महाभारतम्-01-आदिपर्व-202
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ब्राह्मणमध्यस्थान्पाण्डवान्विज्ञाय श्रीकृष्णेन बलरामाय कथंन।। 1 ।।
धनुर्दर्शनेनैव केषांचिद्राज्ञां धनुःपूरणे निरशत।। 2 ।।
शिशुपालादीनां धनुःपूरणे भङ्गः।। 3 ।।
अर्जुनस्य धनुःपूरणे एषणा।। 4 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-202-1x |
तेऽलङ्कृताः कुण्डलिनो युवानः परस्परं स्पर्धमाना नरेन्द्राः। अस्त्रं बलं चात्मनि मन्यमानाः सर्वें समुत्पेतुरुदायुधास्ते।। | 1-202-1a 1-202-1b 1-202-1c 1-202-1d |
रूपेण वीर्येण कुले चैव शीलेन वित्तेन च यौवनेन। समिद्धदर्पा मदवेगभिन्ना मत्ता यथा हैमवता गजेन्द्राः।। | 1-202-2a 1-202-2b 1-202-2c 1-202-2d |
परस्परं स्पर्धया प्रेक्षमाणाः सङ्कल्पजेनाभिपरिप्लुताङ्गाः। कृष्णा ममैवेत्यभिभाषमाणा नृपाः समुत्पेतुरथासनेभ्यः।। | 1-202-3a 1-202-3b 1-202-3c 1-202-3d |
ते क्षत्रिया रङ्गगताः समेता जिगीषमाणा द्रुपदात्मजां ताम्। चकाशिरे पर्वतराजकन्या- मुमां यथा देवगणाः समेताः।। | 1-202-4a 1-202-4b 1-202-4c 1-202-4d |
कन्दर्पबाणाभिनिपीडिताङ्गां कृष्णागतैस्ते हृदयैर्नरेन्द्राः। रङ्गावतीर्णा द्रुपदात्मजार्थं द्वेषं प्रचक्रुः सुहृदोऽपि तत्र।। | 1-202-5a 1-202-5b 1-202-5c 1-202-5d |
अथाययुर्देवगणा विमानै रुद्रादित्या वसवोऽथाश्विनौ च। साध्याश्च सर्वे मरुतस्तथैव यमं पुरस्कृत्य धनेश्वरं च।। | 1-202-6a 1-202-6b 1-202-6c 1-202-6d |
दैत्याः सुपर्णाश्च महोरगाश्च देवर्षयो गुह्यकाश्चारणाश्च। विश्वावसुर्नारदपर्वतौ च गन्धर्वमुख्याः सहसाऽप्सरोभिः।। | 1-202-7a 1-202-7b 1-202-7c 1-202-7d |
हलायुधस्तत्र जनार्दनश्च वृष्ण्यन्धकाश्चैव यताप्रधानम्। प्रेक्षां स्म चक्रुर्यदुपुङ्गवास्ते स्थिताश्च कृष्णस्य मते महान्तः।। | 1-202-8a 1-202-8b 1-202-8c 1-202-8d |
दृष्ट्वा तु तान्मत्तगजेन्द्ररूपा- न्पञ्चाभिपद्मानिव वारणेन्द्रान्। भस्मावृताङ्गानिव हव्यवाहान् कृष्णः प्रदध्यौ यदुवीरमुख्यः।। | 1-202-9a 1-202-9b 1-202-9c 1-202-9d |
शशंस रामाय युधिष्ठिरं स भीमं सजिष्णुं च यमौ च वीरौ। शनैःशनैस्तान्प्रसमीक्ष्य रामो जनार्दनं प्रीतमना ददर्श ह।। | 1-202-10a 1-202-10b 1-202-10c 1-202-10d |
अन्ये तु वीरा नृपपुत्रपौत्राः कृष्णागतैर्नत्रमनःस्वभावैः। व्यायच्छमाना ददृशुर्न तान्वै सन्दष्टदन्तच्छदताम्रनेत्राः।। | 1-202-11a 1-202-11b 1-202-11c 1-202-11d |
