महाभारतम्-01-आदिपर्व-032
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देवगरुडयुद्धं तत्र देवानां पराजयः।। 1 ।।
सौतिरुवाच। | 1-32-1x |
`ततस्तस्माद्गिरिवरात्समुदीर्णमहाबलः।' गरुडः पक्षिराट् तूर्णं संप्राप्तो विबुधान्प्रति।। | 1-32-1a 1-32-1b |
तं दृष्ट्वातिबलं चैव प्राकम्पन्त सुरास्ततः। परस्परं च प्रत्यघ्नन्सर्वप्रहरणान्युत।। | 1-32-2a 1-32-2b |
तत्र चासीदमेयात्मा विद्युदग्निसमप्रभः। भौमनः सुमहावीर्यः सोमस्य परिरक्षिता।। | 1-32-3a 1-32-3b |
स तेन पतगेन्द्रेण पक्षतुण्डनखैः क्षतः। मुहूर्तमतुलं युद्धं कृत्वा विनिहतो युधि।। | 1-32-4a 1-32-4b |
रजश्चोद्धूय सुमहत्पक्षवातेन खेचरः। कृत्वा लोकान्निरालोकांस्तेन देवानवाकिरत्।। | 1-32-5a 1-32-5b |
तेनावकीर्णा रजसा देवा मोहमुपागमन्। न चैवं ददृशुश्छन्ना रजसाऽमृतरक्षिणः।। | 1-32-6a 1-32-6b |
एवं संलोडयामास गरुडस्त्रिदिवालयम्। पक्षतुण्डप्रहारैस्तु देवान्स विददार ह।। | 1-32-7a 1-32-7b |
ततो देवः सहस्राक्षस्तूर्णं वायुमचोदयत्। विक्षिपेमां रजोवृष्टिं तवेदं कर्म मारुत।। | 1-32-8a 1-32-8b |
सौतिरुवाच। | 1-32-9x |
अथ वायुरपोवाह तद्रजस्तरसा बली। ततो वितिमिरे जाते देवाः शकुनिमार्दयन्।। | 1-32-9a 1-32-9b |
ननादोच्चैः स बलवान्महामेघ इवाम्बरे। वध्यमानः सुरगणैः सर्वभूतानि भीषयन्।। | 1-32-10a 1-32-10b |
उत्पपात महावीर्यः पक्षिराट् परवीरहा। समुत्पत्यान्तरिक्षस्थं देवानामुपरि स्थितम्।। | 1-32-11a 1-32-11b |
वर्मिमो विबुधाः सर्वे नानाशस्त्रैरवाकिरन्। पट्टिशैः परिधैः शूलैर्गदाभिश्च सवासवाः।। | 1-32-12a 1-32-12b |
क्षुरप्रैर्ज्वलितैश्चापि चक्रैरादित्यरूपिभिः। नानाशस्त्रविसर्गैस्तैर्वध्यमानः समन्ततः।। | 1-32-13a 1-32-13b |
कुर्वन्सुतुमुलं युद्धं पक्षिराण्ण व्यकम्पत। निर्दहन्निव चाकाशे वैनतेयः प्रतापवान्। पक्षाभ्यामुरसा चैव समन्ताद्व्यक्षिपत्सुरान्।। | 1-32-14a 1-32-14b 1-32-14c |
ते विक्षिप्तास्ततो देवा दुद्रुवुर्गरुडार्दिताः। नखतुण्डक्षताश्चैव सुस्रुवुः शोणितं बहु।। | 1-32-15a 1-32-15b |
साध्याः प्राचीं सगन्धर्वा वसवो दक्षिणां दिशम्। प्रजग्मुः सहिता रुद्राः पतगेन्द्रप्रधर्षिताः।। | 1-32-16a 1-32-16b |
दिशं प्रतीचीमादित्या नासत्यावुत्तरां दिशम्। मुहुर्मुहुः प्रेक्षमाणा युध्यमानं महौजसः।। | 1-32-17a 1-32-17b |
अश्वक्रन्देन वीरेण रेणुकेन च पक्षिराट्। क्रथनेन च शूरेण तपनेन च खेचरः।। | 1-32-18a 1-32-18b |
उलूकश्वसनाभ्यां च निमेषेण च पक्षिराट्। प्ररुजेन च संग्रामं चकार पुलिनेन च।। | 1-32-19a 1-32-19b |
तान्पक्षनखतुण्डाग्रैरभिनद्विनतासुतः। युगान्तकाले संक्रुद्धः पिनाकीव परंतप।। | 1-32-20a 1-32-20b |
महाबला महोत्साहास्तेन ते बहुधा क्षताः। रेजुरभ्रघनप्रख्या रुधिरौघप्रवर्षिणः।। | 1-32-21a 1-32-21b |
तान्कृत्वा पतगश्रेष्ठः सर्वानुत्क्रान्तजीवितान्। अतिक्रान्तोऽमृतस्यार्थे सर्वतोऽग्निमपश्यत।। | 1-32-22a 1-32-22b |
आवृण्वानं महाज्वालमर्चिर्भिः सर्वतोऽम्बरम्। दहन्तमिव तीक्ष्णांशुं चण्डवायुसमीरितम्।। | 1-32-23a 1-32-23b |
सुशीघ्रमागम्य पुनर्जवेन।। | 1-33-24e |
ज्वलन्तमग्निं तममित्रतापनः समास्तरत्पत्ररथो नदीभिः। ततः प्रचक्रे वपुरन्यदल्पं प्रवेष्टुकामोऽग्निमभिप्रशाम्य।। | 1-32-25a 1-32-25b 1-32-25c 1-32-25d |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि द्वात्रिंशोऽध्यायः।। 32 ।। |
1-32-3 भौमनः विश्वकर्मा।। 1-32-4 विनिहतः मृतकल्पः कृतः।। 1-32-9 अपोवाह अपसारितवान्।। 1-32-24 नवत्याः नवतीः शताधिकाष्टसाहस्रीः।। 1-32-25 समास्तरत् आच्छादितवान् शामितवानित्यर्थः।। द्वात्रिंशोऽध्यायः।। 32 ।।
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