महाभारतम्-01-आदिपर्व-259
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पुत्रांश्चन्तयन्तं मन्दपालं प्रति लपितायाः सासूयवचनम्।। 1 ।।
अग्निशान्त्यनन्तरं आत्मदिदृक्षयाऽऽगतं मन्दपालं प्रति भार्यया पुत्रैश्च उपालम्भः।। 2 ।।।
वैशंपायन उवाच। | 1-259-1x |
मन्दपालोऽञपि कौरव्यं चिन्तयामास पुत्रकान्। उक्त्वाऽपि च स तिग्मांशुं नैव शर्माधिगच्छति।। | 1-259-1a 1-259-1b |
स तप्यमानः पुत्रार्थे लपितामिदमब्रवीत्। कथं नु शक्ताः शरणे लपिते मम पुत्रकाः।। | 1-259-2a 1-259-2b |
वर्धमाने हुतवहे वाते चाशु प्रवायति। असमर्था विमोक्षाय भविष्यन्ति ममात्मजाः।। | 1-259-3a 1-259-3b |
कथं त्वशक्ता त्राणाय माता तेषां तपस्विनी। भविष्यति हि शोकार्ता पुत्रत्राणमपश्यती।। | 1-259-4a 1-259-4b |
कथमुड्डीयनेऽशक्तान्पतने च ममात्मजान्। सन्तप्यमाना बहुधा वाशमाना प्रधावती।। | 1-259-5a 1-259-5b |
जरितारिः कथं पुत्रः सारिसृक्कः कथं च मे। स्तम्बमित्रः कथं द्रोणः कथं सा च तपस्विनी।। | 1-259-6a 1-259-6b |
लालप्यमानं तमृषइं मन्दपालं तथा वने। लपिता प्रत्युवाचेदं सासूयमिव भारत।। | 1-259-7a 1-259-7b |
न ते पुत्रेष्ववेक्षाऽस्ति यानृषीनुक्तवानसि। तेजस्विनो वीर्यवन्तो न तेषां ज्वलनाद्भयम्।। | 1-259-8a 1-259-8b |
त्वयाऽग्नौ ते परीताश्च स्वयं हि मम सन्निधौ। श्रुतं तथा चेति ज्वलनेन महात्मना।। | 1-259-9a 1-259-9b |
पलो न तां वाचमुक्त्वा मिथ्या करिष्यति। न्धुकृत्ये न तेन ते स्वस्थ मानसम्।। | 1-259-10a 1-259-10b |
तामेव तु ममामित्रां चिन्तयन्परितप्यसे। ध्रुवं मयि न ते स्नेहो यथा तपयं पुराऽभवत्।। | 1-259-11a 1-259-11b |
नहि पक्षवता न्याय्यं निः हेन सुहृज्जने। पीड्यमान उपद्रष्टुं शक्तेना मा कथंचन।। | 1-259-12a 1-259-12b |
गच्छ त्वं जरितामेव यदर्थं परितप्यसे। चरिष्याम्यहमप्येका यथा पुरुषाश्रिता।। | 1-259-13a 1-259-13b |
मन्दपाल उवाच। | 1-259-14x |
नाहमेवं चरे लोके यथा त्वमभिमन्यसे। अपत्यहेतोर्विचरे तच्च कृच्छ्रगतं मम।। | 1-259-14a 1-259-14b |
भूतं हित्वा च भाव्यर्थे योऽवलम्बेत्स मन्दधीः। अवमन्येत तं लोको यथेच्छसि तथा कुरु।। | 1-259-15a 1-259-15b |
एष हि प्रज्वलन्नग्निर्लेलिहानी महीरुहान्। आविग्ने हृदि सन्तापं जनयत्यशिवं मम।। | 1-259-16a 1-259-16b |
वैशंपायन उवाच। | 1-259-17x |
`भर्तुर्हि वाक्यं सा श्रुत्वा लपिता दुःखिताऽभवत्। सान्त्वयामास च पुनः पति पतिपरायणा।।' | 1-259-17a 1-259-17b |
तस्माद्देशादतिक्रान्ते ज्वलने जरिता पुनः। जगाम पुत्रकानेन जरिता पुत्रगृद्धिनी।। | 1-259-18a 1-259-18b |
सा तान्कुशलिनः सर्वान्विमुक्ताञ्जातवेदसः। रोरूयमाणान्ददृशे वने पुत्रान्निरामयान्।। | 1-259-19a 1-259-19b |
अश्रूणि मुमुचे तेषां दर्शनात्सा पुनःपुनः। `न श्रद्धेयं ततस्तेषांर्शनं वै पुनःपुनः।। | 1-259-20a 1-259-20b |
