महाभारतम्-01-आदिपर्व-139
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भीममनागतं दृष्ट्वा खिन्नायाः कुन्त्या विदुरेण संवादः।। 1 ।।
रसपानेन नागायुतबलवता भीमेन हस्तिनापुरप्रत्यागमनम्।। 2 ।।
भीष्मेण धनुर्वेदशिक्षणार्थं कुमाराणां कृपाय निवेदनम्।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-139-1x |
`दुर्योधनस्तु पापात्मा भीममाशीविषहदे। प्रक्षिप्य कृतकृत्यं स्वमात्मानं मन्यते तदा।। | 1-139-1a 1-139-1b |
प्रभातायां रजन्यां च प्रविवेश पुरं ततः। ब्रुवाणो भीमसेनस्तु यातो ह्यग्रत एव नः।।' | 1-139-2a 1-139-2b |
युधिष्ठिरस्तु धर्मात्मा ह्यविदन्पापमात्मनि। स्वेनानुमानेन परं साधुं समनुपश्यति।। | 1-139-3a 1-139-3b |
सोऽभ्युपेत्य तदा पार्थो मातरं भ्रातृवत्सलः। अभिवाद्याब्रवीत्कुन्तीमम्ब भीम इहागतः।। | 1-139-4a 1-139-4b |
क्व गतो भविता मातर्नेह पश्यामि तं शुभे। उद्यानानि वनं चैव विचितानि समन्ततः।। | 1-139-5a 1-139-5b |
तदर्थं न च तं वीरं दृष्टवन्तो वृकोदरम्। मन्यमानास्ततः सर्वे यातो नः पूर्वमेव सः।। | 1-139-6a 1-139-6b |
आगताः स्म महाभागे व्याकुलेनान्तरात्मना। इहागम्य क्व नु गतस्त्वया वा प्रेषितः क्व नु।। | 1-139-7a 1-139-7b |
कथयस्व महाबाहुं भीमसेनं यशस्विनि। नहि मे शुध्यते भावस्तं वीरं प्रति शोभने।। | 1-139-8a 1-139-8b |
यतः प्रसुप्तं मन्येऽहं भीम् नेति हतस्तु सः। इत्युक्ता च ततः कुन्ती धर्मराजेन धीमता।। | 1-139-9a 1-139-9b |
हाहेति कृत्वा संभ्रान्ता प्रत्युवाच युधिष्ठिरम्। न पुत्र भीमं पश्यामि न मामभ्येत्यसाविति।। | 1-139-10a 1-139-10b |
शीघ्रमन्वेषणे यत्नं कुरु तस्यानुजैः सह। द्रुतं गत्वा पुरोद्यानं विचिन्वन्तिस्म पाण्डवाः।। | 1-139-11a 1-139-11b |
भीमभीमेति ते वाचा पाण्डवाः समुदैरयन्। विचिन्वन्तोऽथ ते सर्वे न स्म पश्यन्ति भ्रातरम्।। | 1-139-12a 1-139-12b |
आगताः स्वगृहं भूय इदमूचुः पृथां तदा। न दृश्यते महाबाहुरम्ब भीमो वने चितः।। | 1-139-13a 1-139-13b |
विचितानि च सर्वाणि ह्युद्यानानि नदीस्तथा। | 1-139-14a |
वैशंपायन उवाच। | 1-139-14x |
ततो विदुरमानाय्य कुन्ती सा स्वं निवेशनम्।। | 1-139-14b |
उवाच बलवान्क्षत्तर्भीमसेनो न दृश्यते।। | 1-139-15a |
उद्यानान्निर्गताः सर्वे भ्रातरो भ्रातृभिः सह। तत्रैकस्तु महाबाहुर्भीमो नाभ्येति मामिह।। | 1-139-16a 1-139-16b |
न च प्रीणयते चक्षुः सदा दुर्योधनस्य सः। क्रूरोऽसौ दुर्मतिः क्षुद्रो राज्यलुब्धोऽनपत्रपः।। | 1-139-17a 1-139-17b |
निहन्यादपि तं वीरं जातमन्युः सुयोधनः। तेन मे व्याकुलं चित्तं हृदयं दह्यतीव च।। | 1-139-18a 1-139-18b |
विदुर उवाच। | 1-139-19x |
मैवं वदस्व कल्याणि शेषसंरक्षणं कुरु। प्रत्यादिष्टो हि दुष्टात्मा शेषेऽपि प्रहरेत्तव।। | 1-139-19a 1-139-19b |
दीर्घायुषस्तव सुता यथोवाच महामुनिः। आगमिष्यति ते पुत्रः प्रीतिं चोत्पादयिष्यति।। | 1-139-20a 1-139-20b |
वैशंपायन उवाच। | 1-139-21x |
एवमुक्त्वा ययौ विद्वान्विदुरः स्वं निवेशनम्। कुन्ती चिन्तापरा भूत्वा सहासीना सुतैर्गृहे।। | 1-139-21a 1-139-21b |
