महाभारतम्-01-आदिपर्व-016
← आदिपर्व-015 | महाभारतम् प्रथमपर्व महाभारतम्-01-आदिपर्व-016 वेदव्यासः |
आदिपर्व-017 → |
आस्तीकाख्यानविस्तरः।। 1 ।। कद्रूविनतयोः कश्यपाद्वरलाभः।। 2 ।। कद्र्वाः सर्पोत्पत्तिर्विनताया अरुणोत्पत्तिश्च।। 3 ।।
शौनक उवाच। | 1-16-1x |
सौते त्वं कथयस्वेमां विस्तरेण कथां पुनः। आस्तीकस्य कवेःसाधोः शुश्रूषा परमा हिनः।। | 1-16-1a 1-16-1b |
मधुरं कथ्यते सौम्य श्लक्ष्णाक्षरपदं त्वया। प्रीयामहे भृशं तात पितेवेदं प्रभाषसे।। | 1-16-2a 1-16-2b |
अस्मच्छुश्रूषणे नित्यं पिता हि निरतस्तव। आचष्टैतद्यथाऽऽक्यानं पिता तेत्वं तथा वद।। | 1-16-3a 1-16-3b |
सौतिरुवाच। | 1-16-4x |
आयुष्मन्निदमाख्यानमास्तीकं कथयामि ते। यथाश्रुतं कथयतः सकाशाद्वै पितुर्मया।। | 1-16-4a 1-16-4b |
पुरा देवयुगे ब्रह्मन्प्रजापतिसुते शुभे। आस्तां भगिन्यौ रूपेण समुपेतेऽद्भुतेऽनघ।। | 1-16-5a 1-16-5b |
ते भार्ये कश्यपस्यास्तां कद्रूश्च विनता च ह। प्रादात्ताभ्यां वरं प्रीतः प्रजापतिसमः पतिः।। | 1-16-6a 1-16-6b |
कश्यपो धर्मपत्नीभ्यां मुदा परमया युतः। वरातिसर्गं श्रुत्वैवं कश्यपादुत्तमं च ते।। | 1-16-7a 1-16-7b |
हर्षादप्रतिमां प्रीतिं प्रापतुः स्म वरस्त्रियौ। वव्रे कद्रूः सुतान्नागान्सहस्रं तुल्यवर्चसः।। | 1-16-8a 1-16-8b |
द्वौ पुत्रौ विनता वव्रे कद्रूपुत्राधिकौ बले। तेजसा वपुषा चैव विक्रमेणाधिकौ च तौ।। | 1-16-9a 1-16-9b |
तस्यै भर्ता वरं प्रादादीदृसौ ते भविष्यतः। एवमस्त्विति तं चाह कश्यपं विनता तदा।। | 1-16-10a 1-16-10b |
यथावत्प्रार्थितं लब्ध्वा वरं तुष्टाभवत्तदा। कृतकृत्या तु विनता लब्ध्वा वीर्याधिकौ सुतौ।। | 1-16-11a 1-16-11b |
कद्रूश्च लब्ध्वा पुत्राणां सहस्रं तुल्यवर्चसाम्। धार्यौ प्रयत्नतो गर्भावित्युक्त्वा स महातपाः।। | 1-16-12a 1-16-12b |
ते भार्ये वरसंतुष्टे कश्यपो वनमाविशत्। | 1-16-13a |
सौतुरिवाच। | 1-16-13x |
कालेन महता कद्रूरण्डानां दशतीर्दश।। | 1-16-13b |
जनयामास विप्रेन्द्र द्वे चाण्डे विनता तदा। तयोरण्डानि निदधुः प्रहृष्टाः परिचारिकाः।। | 1-16-14a 1-16-14b |
सोपस्वेदेषु भाण्डेषु पञ्चवर्षशतानि च। ततः पञ्चशते काले कद्रूपुत्रा विनिःसृताः।। | 1-16-15a 1-16-15b |
अण्डाभ्यां विनतायास्तु मिथुनं न व्यदृश्यत। ततः पुत्रार्थिनी देवी व्रीडिता च तपस्विनी।। | 1-16-16a 1-16-16b |
अण्डं बिभेद विनता तत्र पुत्रमपश्यत। पूर्वार्धकायसंपन्नमितरेणाप्रकाशता।। | 1-16-17a 1-16-17b |
स पुत्रः क्रोधसंरब्धः शशापैनामिति श्रुतिः। योऽहमेवं कृतो मातस्त्वया लोभपरीतया।। | 1-16-18a 1-16-18b |
शरीरेणासमग्रेण तस्माद्दासी भविष्यसि। पञ्च वर्षशतान्यस्या यया विस्पर्धसे सह।। | 1-16-19a 1-16-19b |
एष च त्वां सुतो मातर्दासीत्वान्मोचयिष्यति। यद्येनमपि मातस्त्वं मामिवाण्डविभेदनात्।। | 1-16-20a 1-16-20b |
न करिष्यस्यनङ्गं वा व्यङ्गं वापि तपस्विनम्। प्रतिपालयितव्यस्ते जन्मकालोऽस्य धीरया।। | 1-16-21a 1-16-21b |
विशिष्टं बलमीप्सन्त्या पञ्चवर्षशतात्परः। एवं शप्त्वा ततः पुत्रो विनतामन्तरिक्षगः।। | 1-16-22a 1-16-22b |
अरुणोऽदृश्यत ब्रह्मन्प्रभातसमये तदा। `उद्यन्नथ सहस्रांशुर्दृष्ट्वा तमरुणं प्रभुः।। | 1-16-23a 1-16-23b |
स्वतेजसा प्रज्वलन्तमात्मनः समतेजसम्। सारथ्ये कल्पयामास प्रीयमाणस्तमोनुदः।। | 1-16-24a 1-16-24b |
सोऽपि तं रथमारुह्य भानोरमिततेजसः। सर्वलोकप्रदीपस्य ह्यमरोऽप्यरुणोऽभवत्।।' | 1-16-25a 1-16-25b |
गरुडोऽपि यथाकालं जज्ञे पन्नगभोजनः। स जातमात्रो विनतां परित्यज्य खमाविशत्।। | 1-16-26a 1-16-26b |
आदास्यन्नात्मनो भोज्यमन्नं विहितमस्य यत्। विधात्रा भृगुशार्दूल क्षुधितः पतगेश्वरः।। | 1-16-27a 1-16-27b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वाणि आस्तीकपर्वणि षोडशोऽध्यायः।। 16 ।। |
1-16-15 सोपस्वेदेषु ऊष्मवत्सु।। षोडशोऽध्यायः।। 16 ।।
आदिपर्व-015 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-017 |