महाभारतम्-01-आदिपर्व-059
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(अथांशावतरणपर्व।। 6 ।।) सौतेर्भारतकथनप्रतिज्ञा।। 1 ।।
शौनक उवाच। | 1-59-1x |
भृगुवंशात्प्रभृत्येव त्वया मे कीर्तितं महत्। आख्यानमखिलं तात सौते प्रीतोऽस्मितेन ते।। | 1-59-1a 1-59-1b |
प्रक्ष्यामि चैव भूयस्त्वां यथावत्सूतनन्दन। याः कथा व्याससंपन्नास्ताश्च भूयो विचक्ष्व मे।। | 1-59-2a 1-59-2b |
तस्मिन्परमदुष्पारे सर्पसत्रे महात्मनाम्। कर्मान्तरेषु यज्ञस्य सदस्यानां तथाऽध्वरे।। | 1-59-3a 1-59-3b |
या बभूवुः कथाश्चित्रा येष्वर्थेषु यथातथम्। त्वत्त इच्छामहे श्रोतुं सौते त्वं वै प्रचक्ष्व नः।। | 1-59-4a 1-59-4b |
सौतिरुवाच। | 1-59-5x |
कर्मान्तरेष्वकथयन्द्विजा वेदाश्रयाः कथाः। व्यासस्त्वकथयच्चित्रमाख्यानं भारतं महत्।। | 1-59-5a 1-59-5b |
शौनक उवाच। | 1-59-6x |
महाभारतमाख्यानं पाण्डवानां यशस्करम्। जनमेजयेन पृष्टः सन्कृष्णद्वैपायनस्तदा।। | 1-59-6a 1-59-6b |
श्रावयामास विधिवत्तदा कर्मान्तरे तु सः। तामहं विधिवत्पुण्यां श्रोतुमिच्छामि वै कथाम्।। | 1-59-7a 1-59-7b |
मनःसागरसंभूतां महर्षेर्भावितात्मनः। कथयस्व सतां श्रेष्ठ सर्वरत्नमयीमिमाम्।। | 1-59-8a 1-59-8b |
सौतिरुवाच। | 1-59-9x |
हन्त ते कथयिष्यामि महदाख्यानमुत्तमम्। कृष्णद्वैपायनमतं महाभारतमादितः।। | 1-59-9a 1-59-9b |
शृणु सर्वमशेषेण कथ्यमानं मया द्विज। शंसितुं तन्महान्हर्षो ममापीह प्रवर्तते।। | 1-59-10a 1-59-10b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि अंशावतरणपर्वणि एकोनषष्टितमोऽध्यायः।। 59 ।। |
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