तथैव पार्थाः पृथुबाहवस्ते वीरौ यमौ चैव महानुभावौ। तां द्रौपदीं प्रेक्ष्य तदा स्म सर्वे कन्दर्पबाणाभिहता बभूवुः।। | 1-202-12a 1-202-12b 1-202-12c 1-202-12d |
देवर्षिगन्धर्वसमाकुलं त- त्सुपर्णनागासुरसिद्धजुष्टम्। दिव्येन गन्धेन समाकुलं च दिव्यैश्च पुष्पैरवकीर्यमाणम्।। | 1-202-13a 1-202-13b 1-202-13c 1-202-13d |
महास्वनैर्दुन्दुभिनादितैश्च बभूव तत्सङ्कुलमन्तरिक्षम्। विमानसंबाधमभूत्समन्ता- त्सवेणुवीणापणवानुनादम्।। | 1-202-14a 1-202-14b 1-202-14c 1-202-14d |
समाजवाटोपरि संस्थितानां मेघैः समन्तादिव गर्जमानैः। ततस्तु ते राजगणाः क्रमेण कृष्णानिमित्तं कृतविक्रमाश्च। सकर्णदुर्योधनशाल्वशल्य- द्रौणायनिक्राथसुनीथवक्राः।। | 1-202-15a 1-202-15b 1-202-15c 1-202-15d 1-202-15e 1-202-15f |
कलिङ्गवङ्गाधिपपाण्ड्यपौण्ड्रा विदेहराजो यवनाधिपश्च। अन्ये च नानानृपपुत्रपौत्रा राष्ट्राधिपाः पङ्कजपत्रनेत्राः।। | 1-202-16a 1-202-16b 1-202-16c 1-202-16d |
किरीटहाराङ्गदचक्रवालै- र्विभूषिताङ्गाः पृथुबाहवस्ते। अनुक्रमं विक्रमसत्वयुक्ता बलेन वीर्येण च नर्दमानाः।। | 1-202-17a 1-202-17b 1-202-17c 1-202-17d |
तत्कार्मुकं संहननोपपन्नं सज्यं न शेकुर्मनसाऽपि कर्तुम्। ते विक्रमन्तः स्फुरता दृढेन विक्षिप्यमाणा धनुषा नरेन्द्राः।। | 1-202-18a 1-202-18b 1-202-18c 1-202-18d |
विचेष्टमाना धरणीतलस्था यथाबलं शैक्ष्यगुणक्रमाश्च। गतौजसः स्नस्तकिरीटहारा विनिःश्वसन्तः शमयांबभूवुः।। | 1-202-19a 1-202-19b 1-202-19c 1-202-19d |
हहाकृतं तद्धनुषा दृढेन विस्रस्तहाराङ्गदचक्रवालम्। कृष्णानिमित्तं विनिवृत्तकामं राज्ञां तदा मण्डलमार्तमासीत्।। | 1-202-20a 1-202-20b 1-202-20c 1-202-20d |
`एवं तेषु निवृत्तेषु क्षत्रियेषु समन्ततः। चेदीनामधिपो वीरो बलवानन्तकोपमः।। | 1-202-21a 1-202-21b |
दमघोषात्मजो धीमाञ्शिशुपालो महाद्युतिः। धनुषोऽभ्याशमागम्य तस्थौ राज्ञां समक्षतः।। | 1-202-22a 1-202-22b |
तदप्यारोप्यमाणं तु माषमात्रेऽभ्यताडयत्। धनुषा पीड्यमानस्तु जानुभ्यामगमन्महीम्।। | 1-202-23a 1-202-23b |
तत उत्थाय राजा स स्वराष्ट्राण्यभिजग्मिवान्। ततो राजा जरासन्धो महावीर्यो महाबलः।। | 1-202-24a 1-202-24b |
कम्बुग्रीवः पृथुव्यंसो मत्तवारणविक्रमः। मत्तवारणताम्राक्षो मत्तवारणवेगवान्।। | 1-202-25a 1-202-25b |
धनुषोऽभ्याशमागत्य तस्थौ गिरिरिवाचलः। धनुरारोप्यमाणं तु सर्षमात्रेऽभ्यताडयत्।। | 1-202-26a 1-202-26b |
