महाभारतम्-01-आदिपर्व-068
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जनमेजय उवाच। | 1-68-1x |
देवानां दानवानां च गन्धर्वोरगरक्षसाम्। सिंहव्याघ्रमृगाणां च पन्नगानां पतत्त्रिणाम्।। | 1-68-1a 1-68-1b |
अन्येषां चैव भूतानां संभवं भगवन्नहम्। श्रोतुमिच्छामि तत्त्वेन मानुषेषु महात्मनाम्। जन्म कर्म च भूतानामेतेषामनुपूर्वशः।। | 1-68-2a 1-68-2b 1-68-2c |
वैशंपायन उवाच। | 1-68-3x |
मानुषेषु मनुष्येन्द्र संभूता ये दिवौकसः। प्रथमं दानवाश्चैव तांस्ते वक्ष्यामि सर्वशः।। | 1-68-3a 1-68-3b |
विप्रचित्तिरिति ख्यातो य आसीद्दानवर्षभः। जरासन्ध इति ख्यातः स आसीन्मनुजर्षभः।। | 1-68-4a 1-68-4b |
दितेः पुत्रस्तु यो राजन्हिरण्यकशिपुः स्मृतः। स जज्ञे मानुषे लोके शिशुपालो नरर्षभः।। | 1-68-5a 1-68-5b |
संह्लाद इति विख्यातः प्रह्लादस्यानुजस्तु यः। स शल्य इति विख्यातो जज्ञे वाहीकपुङ्गवः।। | 1-68-6a 1-68-6b |
अनुह्लादस्तु तेजस्वी योऽभूत्ख्यातो जघन्यजः। धृष्टकेतुरिति ख्यातः स बभूव नरेश्वरः।। | 1-68-7a 1-68-7b |
यस्तु राजञ्शिबिर्नाम दैतेयः परिकीर्तितः। द्रुम इत्यभिविख्यातः स आसीद्भुवि पार्थिवः।। | 1-68-8a 1-68-8b |
बाष्कलो नाम यस्तेषामासीदसुरसत्तमः। भगदत्त इति ख्यातः सं जज्ञे पुरुषर्षभः।। | 1-68-9a 1-68-9b |
अयःशिरा अश्वशिरा अयःशङ्कुश्च वीर्यवान्। तथा गगनमूर्धा च वेगवांश्चात्र पञ्चमः।। | 1-68-10a 1-68-10b |
पञ्चैते जज्ञिरे राजन्वीर्यवन्तो महासुराः। केकयेषु महात्मानः पार्थिवर्षभसत्तमाः। केतुमानिति विख्यातो यस्ततोऽन्यःप्रतापवान्।। | 1-68-11a 1-68-11b 1-68-11c |
अमितौजा इति ख्यातः सोग्रकर्मा नराधिपः। स्वर्भानुरिति विख्यातः श्रीमान्यस्तु महासुरः।। | 1-68-12a 1-68-12b |
उग्रसेन इति ख्यात उग्रकर्मा नराधिपः। यस्त्वश्व इति विख्यातः श्रीमानासीन्महासुरः।। | 1-68-13a 1-68-13b |
अशोको नाम राजाऽभून्महावीर्योऽपराजितः। तस्मादवरजो यस्तु राजन्नश्वपतिः स्मृतः।। | 1-68-14a 1-68-14b |
दैतेयः सोऽभवद्राजा हार्दिक्यो मनुजर्षभः। वृषपर्वेति विख्यातः श्रीमान्यस्तु महासुरः।। | 1-68-15a 1-68-15b |
दीर्घप्रज्ञ इति ख्यातः पृथिव्यां सोऽभवन्नृपः। अजकस्त्ववरो राजन्य आसीद्वृषपर्वणः।। | 1-68-16a 1-68-16b |
स शाल्व इति विख्यातः पृथिव्यामभवन्नृपः। अश्वग्रीव इति ख्यातः सत्ववान्यो महासुरः।। | 1-68-17a 1-68-17b |
रोचमान इति ख्यातः पृथिव्यां कोऽभवन्नृपः। सूक्ष्मस्तु मतिमान्राजन्कीर्तिमान्यः प्रकीर्तितः।। | 1-68-18a 1-68-18b |
बृहद्रथ इति ख्यातः क्षितावासीत्स पार्थिवः। तुहुण्ड इति विख्यातो य आसीदसुरोत्तमः।। | 1-68-19a 1-68-19b |