इति मत्वाऽब्रवीद्वाकजरिता पुत्रगृद्धिनी।' एकाकशश्च पुत्रांस्तन्त्र्शमानान्वपद्यत।। | 1-259-21a 1-259-21b |
`जरिता तु परिष्वज्युत्रस्नेहाच्चुचुम्ब ह।।' | 1-259-22a |
ततोऽभ्यगच्छत्सहसमन्दपालोऽपि भारत। अथ ते सर्व एवैनं भ्यनन्दंस्तदा सुताः।। | 1-259-23a 1-259-23b |
`गुरुत्वान्मन्दपालस्तपसश्च विशेषतः। अभिवादामहे सर्वे तपक्षाः प्रसादतः।। | 1-259-24a 1-259-24b |
एवमुक्तवतां तेषां तनन्द्य महातपाः। परिष्वज्य ततो मू उपाघ्राय च बलकान्। पुत्रान्स्वयं समाहूयतः प्रोवाच गौतमः।।' | 1-259-25a 1-259-25b 1-259-25c |
लालप्यमानमेकैकंरितां च पुनःपुनः। न चैवोचुस्तदा किंतमृषिं साध्वसाधु वा।। | 1-259-26a 1-259-26b |
मन्दपाल उवाच। | 1-259-27x |
ज्येष्ठः सुतस्ते कत कतमस्तस्य चानुजः। मध्यमः कतमश्चैव यान्कतमश्च ते।। | 1-259-27a 1-259-27b |
एवं ब्रुवन्तं दुःखाकं मा न प्रतिभाषसे। कृतवानस्मि हव्यानैव शान्तिमितो लभे। `एवमुक्त्वा तु तां मन्दपालस्तदाऽस्पृशत्।।' | 1-259-28a 1-259-28b 1-259-28c |
जरितोवाच। | 1-259-29x |
किं नु ज्येष्ठेन ते किमनन्तरजेन ते। किं वा मध्यमजातेन किं कनिष्ठेन वा पुनः।। | 1-259-29a 1-259-29b |
यां त्वं मां सर्वतो हीनामुत्सृज्यासि गतः पुरा। तामेव लपितां गच्छ तरुणीं चारुहासिनीम्।। | 1-259-30a 1-259-30b |
मन्दपाल उवाच। | 1-259-31x |
न स्त्रीणां विद्यते किंचिदमुत्र पुरुषान्तरात्। सापत्नकमृते लोके नान्यदर्थविनाशनम्।। | 1-259-31a 1-259-31b |
वैराग्निदीपनं चैव भृशुद्वेगकारि च। सुव्रता चापि कल्याणी सर्वभूतेषु विश्रुता।। | 1-259-32a 1-259-32b |
अरुन्धती महात्मानं वसिष्ठं पर्यशङ्कत। विशुद्धभावमत्यन्तं सदा प्रियहिते रतम्।। | 1-259-33a 1-259-33b |
सप्तर्षिमध्यगं वीरमवमेने च तं मुनिम्। अपध्यानेन सा तेन धूमारुणसमप्रभा। लक्ष्याऽलक्ष्या नाभिरूपा निमित्तमिव पश्यति।। | 1-259-34a 1-259-34b 1-259-34c |
अपत्यहेतोः संप्राप्तं तथा त्वमपि मामिह। इष्टमेवं गते हि त्वं सा तथैवाद्य वर्तते।। | 1-259-35a 1-259-35b |
न हि भार्येति विश्वासः कार्यः पुंसा कथंचन। न हि कार्यमनुध्याति नारी पुत्रवती सती।। | 1-259-36a 1-259-36b |
वैशंपायन उवाच। | 1-259-37x |
ततस्ते सर्व एवैनं पुत्राः सम्यगुपासते। स च तानात्मजान्सर्वानाश्वासयितुमुद्यतः।। | 1-259-37a 1-259-37b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिप्रवणि मयदर्शनपर्वणि ऊनषष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 259 ।। |
1-259-10 हॆ स्वसथ तॆ तव मानसं तॆन हॆतुना बन्धुकृत्यलक्षणॆ रक्षणॆ समक्षमभिमुखं न किन्तु तामॆवॆत्यादि स्पष्टार्थम् ।। 1-259-12 मिति ङ. पाठः।। 1-259-13 ह्यपुरुषा तथा इति ङ. पाठः।। ऊनषष्ठ्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 259 ।।
आदिपर्व-258 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-260 |