महाभारतम्-01-आदिपर्व-039
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एलापत्रोपदेशेन वासुकिभगिन्या जरत्कार्वा रक्षणम्।। 1 ।।
सौतिरुवाच। | 1-39-1x |
एलापत्रवचः श्रुत्वा ते नागा द्विजसत्तम। सर्वे प्रहृष्टमनसः साधुसाध्वित्यपूजयन्।। | 1-39-1a 1-39-1b |
ततःप्रभृति तां कन्यां वासुकिः पर्यरक्षत। जरत्कारुं स्वसारं वै परं हर्षमवाप च।। | 1-39-2a 1-39-2b |
ततो नातिमहान्कालः समतीत इवाभवत्। अथ देवासुराः `सर्वे ममन्थुर्वरुणालयम्।। | 1-39-3a 1-39-3b |
तत्र नेत्रमभून्नागो वासुकिर्बलिनां वरः। समाप्यैव च तत्कर्म पितामहमुपागमन्।। | 1-39-4a 1-39-4b |
देवा वासुकिना सार्धं पितामहमथाव्रुवन्। भगवञ्शापभीतोऽयं वासुकिस्तप्यते भृशम्।। | 1-39-5a 1-39-5b |
अस्यैतन्मानसं शल्यं समुद्धर्तुं त्वमर्हसि। जनन्याः शापजं देव ज्ञातीनां हितमिच्छतः।। | 1-39-6a 1-39-6b |
हितो ह्ययं सदास्मकं प्रियकारी च नागराट्। प्रसादं कुरु देवेश शमयास्य मनोज्वरम्।। | 1-39-7a 1-39-7b |
ब्रह्मोवाच। | 1-39-8x |
मयैव तद्वितीर्णं वै वचनं मनसाऽमराः। एलापत्रेण नागेन यदस्याभिहितं पुरा।। | 1-39-8a 1-39-8b |
तत्करोत्वेष नागेन्द्रः प्राप्तकालं वचः स्वयम्। विनशिष्यन्ति ये पापा न तु ये धर्मचारिणः।। | 1-39-9a 1-39-9b |
उत्पन्नः स जरत्कारुस्तपस्युग्रे रतो द्विजः। तस्यैष भगिनीं काले जरत्कारुं प्रयच्छतु।। | 1-39-10a 1-39-10b |
एलापत्रेण यत्प्रोक्तं वचनं भुजगेन ह। पन्नगानां हितं देवास्तत्तथा न तदन्यथा।। | 1-39-11a 1-39-11b |
सौतिरुवाच। | 1-39-12x |
एतच्छ्रुत्वा तु नागेन्द्रः पितामहवचस्तदा। संदिश्य पन्नगान्सर्वान्वासुकिः शापमोहितः।। | 1-39-12a 1-39-12b |
स्वसारमुद्यम्य तदा जरत्कारुमृषिं प्रति। सर्पान्बहूञ्जरत्कारौ नित्ययुक्तान्समादधत्।। | 1-39-13a 1-39-13b |
जरत्कारुर्यदा भार्यामिच्छेद्वरयितुं प्रभुः। शीघ्रमेत्य तदाऽऽख्येयं तन्नः श्रेयो भविष्यति।। | 1-39-14a 1-39-14b |
।। इति श्रीमनमहाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि एकोनचत्वारिंशोऽध्यायः।। 39 ।। |
1-39-4 नेत्रं रज्जुः।। 1-39-13 जरत्कारौ जरत्कारुऋषिनिमित्तं। तदन्वेषणायेत्यर्थः।। एकोनचत्वारिंशोऽध्यायः।। 39 ।।
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