सेनाबिन्दुरिति ख्यातः स बूभव नराधिपः। इषुमान्नाम यस्तेषामसुराणां बलाधिकः।। | 1-68-20a 1-68-20b |
नग्नजिन्नाम राजासीद्भुवि विख्यातविक्रमः। एकचक्र इति ख्यात आसीद्यस्तु महासुरः।। | 1-68-21a 1-68-21b |
प्रतिविन्घ्य इति ख्यातो बभूव प्रथितः क्षितौ। विरूपाक्षस्तु दैतेयश्चित्रयोधी महासुरः।। | 1-68-22a 1-68-22b |
चित्रधर्मेति विख्यातः क्षितावासीत्स पार्थिवः। हरस्त्वरिहरो वीर आसीद्यो दानवोत्तमः।। | 1-68-23a 1-68-23b |
सुबाहुरिति विख्यातः श्रीमानासीत्स पार्थिवः। अहरस्तु महातेजाः शत्रुपक्षक्षयंकरः।। | 1-68-24a 1-68-24b |
बाह्लिको नाम राजा स बभूव प्रथितः क्षितौ। निचन्द्रश्चन्द्रवक्त्रस्तु य आसीदसुरोत्तमः।। | 1-68-25a 1-68-25b |
मुञ्जकेश इति ख्यातः श्रीमानासीत्स पार्थिवः। निकुम्भस्त्वजितः संख्ये महामतिरजायत।। | 1-68-26a 1-68-26b |
भूमौ भूमिपतिश्रेष्ठो देवाधिप इति स्मृतः। शरभो नाम यस्तेषां दैतेयानां महासुरः।। | 1-68-27a 1-68-27b |
पौरवो नाम राजर्षिः स बभूव नरोत्तमः। कुपटस्तु महावीर्यः श्रीमान्राजन्महासुरः।। | 1-68-28a 1-68-28b |
सुपार्श्व इति विख्यातः क्षितौ जज्ञे महीपतिः। कपटस्तु राजन्राजर्षिः क्षितौ जज्ञे महासुरः।। | 1-68-29a 1-68-29b |
पार्वतेय इति ख्यातः काञ्चनाचलसन्निभः। द्वितीयः शलभस्तेषामसुराणां बभूव ह।। | 1-68-30a 1-68-30b |
प्रह्लादो नाम बाह्लीकः स बभूव नराधिपः। चन्द्रस्तु दितिजश्रेष्ठो लोके ताराधिपोपमः।। | 1-68-31a 1-68-31b |
चन्द्रवर्मेति विख्यातः काम्बोजानां नराधिपः। अर्क इत्यभिविख्यातो यस्तु दानवपुङ्गवः।। | 1-68-32a 1-68-32b |
ऋषिको नाम राजर्षिर्बभूव नृपसत्तमः। मृतपा इति विख्यातो य आसीदसुरोत्तमः।। | 1-68-33a 1-68-33b |
पश्चिमानूपकं विद्धि तं नृपं नृपसत्तम। गविष्ठस्तु महातेजा यः प्रख्यातो महासुरः।। | 1-68-34a 1-68-34b |
द्रुमसेन इति ख्यातः पृथिव्यां सोऽभवन्नृपः। मयूर इति विख्यातः श्रीमान्यस्तु महासुरः।। | 1-68-35a 1-68-35b |
स विश्व इति विख्यातो बभूव पृथिवीपतिः। सुपर्ण इति विख्यातस्तस्मादवरजस्तु यः।। | 1-68-36a 1-68-36b |
कालकीर्तिरिति ख्यातः पृथिव्यां सोऽभवन्नृपः। चन्द्रहन्तेति यस्तेषां कीर्तितः प्रवरोऽसुरः।। | 1-68-37a 1-68-37b |
शुनको नाम राजर्षिः स बभूव नराधिपः। विनाशनस्तु चन्द्रस्य य आख्यातो महासुरः।। | 1-68-38a 1-68-38b |
जानकिर्नाम विख्यातः सोऽभवन्मनुजाधिपः। दीर्घजिह्वस्तु कौरव्य य उक्तो दानवर्षभः।। | 1-68-39a 1-68-39b |
काशिराजः स विख्यातः पृथिव्यां पृथिवीपते। ग्रहं तु सुषुवे यं तु सिंहिकार्केन्दुमर्दनम्। स क्राथ इति विख्यातो बभूव मनुजाधिपः।। | 1-68-40a 1-68-40b 1-68-40c |
दनायुषस्तु पुत्राणां चतुर्णां प्रवरोऽसुरः। विक्षरो नाम तेजस्वी वसुमित्रो नृपः स्मृतः।। | 1-68-41a 1-68-41b |
