महाभारतम्-01-आदिपर्व-169
← आदिपर्व-168 | महाभारतम् प्रथमपर्व महाभारतम्-01-आदिपर्व-169 वेदव्यासः |
आदिपर्व-170 → |
घटोत्कचोत्पत्तिः।। 1 ।।
स्मृतिमात्रादागच्छाव इत्युक्त्वा हिडिम्बाघटोत्कचयोर्गमनम्।। 2 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-169-1x |
गते भगवति व्यासे पाण्डवा विगतज्वराः। ऊषुस्तत्र च षण्मासान्वटवृक्षे यथासुखम्।। | 1-169-1a 1-169-1b |
शाकमूलफलाहारास्तपः कुर्वन्ति पाण्डवाः। अनुज्ञाता महाराज ततः कमलपालिका।। | 1-169-2a 1-169-2b |
रमयन्ती सदा भीमं तत्रतत्र मनोजवा। दिव्याभरणवस्त्रा हि दिव्यस्रगनुलेपना।। | 1-169-3a 1-169-3b |
एवं भ्रातॄन्सप्त मासान्हिडिम्बाऽवासयद्वने। पाण्डवान्भीमसेनार्थे राक्षसी कामरूपिणी।। | 1-169-4a 1-169-4b |
सुखं स विहरन्भीमस्तत्कालं पर्यणामयत्। ततोऽलभत सा गर्भं राक्षसी कामरूपिणी।। | 1-169-5a 1-169-5b |
अतृप्ता भीमसेनेन सप्तमासोपसंगता।' प्रजज्ञे राक्षसी पुत्रं भीमसेनान्महाबलात्।। | 1-169-6a 1-169-6b |
विरूपाक्षं महावक्त्रं शङ्कुकर्णं विभीषणम्। भीमरूपं सुताम्राक्षं तीक्ष्णदंष्ट्रं महारथम्।। | 1-169-7a 1-169-7b |
महेष्वासं महावीर्यं महासत्वं महाजवम्। महाकायं महाकालं महाग्रीवं महाभुजम्।। | 1-169-8a 1-169-8b |
अमानुषं मानुषजं भीमवेगमरिन्दमम्। पिशाचकानतीत्यान्यान्बभूवाति स मानुषान्।। | 1-169-9a 1-169-9b |
बालोऽपि विक्रमं प्राप्तो मानुषेषु विशांपते। सर्वास्त्रेषु वरो वीरः प्रकाममभवद्बली।। | 1-169-10a 1-169-10b |
सद्यो हि गर्भं राक्षस्यो लभन्ते प्रसवन्ति च। कामरूपधराश्चैव भवन्ति बहुरूपिकाः।। | 1-169-11a 1-169-11b |
प्रणम्य विकचः पादावगृह्णात्स पितुस्तदा। मातुश्च परमेष्वासस्तौ च नामास्य चक्रतुः।। | 1-169-12a 1-169-12b |
घटोहास्योत्कच इति माता तं प्रत्यभाषत। अभवत्तेन नामास्य घटोत्कच इति स्म ह।। | 1-169-13a 1-169-13b |
अनुरक्तश्च तानासीत्पाण्डवान्स घटोत्कचः। तेषां च दयितो नित्यमात्मनित्यो बभूव ह।। | 1-169-14a 1-169-14b |
घटोत्कचो महाकायः पाण्डवान्पृथया सह। अभिवाद्य यथान्यायमब्रवीच्च प्रभाष्य तान्।। | 1-169-15a 1-169-15b |
किं करोम्यहमार्याणां निःशङ्कं वदतानघाः। तं ब्रुवन्तं भैमसेनिं कुन्ती वचनमब्रवीत्।। | 1-169-16a 1-169-16b |
त्वं कुरूणां कुले जातः साक्षाद्भीमसमो ह्यसि। ज्येष्ठः पुत्रोसि पञ्चानां साहाय्यं कुरु पुत्रक।। | 1-169-17a 1-169-17b |
वैशंपायन उवाच। | 1-169-18x |
पृथयाप्येवमुक्तस्तु प्रणम्यैव वचोऽब्रवीत्। यथा हि रावणो लोके इन्द्रजिच्च महाबलः। वर्ष्मवीर्यसमो लोके विशिष्टश्चाभवं नृषु।। | 1-169-18a 1-169-18b 1-169-18c |
कृत्यकाल उपस्थास्ये पितॄनिति घटोत्कचः। आमन्त्र्य रक्षसां श्रेष्ठः प्रतस्थे चोत्तरां दिशम्।। | 1-169-19a 1-169-19b |
स हि सृष्टो भगवता शक्तिहेतोर्महात्मना। वर्णस्याप्रतिवीर्यस्य प्रतियोद्धा महारथः।। | 1-169-20a 1-169-20b |
`भीम उवाच। | 1-169-21x |
सह वासो मया जीर्णस्त्वया कमलपालिके। पुनर्द्रक्ष्यसि राज्यस्थानित्यभाषत तां तदा।। | 1-169-21a 1-169-21b |
हिडिम्बोवाच। | 1-169-22x |
पदा मां संस्मरेः कान्त रिरंसू रहसि प्रभो। तदा तव वशं भूय आगन्तास्म्याशु भारत।। | 1-169-22a 1-169-22b |
इत्युक्त्वा सा जगामाशु भावमासज्य पाण्डवे। हिडिम्बा समयं स्मृत्वा स्वां गतिं प्रत्यपद्यत।। | 1-169-23a 1-169-23b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि हिडिम्बवधपर्वणि ऊनसप्तत्युत्तरशततमोऽध्यायः।। 169 ।। |
1-169-12 विकचः केशहीनः।। 1-169-13 घटोहं घटवद्वितर्क्यं आस्यं तदुपलक्षितं शिरः यस्य स घटोहास्यः सचासावुत्कचश्च घटोहास्योत्कचः। घटोऽहमुत्कचोऽस्मीति मातरं सोऽभ्यभाषत इति घ.ङ. पाठः।। 13 ।। 1-169-14 आत्मनिलः स्ववशः।। ऊनसप्तत्युत्तरशततमोऽध्यायः।। 169 ।।
आदिपर्व-168 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-170 |