महाभारतम्-01-आदिपर्व-209
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कुन्त्या सह पाण्डवानां द्रुपदगृहगमनम्।। 1 ।।
परीक्षणार्थं द्रुपदेन अनेकविधवस्तूपहरणम्।। 2 ।।
द्रौपद्या सह कुन्त्या अन्तःपुरप्रवेशः।। 3 ।।
भोजनानन्तरं पाण्डवानां साङ्ग्रामिकवस्तुपूर्णप्रदेशे प्रवेशः।। 4 ।।
दूत उवाच। | 1-209-1x |
जन्यार्थमन्नं द्रुपदेन राज्ञा विवाहहेतोरुपसंस्कृतं च। तदाप्नुवध्वं कृतसर्वकार्याः कृष्णा च तत्रैतु चिरं न कार्यम्।। | 1-209-1a 1-209-1b 1-209-1c 1-209-1d |
इमे रथाः काञ्चनपद्मचित्राः सदश्वयुक्ता वसुधाधिपार्हाः। एतान्समारुह्य परैत सर्वे पाञ्चालराजस्य निवेशनं तत्।। | 1-209-2a 1-209-2b 1-209-2c 1-209-2d |
वैशंपायन उवाच। | 1-209-3x |
ततः प्रयाताः कुरुपुंगवास्ते पुरोहितं तं परियाप्य सर्वे। आस्थाय यानानि महान्ति तानि कुन्ती च कृष्णा च सहैकयाने।। | 1-209-3a 1-209-3b 1-209-3c 1-209-3d |
`स्त्रीभिः सुगन्धाम्बरमाल्यदानै- र्विभूषिता आभरणैर्विचित्रैः। माङ्गल्यगीतध्वनिवाद्यघोषै- र्मनोहरैः पुण्यकृतां वरिष्ठैः।। | 1-209-4a 1-209-4b 1-209-4c 1-209-4d |
संगीयमानाः प्रययुः प्रहृष्टा दीपैर्ज्वलद्भिः सहिताश्च विप्रैः।। | 1-209-5a 1-209-5b |
स वै तथोक्तस्तु युधिष्ठिरेण पाञ्चालराजस्य पुरोहितोऽग्र्यः। सर्वं यथोक्तं कुरुनन्दनेन निवेदयामास नृपाय गत्वा।।' | 1-209-6a 1-209-6b 1-209-6c 1-209-6d |
श्रुत्वा तु वाक्यानि पुरोहितस्य यान्युक्तवान्भारत धर्मराजः। जिज्ञासयैवाथ कुरूत्तमानां द्रव्याण्यनेकान्युपसंजहार।। | 1-209-7a 1-209-7b 1-209-7c 1-209-7d |
फलानि माल्यानि च संस्कृतानि वर्माणि चर्माणि तथाऽऽसनानि। गाश्चैव राजन्नथ चैव रज्जू- र्बीजानि चान्यानि कृषीनिमित्तम्।। | 1-209-8a 1-209-8b 1-209-8c 1-209-8d |
अन्येषु शिल्पेषु च यान्यपि स्युः सर्वाणि कृत्यान्यखिलेन तत्र। क्रीडानिमित्तान्यपि यानि तत्र सर्वाणि तत्रोपजहार राजा।। | 1-209-9a 1-209-9b 1-209-9c 1-209-9d |
वर्माणि चर्माणि च भानुमन्ति खड्गा महान्तोऽश्वरथाश्च चित्राः। धनूंषि चाग्र्याणि शराश्च चित्राः शक्त्यृष्टयः काञ्चनभूषणाश्च।। | 1-209-10a 1-209-10b 1-209-10c 1-209-10d |
प्रासा भुशुण्ड्यश्च परश्वधाश्च सांग्रामिकं चैव तथैव सर्वम्। शय्यासनान्युत्तमवस्तुवन्ति तथैव वासो विविधं च तत्र।। | 1-209-11a 1-209-11b 1-209-11c 1-209-11d |
कुन्ती तु कृष्णां परिगृह्य साध्वी- मन्तःपुरं द्रुपदस्याविवेश। स्त्रियश्च तां कौरवराजपत्नीं प्रत्यर्चयामासुरदीनसत्वाः।। | 1-209-12a 1-209-12b 1-209-12c 1-209-12d |
तान्सिंहविक्रान्तगतीन्निरीक्ष्य महर्षभाक्षानजिनोत्तरीयान्। गूढोत्तरांसान्भुजगेन्द्रभोग- प्रलम्बबाहून्पुरुषप्रवीरान्।। | 1-209-13a 1-209-13b 1-209-13c 1-209-13d |
राजा च राज्ञः सचिवाश्च सर्वे पुत्राश्च राज्ञः सुहृदस्तथैव। प्रेष्याश्च सर्वे निखिलेन राज- न्हर्षं समापेतुरतीव तत्र।। | 1-209-14a 1-209-14b 1-209-14c 1-209-14d |
ते तत्र वीराः परमासनेषु सपादपीठेष्वविशङ्कमानाः। यथानुपूर्व्याद्विविशुर्नराग्र्या- स्तथा महार्हेषु न विस्मयन्तः।। | 1-209-15a 1-209-15b 1-209-15c 1-209-15d |
उच्चावचं पार्थिवभोजनीयं पात्रीषु जाम्बूनदराजतीषु। दासाश्च दास्यश्च सुमृष्टवेषाः संभोजकाश्चाप्युपजह्रुरन्नम्।। | 1-209-16a 1-209-16b 1-209-16c 1-209-16d |
ते तत्र भुक्त्वा पुरुषप्रवीरा यथात्मकामं सुभृशं प्रतीताः। उत्क्रम्य सर्वाणि वसूनि राज- न्सांग्रामिकं ते विविशुर्नृवीराः।। | 1-209-17a 1-209-17b 1-209-17c 1-209-17d |
तल्लक्षयित्वा द्रुपदस्य पुत्रा राजा च सर्वैः सह मन्त्रिमुख्यैः। समर्थयामासुरुपेत्य हृष्टाः कुन्तीसुतान्पार्थिवराजपुत्रान्।। | 1-209-18a 1-209-18b 1-209-18c 1-209-18d |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि वैवाहिकपर्वणि नवाधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 209 ।। |
1-209-1 जन्यार्थं वरपक्षीयजतार्थं।। 1-209-3 परियाप्य प्रस्थाप्य।। 1-209-9 कृन्तन्तीति कृत्यानि वास्यादीनि।। 1-209-11 वस्तुवन्ति मतोर्मस्य वत्वमार्षम्।। 1-209-13 गूढोत्तरांसान्गूढजत्रून् गूढोन्नतांसान् इति ङ. पाठः।। नवाधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 209 ।।
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