महाभारतम्-01-आदिपर्व-024
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राहुणा कृतोपद्रवस्य सूर्यस्य क्रोधः।। 1 ।। ब्रह्माज्ञयाऽरुणस्य सूर्यसारथ्यकरणम्।। 2 ।।
सौतिरुवाच। | 1-24-1x |
स श्रुत्वाऽथात्मनो देहं सुपर्णः प्रेक्ष्य च स्वयम्। शरीरप्रतिसंहारमात्मनः संप्रचक्रमे।। | 1-24-1a 1-24-1b |
सुपर्ण उवाच। | 1-24-2x |
न मे सर्वाणि भूतानि विभियुर्देहदर्शनात्। भीमरूपात्समुद्विग्रास्तस्मात्तेजस्तु संहरे।। | 1-24-2a 1-24-2b |
सौतिरुवाच। | 1-24-3x |
ततः कामगमः पक्षी कामवीर्यो विहंगमः। अरुणं चात्मनः पृष्ठमारोप्य स पितुर्गृहात्।। | 1-24-3a 1-24-3b |
मातुरन्तिकमागच्छत्परं तीरं महोदधेः। तत्रारुणश्च निक्षिप्तो पुरोदेशे महाद्युतेः।। | 1-24-4a 1-24-4b |
सूर्यस्तेजोभिरत्युग्रैर्लोकान्दग्धुमना यदा। | 1-24-5a |
रुरुरुवाच। | 1-24-5x |
किमर्थं भगवान्सूर्यो लोकान्दग्धुमनास्तदा।। | 1-24-5b |
किमस्तापहृतं देवैर्येनमं मन्युराविशत्। | 1-24-6a |
प्रमतिरुवाच। | 1-24-6x |
चन्द्रार्काभ्यां यदा राहुराख्यातो ह्यमृतं पिबन्।। | 1-24-6b |
वैरानुबन्धं कृतवांश्चन्द्रादित्यौ तदाऽनघ। बाध्यमानं ग्रहेणाथ ह्यादित्यं मन्युराविशत्।। | 1-24-7a 1-24-7b |
सुरार्थाय समुत्पन्नो रोषो राहोस्तु मां प्रति। बह्वनर्थकरं पापमेकोऽहं समवाप्नुयाम्।। | 1-24-8a 1-24-8b |
सहाय एव कार्येषु न च कृच्छ्रेषु दृश्यते। पश्यन्ति ग्रस्यमानं मां सहन्ते वै दिवौकसः।। | 1-24-9a 1-24-9b |
तस्माल्लोकविनाशार्थं ह्यवतिष्ठे न संशयः। एवं कृतमतिः सूर्यो ह्यस्तमभ्यगमद्गिरिम्।। | 1-24-10a 1-24-10b |
तस्माल्लोकविनाशाय संतापयत भास्करः। ततो देवानुपागम्य प्रोचुरेवं महर्षयः।। | 1-24-11a 1-24-11b |
आद्यार्धरात्रसमये सर्वलोकभयावहः। उत्पत्स्यते महान्दाहस्त्रैलोक्यस्य विनाशनः।। | 1-24-12a 1-24-12b |
ततो देवाः सर्षिगणा उपगम्य पितामहम्। अब्रुवन्किमिवेहाद्य महद्दाहकृतं भयम्।। | 1-24-13a 1-24-13b |
न तावद्दृश्यते सूर्यः क्षयोऽयं प्रतिभाति च। उदिते भगवन्भानौ कथनेतद्भविष्यति।। | 1-24-14a 1-24-14b |
पितामह उवाच। | 1-24-15x |
एष लोकविनाशाय रविरुद्यन्तुमुद्यतः। दृश्यन्नेव हि लोकान्स भस्मराशीकरिष्यति।। | 1-24-15a 1-24-15b |
तस्य प्रतिविधानं च विहितं पूर्वमेव हि। कश्यपस्य सुतो धीमानरुणेत्यभिविश्रुतः।। | 1-24-16a 1-24-16b |
महाकायो महातेजाः स स्थास्यति पुरो रवेः। करिष्यति च सारथ्यं तेजश्चास्य हरिष्यति।। | 1-24-17a 1-24-17b |
लोकानां स्वस्ति चैवं स्यादृषीणां च दिवौकसाम्। | 1-24-18a |
प्रमतिरुवाच। | 1-24-18x |
ततः पितामहाज्ञातः सर्वं चक्रे तदाऽरुणः।। | 1-24-18b |
उदितश्चैव सविता ह्यरुणेन समावृतः। एतत्ते सर्वमाख्यातं यत्सूर्यं मन्युराविशत्।। | 1-24-19a 1-24-19b |
अरुणश्च यथैवास्य सारथ्यमकरोत्प्रभुः। भूय एवापरं प्रश्नं शृणु पूर्वमुदाहृतम्।। | 1-24-20a 1-24-20b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि चतुर्विंशोऽध्यायः।। 24 ।। |
सम्पाद्यताम्
1-24-2 समुद्विग्नाः समुद्विग्नानि।। 1-24-7 चन्द्रादित्यौ प्रतीति शेषः।। 1-24-12 किमुत सूर्ये उदिते इति शेः।। चतुर्विंशोऽध्यायः।। 24 ।।
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