द्वितीयो विक्षराद्यस्तु नराधिप महासुरः। पाण्ड्यराष्ट्राधिप इति विख्यातः सोऽभवन्नृपः।। | 1-68-42a 1-68-42b |
बली वीर इति ख्यातो यस्त्वासीदसुरोत्तमः। पौण्ड्रमात्स्यक इत्येवं बभूव स नराधिपः।। | 1-68-43a 1-68-43b |
वृत्र इत्यभिविख्यातो यस्तु राजन्महासुरः। मणिमान्नाम राजर्षिः स बभूव नराधिपः।। | 1-68-44a 1-68-44b |
क्रोधहन्तेति यस्तस्य बभूवावरजोऽसुरः। दण्ड इत्यभिविख्यातः स आसीन्नृपतिः क्षितौ।। | 1-68-45a 1-68-45b |
क्रोधवर्धन इत्येवं यस्त्वन्यः परिकीर्तितः। दण्डधार इति ख्यातः सोऽभवन्मनुजर्षभः।। | 1-68-46a 1-68-46b |
कालेयानां तु ये पुत्रास्तेषामष्टौ नराधिपाः। जज्ञिरे राजशार्दूल शार्दूलसमविक्रमाः।। | 1-68-47a 1-68-47b |
मगधेषु जयत्सेनस्तेषामासीत्स पार्थिवः। अष्टानां प्रवरस्तेषां कालेयानां महासुरः।। | 1-68-48a 1-68-48b |
द्वितीयस्तु ततस्तेषां श्रीमान्हरिहयोपमः। अपराजित इत्येवं स बभूव नराधिपः।। | 1-68-49a 1-68-49b |
तृतीयस्तु महातेजा महामायो महासुरः। निषादाधिपतिर्जज्ञे भुवि भीमपराक्रमः।। | 1-68-50a 1-68-50b |
तेषामन्यतमो यस्तु चतुर्थः परिकीर्तितः। श्रेणिमानिति विख्यातः क्षितौ राजर्षिसत्तमः।। | 1-68-51a 1-68-51b |
पञ्चमस्त्वभवत्तेषां प्रवरो यो महासुरः। महौजा इति विख्यातो बभूवेह परन्दपः।। | 1-68-52a 1-68-52b |
षष्ठस्तु मतिमान्यो वै तेषामासीन्महासुरः। अभीरुरिति विख्यातः क्षितौ राजर्षिसत्तमः।। | 1-68-53a 1-68-53b |
समुद्रसेनस्तु नृपस्तेषामेवाभवद्गणात्। विश्रुतः सागरान्तायां क्षितौ धर्मार्थतत्त्ववित्।। | 1-68-54a 1-68-54b |
बृहन्नामाष्टमस्तेषां कालेयानां नराधिप। बभूव राजा धर्मात्मा सर्वभूतहिते रतः।। | 1-68-55a 1-68-55b |
कुक्षिस्तु राजन्विख्यातो दानवानां महाबलः। पार्वतीय इति ख्यातः काञ्चनाचलसन्निभः।। | 1-68-56a 1-68-56b |
क्रथनश्च महावीर्यः श्रीमान्राजा महासुरः। सूर्याक्ष इति विख्यातः क्षितौ जज्ञे महीपतिः।। | 1-68-57a 1-68-57b |
असुराणां तु यः सकूर्यः श्रीमांश्चैव महासुरः। दरदो नाम बाह्लीको वरः सर्वमहीक्षिताम्।। | 1-68-58a 1-68-58b |
गणः क्रोधवशो नाम यस्ते राजन्प्रकीर्तितः। ततः संजज्ञिरे वीराः क्षिताविह नराधिपाः।। | 1-68-59a 1-68-59b |
मद्रकः कर्णवेष्टश्च सिद्धार्थः कीटकस्तथा। सुवीरश्च सुबाहुश्च महावीरोऽथ बाह्लिकः।। | 1-68-60a 1-68-60b |
क्रथो विचित्रः सुरथः श्रीमान्नीलश्च भूमिपः। चीरवासाश्च कौरव्य भूमिपालश्च नामतः।। | 1-68-61a 1-68-61b |
दन्तवक्त्रश्च नामासीद्दुर्जयश्चैव दानवः। रुक्मी च नृपशार्दूलो राजा च जनमेजयः।। | 1-68-62a 1-68-62b |
आषाढो वायुवेगश्च भूरितेजास्तथैव च। एकलव्यः सुमित्रश्च वाटधानोऽथ गोमुखः।। | 1-68-63a 1-68-63b |
