भीरं विकसितमम्बरप्रकाशम्। पातालज्वलनशिखाविदीपिताङ्गं गर्जन्तं द्रुतमभिजग्मतुस्ततस्ते।। | 1-22-12a 1-22-12b 1-22-12c 1-22-12d |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि द्वाविंशोऽध्यायः।। 22 ।। |
1-22-1 संविदं मिथ आलोचनम्।। 1-22-3 पणिते पणं कृत वत्यौ।। 3 ।। द्वाविंशोऽध्यायः।। 22 ।।
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