महाभारतम्-01-आदिपर्व-009
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देवदूतवचनेन रुरुकृतस्वार्धायुः प्रदानेन प्रमद्वराजीवनं तया सह रुरोर्विवाहश्च।। 1 ।।
सौतिरुवाच। | 1-9-1x |
तेषु तत्रोपविष्टेषु ब्राह्मणेषु महात्मसु। रुरुश्चुक्रोश गहनं वनं गत्वाऽतिदुःखितः।। | 1-9-1a 1-9-1b |
शोकेनाभिहतः सोऽथ विलपन्करुणं बहु। अब्रवीद्वचनं शोचन्प्रियां स्मृत्वा प्रमद्वराम्।। | 1-9-2a 1-9-2b |
शेते सा भुवि तन्वङ्गी मम शोकविवर्धिनी। `प्राणानपहरन्तीव पूर्णचन्द्रनिभानना।। | 1-9-3a 1-9-3b |
यदि पीनायतश्रोणी पद्मपत्रनिभेक्षणा। मुमूर्षुरपि मे प्राणानादायाशु गमिष्यति।। | 1-9-4a 1-9-4b |
पितृमातृसखीनां च लुप्तपिण्डस्य तस्य मे।' बान्धवानां च सर्वेषां किं नु दुःखमतःपरम्।। | 1-9-5a 1-9-5b |
यदि दत्तं तपस्तप्तं गुरवो वा मया यदि। सम्यगाराधितास्तेन संजीवतु मम प्रिया।। | 1-9-6a 1-9-6b |
यथा च जन्मप्रभृति यतात्माऽहं धृतव्रतः। प्रमद्वरा तथाद्यैषा समुत्तिष्ठतु भामिनी।। | 1-9-7a 1-9-7b |
[एवं लालप्यतस्तस्य भार्यार्थे दुःखितस्य च। देवदूतस्तदाऽभ्येत्य वाक्यमाह रुरुं वने।।] | 1-9-8a 1-9-8b |
`कृष्णे विष्णौ हृषीकेशे लोकेशेऽसुरविद्विषि। यदि मे निश्चला भक्तिर्मम जीवतु सा प्रिया।। | 1-9-9a 1-9-9b |
विलप्यमाने तु रुरौ सर्वे देवाः कृपान्विताः। दूतं प्रस्थापयामासुः संदिश्यास्य हितं वचः।। | 1-9-10a 1-9-10b |
स दूतस्त्वरितोऽभ्येत्य देवानां प्रियकृच्छुचिः। उवाच देववचनं रुरुमाभाष्य दुःखितम्।। | 1-9-11a 1-9-11b |
देवैः सर्वैरहं ब्रह्मन्प्रेषितोऽस्मि तवान्तिकम्। त्वद्धितं त्वद्धितैरुक्तं शृणु वाक्यं द्विजोत्तम।।' | 1-9-12a 1-9-12b |
अभिधत्से ह यद्वाचा रुरो दुःखान्न तन्मृषा। न तु मर्त्यस्य धर्मात्मन्नायुरस्ति गतायुषः।। | 1-9-13a 1-9-13b |
गतायुरेषा कृपणा गन्धर्वाप्सरसोः सुता। तस्माच्छोके मनस्तात मा कृथास्त्वं कथंचन।। | 1-9-14a 1-9-14b |
उपायश्चात्र विहितः पूर्वं देवैर्महात्मभिः। तं यदीच्छसि कर्तुं त्वं प्राप्स्यसीह प्रमद्वराम्।। | 1-9-15a 1-9-15b |
रुरुरुवाच। | 1-9-16x |
क उपायः कृतो देवैर्बूहि तत्त्वेन खेचर। करिष्येऽहं तथा श्रुत्वा त्रातुमर्हति मां भवान्।। | 1-9-16a 1-9-16b |
देवेदूत उवाच। | 1-9-17x |
आयुषोऽर्धं प्रयच्छ त्वं कन्यायै भृगुनन्दन। एवमुत्थास्यति रुरो तव भार्या प्रयद्वरा।। | 1-9-17a 1-9-17b |
रुरुरुवाच। | 1-9-18x |
आयुषोऽर्धं प्रयच्छामि कन्यायै खेचरोत्तम। शृङ्गाररूपाभरणा समुत्तिष्ठतु मे प्रिया।। | 1-9-18a 1-9-18b |
सौतिरुवाच। | 1-9-19x |
ततो गन्धर्वराजश्च देवदूतश्च सत्तमौ। धर्मराजमुपेत्येदं वचनं प्रत्यभाषताम्।। | 1-9-19a 1-9-19b |
धर्मराजायुषोऽर्धेन रुरोर्भार्या प्रमद्वरा। समुत्तिष्ठतु कल्याणी मृतैवं यदि मन्यसे।। | 1-9-20a 1-9-20b |
धर्मराज उवाच। | 1-9-21x |
प्रमद्वरा रुरोर्भार्या देवदूत यदीच्छसि। उत्तिष्ठत्वायुषोऽर्धेन रुरोरेव समन्विता।। | 1-9-21a 1-9-21b |
सौतिरुवाच। | 1-9-22x |
एवमुक्ते ततः कन्या सोदतिष्ठत्प्रमद्वरा। रुरोस्तस्यायुषोऽर्धेन सुप्तेव वरवर्णिनी।। | 1-9-22a 1-9-22b |
एतद्दृष्टं भविष्ये हि रुरोरुत्तमतेजसः। आयुषोऽतिप्रवृद्धस्य भार्यार्थेऽर्धमलुप्यत।। | 1-9-23a 1-9-23b |
तत इष्टेऽहनि तयोः पितरौ चक्रतुर्मुदा। विवाहं तौ च रेमाते परस्परहितैषिणौ।। | 1-9-24a 1-9-24b |
स लब्ध्वा दुर्लभां भार्यां पद्मकिञ्जल्कसुप्रभाम्। व्रतं चक्रे विनाशाय जिह्मगानां धृतव्रतः।। | 1-9-25a 1-9-25b |
स दृष्ट्वा जिह्मगान्सर्वांस्तीव्रकोपसमन्वितः। अभिहन्ति यथासत्त्वं गृह्य प्रहरणं सदा।। | 1-9-26a 1-9-26b |
स कदाचिद्वनं विप्रो रुरुरभ्यागमन्महत्। शयानं तत्र चापश्यड्डुण्डुभं वयसान्वितम्।। | 1-9-27a 1-9-27b |
तत उद्यम्य दम्डं स कालदण्डोपमं तदा। जिघांसुः कुपितो विप्रस्तमुवाचाथ डुण्डुभः।। | 1-9-28a 1-9-28b |
नापराध्यामि ते किंचिदहमद्य तपोधन। संरम्भाच्च किमर्थं मामभिहंसि रुषान्वितः।। | 1-9-29a 1-9-29b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वाणि पौलोमपर्वणि नवमोऽध्यायः।। 9 ।। |
1-9-13 गतायुषः आयुर्नास्ति पुनर्न भवतीत्यर्थः।। 1-9-23 भविष्ये जातके।। 1-9-25 जिह्मगानां सर्पाणां।। 1-9-27 डुण्डुभं जलसर्पं।। नवमोऽध्यायः।। 9 ।।
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