कारूषकाश्च राजानः क्षेमधूर्तिस्तथैव च। श्रुतायुरुद्वहश्चैव बृहत्सेनस्तथैव च।। | 1-68-64a 1-68-64b |
क्षेमोग्रतीर्थः कुहरः कलिङ्गेषु नराधिपः। मतिमांश्च मनुष्येन्द्र ईश्वरश्चेति विश्रुतः।। | 1-68-65a 1-68-65b |
गणात्क्रोधवशादेष राजपूगोऽभवत्क्षितौ। जातः पुरा महाभागो महाकीर्तिर्महाबलः।। | 1-68-66a 1-68-66b |
कालनेमिरिति ख्यातो दानवानां महाबलः। स कंस इति विख्यात उग्रसेनसुतो बली।। | 1-68-67a 1-68-67b |
यस्त्वासीद्देवको नाम देवराजसमद्युतिः। स गन्धर्वपतिर्मुख्यः क्षितौ जज्ञे नराधिपः।। | 1-68-68a 1-68-68b |
बृहस्पतेर्बृहत्कीर्तेर्देवर्षेर्विद्धि भारत। अशाद्द्रोणं समुत्पन्नं भारद्वाजमयोनिजम्।। | 1-68-69a 1-68-69b |
धन्विनां नृपशार्दूल यः सर्वास्त्रविदुत्तमः। महाकीर्तिर्महातेजाः स जज्ञे मनुजेश्वर।। | 1-68-70a 1-68-70b |
धनुर्वेदे च वेदे च यं तं वेदविदो विदुः। वरिष्ठं चित्रकर्माणं द्रोणं स्वकुलवर्धनम्।। | 1-68-71a 1-68-71b |
महादेवान्तकाभ्यां च कामात्क्रोधाच्च भारत। एकत्वमुपसंपद्य जज्ञे शूरः परन्तपः।। | 1-68-72a 1-68-72b |
अश्वत्थामा महावीर्यः शत्रुपक्षभयावहः। वीरः कमलपत्राक्षः क्षितावासीन्नराधिपः।। | 1-68-73a 1-68-73b |
जज्ञिरे वसवस्त्वष्टौ गङ्गायां शन्तनोः सुताः। वसिष्ठस्य च शापेन नियोगाद्वासवस्य च।। | 1-68-74a 1-68-74b |
तेषामवरजो भीष्मः कुरूणामभयङ्करः। मतिमान्वेदविद्वाग्मी शत्रुपक्षक्षयङ्करः।। | 1-68-75a 1-68-75b |
जामदग्न्येन रामेण सर्वास्त्रविदुषां वरः। योऽप्युध्यत महातेजा भार्गवेण महात्मना।। | 1-68-76a 1-68-76b |
यस्तु राजन्कृपो नाम ब्रह्मर्षिरभवत्क्षितौ। रुद्राणां तु गणाद्विद्धि संभूतमतिपौरुषम्।। | 1-68-77a 1-68-77b |
शकुनिर्नाम यस्त्वासीद्राजा लोके महारथः। द्वापरं विद्धि तं राजन्संभूतमरिमर्दनम्।। | 1-68-78a 1-68-78b |
सात्यकिः सत्यसन्धश्च योऽसौ वृष्णिकुलोद्वहः। पक्षात्स जज्ञे मरुतां देवानामरिमर्दनः।। | 1-68-79a 1-68-79b |
द्रुपदश्चैव राजर्षिस्तत एवाभवद्गणात्। मानुषे नृप लोकेऽस्मिन्सर्वशस्त्रभृतां वरः।। | 1-68-80a 1-68-80b |
ततश्च कृतवर्माणं विद्धि राजञ्जनाधिपम्। तमप्रतिमकर्माणं क्षत्रियर्षभसत्तमम्।। | 1-68-81a 1-68-81b |
मरुतां तु गणाद्विद्धि संजातमरिमर्दनम्। विराटं नाम राजानं परराष्ट्रप्रतापनम्।। | 1-68-82a 1-68-82b |
अरिष्टायास्तु यः पुत्रो हंस इत्यभिविश्रुतः। स गन्धर्वपतिर्जज्ञे कुरुवंशविवर्धनः।। | 1-68-83a 1-68-83b |
धृतराष्ट्र इति ख्यातः कृष्णद्वैपायनात्मजः। दीर्घबाहुर्महातेजाः प्रज्ञाचक्षुर्नराधिपः।। मातुर्दोषादृषेः कोपादन्ध एव व्यजायत।। | 1-68-84a 1-68-84b 1-68-84c |