ततोऽष्टमे तु दिवसे प्रत्यबुध्यत पाण्डवः। तस्मिंस्तदा रसे जीर्णे सोऽप्रमेयबलो बली।। | 1-139-22a 1-139-22b |
तं दृष्ट्वा प्रतिबुध्यन्तं पाण्डवं ते भुजङ्गमाः। सान्त्वयामासुरव्यग्रा वचनं चेदमब्रुवन्।। | 1-139-23a 1-139-23b |
यत्ते पीतो महाबाहो रसोऽयं वीर्यसंभृतः। तस्मान्नागायुतबलो रणेऽधृष्यो भविष्यसि।। | 1-139-24a 1-139-24b |
गच्छाद्य त्वं च स्वगृहं स्नातो दिव्यैरिमैर्जलैः। भ्रातरस्तेऽनुतप्यन्ति त्वां विना कुरुपुङ्गव।। | 1-139-25a 1-139-25b |
ततः स्नातो महाबाहुः शुचिशुक्लाम्बरस्रजः। ततो नागस्य भवने कृतकौतुकमङ्गलः।। | 1-139-26a 1-139-26b |
ओषधीभिर्विषघ्नीभिः सुरभीभिर्विशेषतः। भुक्तवान्परमान्नं च नागैर्दत्तं महाबलः।। | 1-139-27a 1-139-27b |
पूजितो भुजगैर्वीर आशीर्भिश्चाभिनन्दितः। दिव्याभरणसंछन्नो नागानामन्त्र्य पाण्डवाः।। | 1-139-28a 1-139-28b |
उदतिष्ठत्प्रहृष्टात्मा नागलोकादरिन्दमः। उत्क्षिप्य च तदा नागैर्जलाज्जलरुहेक्षणः।। | 1-139-29a 1-139-29b |
तस्मिन्नेव वनोद्देशे स्थापितः कुरुनन्दनः। ते चान्तर्दधिरे नागाः पाण्डवस्यैव पश्यतः।। | 1-139-30a 1-139-30b |
तत उत्थाय कौन्तेयो भीमसेनो महाबलः। आजगाम महाबाहुर्मातुरन्तिकमञ्जसा।। | 1-139-31a 1-139-31b |
ततोऽभिवाद्य जननीं ज्येष्ठं भ्रातरमेव च। कनीयसः समाघ्राय शिरस्स्वरिविमर्दनः।। | 1-139-32a 1-139-32b |
तैश्चापि संपरिष्वक्तः सह मात्रा नरर्षभैः। अन्योन्यगतसौहार्दाद्दिष्ट्या दिष्ट्येति चाब्रुवन्।। | 1-139-33a 1-139-33b |
ततस्तत्सर्वमाचष्ट दुर्योधनविचेष्टितम्। भ्रातॄणां भीमसेनश्च महाबलपराक्रमः।। | 1-139-34a 1-139-34b |
नागलोके च यद्वृत्तं गुणदोषमशेषतः। तच्च सर्वमशेषेण कथयामास पाण्डवः।। | 1-139-35a 1-139-35b |
ततो युधिष्ठिरो राजा भीममाह वचोऽर्थवत्। तूष्णीं भव न ते जल्प्यमिदं कार्यं कथंचन।। | 1-139-36a 1-139-36b |
इतःप्रभृति कौन्तेयं रक्षतान्योन्यमादृताः। एवमुक्त्वा महाबाहुर्धर्मराजो युधिष्ठिरः।। | 1-139-37a 1-139-37b |
भ्रातृभिः सहितः सर्वैरप्रमत्तोऽभवत्तदा। यदा त्ववगतास्ते वै पाण्डवास्तस्य कर्म तत्।। | 1-139-38a 1-139-38b |
नत्वेव बहुलं चक्रुः प्रयता मन्त्ररक्षणे। धर्मात्मा विदुरस्तेषां प्रददौ मतिमान्मतिम्।। | 1-139-39a 1-139-39b |
दुर्योधनोऽपि तं दृष्ट्वा पाण्डवं पुनरागतम्। निश्वसंश्चिन्तयंश्चैवमहन्यहनि तप्यते।। | 1-139-40a 1-139-40b |
कुमारान्क्रीडमानांस्तान्दृष्ट्वा राजातिदुर्मदान्। गुरुं शिक्षार्थमन्विष्य गौतमं तान्न्यवेदयत्।। | 1-139-41a 1-139-41b |
शरस्तम्बे समुद्भूतं वेदशास्त्रार्थपारगम्। `राज्ञा निवेदितास्तस्मै ते च सर्वे च निष्ठिताः।' अधिजग्मुश्च कुरवो धनुर्वेदं कृपात्तु ते।। | 1-139-42a 1-139-42b 1-139-42c |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि ऊनचत्वारिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 139 ।। |
1-139-8 भावश्चित्तं न शुध्यते जीवतीति न मनुते।। 1-139-19 प्रत्यादिष्टः कुतो भीमं हतवानसीत्युपालब्धः।। 1-139-41 तान्कुरुबालकान् न्यवेदयत्।। ऊनचत्वारिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 139 ।।
आदिपर्व-138 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-140 |