ततः शल्यो महावीर्यो मद्रराजो महाबलः। धनुरारोप्यमाणं तु मुद्गमात्रेऽभ्यताडयत्।। | 1-202-27a 1-202-27b |
तदैवागात्स्वयं राज्यं पश्चादनवलोकयन्। इदं धनुर्वरं कोऽद्य सज्यं कुर्वीत पार्थिवः।। | 1-202-28a 1-202-28b |
इति निश्चित्य मनसा भूय एव स्थितस्तदा। ततो दुर्योधनो राजा धार्तराष्ट्रः परन्तपः।। | 1-202-29a 1-202-29b |
मानी दृढास्त्रसंपन्नः सर्वैश्च नृपलक्षणैः। उत्थितः सहसा तत्र भ्रातृमध्ये महाबलः।। | 1-202-30a 1-202-30b |
विलोक्य द्रौपदीं हृष्टो धनुषोऽभ्याशमागमत्। स बभौ धनुरादाय शक्रश्चापधरो यथा।। | 1-202-31a 1-202-31b |
धनुरारोपयामास तिलमात्रेऽभ्यताडयत्। आरोप्यमाणं तद्राजा धनुषा बलिना तदा।। | 1-202-32a 1-202-32b |
उत्तानशय्यमपतदङ्गुल्यन्तरताडितः। स ययौ ताडितस्तेन व्रीडन्निव नराधिपः।। | 1-202-33a 1-202-33b |
ततो वैकर्तनः कर्णो वृषा वै सूतनन्दनः। धनुरभ्याशमागम्य तोलयामास तद्धनुः।। | 1-202-34a 1-202-34b |
तं चाप्यारोप्यमाणं तद्रोममात्रेऽभ्यताडयत्। त्रैलोक्यविजयी कर्णः सत्वे त्रैलोक्यविश्रुतः।। | 1-202-35a 1-202-35b |
धनुषा सोऽपि निर्धूत इति सर्वे भयाकुलाः। एवं कर्णे विनिर्धूते धनुषा च नृपोत्तमाः।। | 1-202-36a 1-202-36b |
चक्षुर्भिरपि नापश्यन्विनम्रमुखपङ्कजाः। दृष्ट्वा कर्णं विनिर्धूतं लोके वीरा नृपोत्तमाः।। | 1-202-37a 1-202-37b |
निराशा धनुरुद्धारे द्रौपदीसंगमेऽपि च।। | 1-202-38a |
तस्मिंस्तु संभ्रान्तजने समाजे निक्षिप्तवादेषु जनाधिपेषु। कुन्तीसुतो जिष्णुरियेष कर्तुं सज्यं धनुस्तत्सशरं च वीरः।। | 1-202-39a 1-202-39b 1-202-39c 1-202-39d |
ततो वरिष्ठः सुरदानवाना- मुदरधीर्वृष्णिकुलप्रवीरः। जहर्ष रामेण स पीड्य हस्तं हस्तंगतां पाण्डुसुतस्य मत्वा।। | 1-202-40a 1-202-40b 1-202-40c 1-202-40d |
न जज्ञिरेऽन्ये नृपविप्रमुख्याः संछन्नरूपानथ पाण्डुपुत्रान्। विना हि लोके च यदुप्रवीरौ धौम्यं हि धर्मं सह सोदरांश्च।। | 1-202-41a 1-202-41b 1-202-41c 1-202-41d |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि स्वयंवरपर्वणि द्व्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 202 ।। |
1-202-3 संकल्पजेन कामेन।। 1-202-9 अभितः पद्मा लक्ष्मीर्येषां तान्सर्वाङ्गसुन्दरानित्यर्थः।। द्व्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 202 ।।
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