`मरुतां तु गणाद्वीरः सर्वशस्त्रभृतां वरः। पाण्डुर्जज्ञे महाबाहुस्तव पूर्वपितामहः।' तस्यैवावरजो भ्राता महासत्वो महाबलः।। | 1-68-85a 1-68-85b 1-68-85c |
धर्मात्तु सुमहाभागं पुत्रं पुत्रवतां वरम्। विदुरं विद्धि तं लोके जातं बुद्धिमतां वरम्।। | 1-68-86a 1-68-86b |
कलेरंशस्तु संजज्ञे भुवि दुर्योधनो नृपः। दुर्बद्धिर्दुर्मतिश्चैव कुरूणामयशस्करः।। | 1-68-87a 1-68-87b |
जगतो यस्तु सर्वस्य विद्विष्टः कलिपूरुषः। यः सर्वां घातयामास पृथिवीं पृथिवीपते।। | 1-68-88a 1-68-88b |
उद्दीपितं येन वैरं भूतान्तकरणं महत्। पौलस्त्या भ्रातरश्चास्य जज्ञिरे मनुजेष्विह।। | 1-68-89a 1-68-89b |
शतं दुःशासनादीनां सर्वेषां क्रूरकर्मणाम्। दुर्मुखो दुःसहश्चैव ये चान्ये नानुकीर्तिताः।। | 1-68-90a 1-68-90b |
दुर्योधनसहायास्ते पौलस्त्या भरतर्षभ। वैश्यापुत्रो युयुत्सुश्च धार्तराष्ट्रः शताधिकः।। | 1-68-91a 1-68-91b |
जनमेजय उवाच। | 1-68-92x |
ज्येष्ठानुज्येष्ठतामेषां नामधेयानि वा विभो। धृतराष्ट्रस्य पुत्राणामानुपूर्व्येण कीर्तय।। | 1-68-92a 1-68-92b |
वैशंपायन उवाच। | 1-68-93x |
दुर्योधनो युयुत्सुश्च राजन्दुःशासनस्तथा। दुःसहो दुःशलश्चैव दुर्मुखश्च तथापरः।। | 1-68-93a 1-68-93b |
विविंशतिर्विकर्णश्च जलसन्धः सुलोचनः। विन्दानुविन्दौ दुर्धर्षः सुबाहुर्दुष्प्रधर्षणः।। | 1-68-94a 1-68-94b |
दुर्मर्षणो दुर्मुखश्च दुष्कर्णः कर्ण एव च। चत्रोपचित्रौ चित्राक्षश्चारुचित्राङ्गदश्च ह।। | 1-68-95a 1-68-95b |
दुर्मदो दुष्प्रहर्षश्च विवित्सुर्विकटः समः। ऊर्णनाभः पद्मनाभस्तथा नन्दोपनन्दकौ।। | 1-68-96a 1-68-96b |
सेनापतिः सुषेणश्च कुण्डोदरमहोदरौ। चित्रबाहुश्चित्रवर्मा सुवर्मा दुर्विरोचनः।। | 1-68-97a 1-68-97b |
अयोबाहुर्महाबाहुश्चित्रचापसुकुण्डलौ। भीमवेगो भीमबलो बलाकी भीमविक्रमः।। | 1-68-98a 1-68-98b |
उग्रायुधो भीमशरः कनकायुर्दृढायुधः। दृढवर्मा दृढक्षत्रः सोमकीर्तिरनूदरः।। | 1-68-99a 1-68-99b |
जरासन्धो दृढसन्धः सत्यसन्धः सहस्रवाक्। उग्रश्रवा उग्रसेनः क्षेममूर्तिस्तथैव च।। | 1-68-100a 1-68-100b |
अपराजितः पण्डितको विशालाक्षो दुराधनः।। | 1-68-101a |
दृढहस्तः सुहस्तश्च वातवेगसुवर्चसौ। आदित्यकेतुर्बह्वाशी नागदत्तानुयायिनौ।। | 1-68-102a 1-68-102b |
कवाची निषङ्गी दण्डी दण्डधारो धनुर्ग्रहः। उग्रो भीमरथो वीरो वीरबाहुरलोलुपः।। | 1-68-103a 1-68-103b |
अभयो रौद्रकर्मा च तथा दृढरथश्च यः। अनाधृष्यः कुम्डभेदी विरावी दीर्घलोचनः।। | 1-68-104a 1-68-104b |
दीर्घबाहुर्महाबाहुर्व्यूढोरुः कनकाङ्गदः। कुण्डजश्चित्रकश्चैव दुःशला च शताधिका।। | 1-68-105a 1-68-105b |
वैश्यापुत्रो युयुत्सुश्च धार्तराष्ट्रः शताधिकः। एतदेकशतं राजन्कन्या चैका प्रकीर्तिता।। | 1-68-106a 1-68-106b |
नामधेयानुपूर्व्या च ज्येष्ठानुज्येष्ठतां विदुः। सर्वे त्वतिरथाः शूराः सर्वे युद्धविशारदाः।। | 1-68-107a 1-68-107b |
सर्वे वेदविदश्चैव राजञ्शास्त्रे च परागाः। सर्वे सङ्घ्रामविद्यासु विद्याभिजनशोभिनः।। | 1-68-108a 1-68-108b |
सर्वेषामनुरूपाश्च कृता दारा महीपते। दुःशलां समये राजसिन्धुराजाय कौरवः।। | 1-68-109a 1-68-109b |
जयद्रथाय प्रददौ सौबलानुमते तदा। धर्मस्यांशं तु राजानं विद्धि राजन्युधिष्ठिरम्।। | 1-68-110a 1-68-110b |
भीमसेनं तु वातस्य देवराजस्य चार्जुनम्। अश्विनोस्तु तथैवांशौ रूपेणाप्रतिमौ भुवि।। | 1-68-111a 1-68-111b |
नकुलः सहदेवश्च सर्वभूतमनोहरौ। स्युवर्चा इति ख्यातः सोमपुत्रः प्रतापवान्।। | 1-68-112a 1-68-112b |
सोऽभिमन्युर्बृहत्कीर्तिरर्जुनस्य सुतोऽभवत्। यस्यावतरणे राजन्सुरान्सोमोऽब्रवीदिदम्।। | 1-68-113a 1-68-113b |
नाहं दद्यां प्रियं पुत्रं मम प्राणैर्गरीयसम्। समयः क्रियतामेष न शक्यमतिवर्तितुम्।। | 1-68-114a 1-68-114b |
सुरकार्यं हि नः कार्यमसुराणां क्षितौ वधः। तत्र यास्यत्ययं वर्चा न च स्थास्यति वै चिरम्।। | 1-68-115a 1-68-115b |
ऐन्द्रिर्नरस्तु भविता यस्य नारायणः सखा। सोर्जुनेत्यभिविख्यातः पाण्डोः पुत्रः प्रतापवान्।। | 1-68-116a 1-68-116b |
तस्यायं भविता पुत्रो बालो भुवि महारथः। ततः षोडशवर्षाणि स्थास्यत्यमरसत्तमाः।। | 1-68-117a 1-68-117b |
अस्य षोडशवर्षस्य स सङ्ग्रामो भविष्यति। यत्रांशा वः करिष्यन्ति कर्म वीरनिषूदनम्।। | 1-68-118a 1-68-118b |
नरनारायणाभ्यां तु स सङ्ग्रामो विनाकृतः। चक्रव्यूहं समास्थाय योधयिष्यन्ति वःसुराः।। | 1-68-119a 1-68-119b |
विमुखाञ्छात्रवान्सर्वान्कारयिष्यति मे सुतः। बालः प्रविश्य च व्यूहमभेद्यं विचरिष्यति।। | 1-68-120a 1-68-120b |
महारथानां वीराणां कदनं च करिष्यति। सर्वेषामेव शत्रूणां चतुर्थांशं नयिष्यति।। | 1-68-121a 1-68-121b |
दिनार्धेन महाबाहुः प्रेतराजपुरं प्रति। ततो महारथैर्वीरैः समेत्य बहुशो रणे।। | 1-68-122a 1-68-122b |
दिनक्षये महाबाहुर्मया भूयः समेष्यति। एकं वंशकरं पुत्रं वीरं वै जनयिष्यति।। | 1-68-123a 1-68-123b |
प्रनष्टं भारतं वंशं स भूयो धारयिष्यति। | 1-68-124a |
वैशंपायन उवाच। | 1-68-124x |
एतत्सोमवचः श्रुत्वा तथास्त्विति दिवौकसः।। | 1-68-124b |
प्रत्यूचुः सहिताः सर्वे ताराधिपमपूजयन्। एवं ते कथितं राजंस्तव जन्म पितुः पितुः।। | 1-68-125a 1-68-125b |
प्रत्यूचुः सहिताः सर्वे ताराधिपमपूजयन्। एवं ते कथितं राजंस्तव जन्म पितुः पितुः।। | 1-68-125a 1-68-125b |
अग्नेर्भागं तु विद्धि त्वं धृष्टद्युम्नं महारथण्। शिखण्डिनमथो राजंस्त्रीपूर्वं विद्धि राक्षसम्।। | 1-68-126a 1-68-126b |
द्रौपदेयाश्च ये पञ्च बभूवुर्भरतर्षभ। विश्वान्देवगणान्विद्धि संजातान्भरतर्षभ।। | 1-68-127a 1-68-127b |
प्रतिविन्ध्यः सुतसोमः श्रुतकीर्तिस्तथापरः। नाकुलिस्तु शतानीकः श्रुतसेनश्च वीर्यवान्।। | 1-68-128a 1-68-128b |
शूरो नाम यदुश्रेष्ठो वसुदेवपिताऽभवत्। तस्य कन्या पृथा नाम रूपेणासदृशी भुवि। | 1-68-129a 1-68-129b |
पितुः स्वस्रीयपुत्राय सोऽनपत्याय वीर्यवान्। अग्रमग्रे प्रतिज्ञाय स्वस्यापत्यस्य वै तदा।। | 1-68-130a 1-68-130b |
अग्रजातेति तां कन्यां शूरोऽनुग्रहकाङ्क्षया। अददत्कुन्तिभोजाय स तां दुहितरं तदा।। | 1-68-131a 1-68-131b |
सा नियुक्ता पितुर्गेहे ब्राह्मणातिथिपूजने। उग्रं पर्यचरद्धोरं ब्राह्मणं संशितव्रतम्।। | 1-68-132a 1-68-132b |
निकूढनिश्चयं धर्मे यं तं दुर्वाससं विदुः। समुग्रं शंसितात्मानं सर्वयत्नैरतोषयत्।। | 1-68-133a 1-68-133b |
तुष्टोऽभिचारसंयुक्तमाचचक्षे यथाविधि। उवाच चैनां भगवान्प्रीतोऽस्मि सुभगे तव।। | 1-68-134a 1-68-134b |
यं यं देवं त्वमेतेन मन्त्रेणावाहयिष्यसि। तस्य तस्य प्रसादात्त्वं देवि पुत्राञ्जनिष्यसि।। | 1-68-135a 1-68-135b |
एवमुक्ता च सा बाला तदा कौतूहलान्विता। कन्या सती देवमर्कमाजुहाव यशस्विनी।। | 1-68-136a 1-68-136b |
प्रकाशकर्ता भगवांस्तस्यां गर्भं दधौ तदा। अजीजनत्सुतं चास्यां सर्वशस्त्रभृतांवरम्।। | 1-68-137a 1-68-137b |
सकुण्डलं सकवचं देवगर्भं श्रियान्वितम्। दिवाकरसमं दीप्त्या चारुसर्वाङ्गभूषितम्।। | 1-68-138a 1-68-138b |
निगूहमाना जातं वै बन्धुपक्षभयात्तदा। उत्ससर्ज जले कुन्ती तं कुमारं यशस्विनम्।। | 1-68-139a 1-68-139b |
तमुत्सृष्टं जले गर्भं राधाभर्ता महायशाः। राधायाः कल्पयामास पुत्रं सोऽधिरथस्तदा।। | 1-68-140a 1-68-140b |
चक्रतुर्नामधेयं च तस्य बालस्य तावुभौ। दंपती वसुषेणेति दिक्षु सर्वासु विश्रुतम्।। | 1-68-141a 1-68-141b |
संवर्धमानो बलवान्सर्वास्त्रेषूत्तमोऽभवत्। वेदाङ्गानि च सर्वाणि जजाप जपतां वरः।। | 1-68-142a 1-68-142b |
यस्मिन्काले जपन्नास्ते धीमान्सत्यपराक्रमः। नादेयं ब्राह्मणेष्वासीत्तस्मिन्काले महात्मनः।। | 1-68-143a 1-68-143b |
तमिन्द्रो ब्राह्मणो भूत्वा पुत्रार्थे भूतभावनः। ययाचे कुण्डले वीरं कवचं च सहाङ्गजम्।। | 1-68-144a 1-68-144b |
उत्कृत्य कर्णो ह्यददत्कवचं कुण्डले तथा।। शक्तिं शक्रो ददौ तस्मै विस्मितश्चेदमब्रवीत्।। | 1-68-145a 1-68-145b |
देवासुरमनुष्याणां गन्धर्वोरगरक्षसाम्। यस्मिन्क्षेप्स्यसि दुर्धर्ष स एको न भविष्यति।। | 1-68-146a 1-68-146b |
वैशंपायन उवाच। | 1-68-147x |
पुरा नाम च तस्यासीद्वसुषेण इति क्षितौ। ततो वैकर्तनः कर्णः कर्मणा तेन सोऽभवत्।। | 1-68-147a 1-68-147b |
आमुक्तकवचो वीरो यस्तु जज्ञे महायशाः। स कर्ण इति विख्यातः पृथायाः प्रथमः सुतः।। | 1-68-148a 1-68-148b |
स तु सूतकुले वीरो ववृधे राजसत्तम। कर्णं नरवरश्रेष्ठं सर्वशस्त्रभृतां वरम्।। | 1-68-149a 1-68-149b |
दुर्योधनस्य सचिवं मित्रं शत्रुविनाशनम्। दिवाकरस्य तं विद्धि राजन्नंशमनुत्तमम्।। | 1-68-150a 1-68-150b |
यस्तु नारायणो नाम देवदेवः सनातनः। तस्यांशो मानुषेष्वासीद्वासुदेवः प्रतापवान्।। | 1-68-151a 1-68-151b |
शेषस्यांशश्च नागस्य बलदेवो महाबलः। सनत्कुमारं प्रद्युम्नं विद्धि राजन्महौजसम्।। | 1-68-152a 1-68-152b |
एवमन्ये मनुष्येन्द्रा बहवोंशा दिवौकसाम्। जज्ञिरे वसुदेवस्य कुले कुलविवर्धनाः।। | 1-68-153a 1-68-153b |
गणस्त्वप्सरसां यो वै मया राजन्प्रकीर्तितः। तस्य भागः क्षितौ जज्ञे नियोगाद्वासवस्य ह।। | 1-68-154a 1-68-154b |
तानि षोडशदेवीनां सहस्राणि नराधिप। बभूवुर्मानुषे लोके वासुदेवपरिग्रहः।। | 1-68-155a 1-68-155b |
श्रियस्तु भागः संजज्ञे रत्यर्थं पृथिवीतले। [भीष्मकस्य कुले साध्वी रुक्मिणी नाम नामतः।। | 1-68-156a 1-68-156b |
द्रौपदी त्वथ संजज्ञे शची भागादनिन्दिता।] द्रुपदस्य कुले जाता वेदिमध्यादनिन्दिता।। | 1-68-157a 1-68-157b |
नातिह्रस्वा न महती नीलोत्पलसुगन्धिनी। पद्मायताक्षी सुश्रोणी स्वसिताञ्चितमूर्धजा।। | 1-68-158a 1-68-158b |
सर्वलक्षणसंपन्ना वैदूर्यमणिसंनिभा। पञ्चानां पुरुषेन्द्राणां चित्तप्रमथनी रहः।। | 1-68-159a 1-68-159b |
सिद्धिर्धृतिश्च ये देव्यौ पञ्चानां मातरौ तु ते। कुन्ती माद्री च जज्ञाते मतिस्तु कुबलात्मजा।। | 1-68-160a 1-68-160b |
इति देवासुराणां ते गन्धर्वाप्सरसां तथा। अंशावतरणं राजन्राक्षसानां च कीर्तितम्।। | 1-68-161a 1-68-161b |
ये पृथिव्यां समुद्भूता राजानो युद्धदुर्मदाः। महात्मानो यदूनां च ये जाता विपुले कुले।। | 1-68-162a 1-68-162b |
ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्या मया ते परिकीर्तिताः। धन्यं यशस्यं पुत्रीयमायुष्यं विजयावहम्।। | 1-68-163a 1-68-163b |
इदमंशावतरणं श्रोतव्यमनसूयता। अंशावतरणं श्रुत्वा देवगन्धर्वरक्षसाम्।। | 1-68-164a 1-68-164b |
प्रभवाप्ययवित्प्राज्ञो न कृच्छ्रेष्ववसीदति।। | 1-68-165a |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि अष्टषष्टितमोऽध्यायः।। 68 ।। |
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कुण्डलितोयं पाठः क्वचिन्न दृश्यते।
आदिपर्व-067 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-069 |