महाभारतम्-01-आदिपर्व-111
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विचित्रवीर्यस्य अम्बिकाम्बालिकाश्यां विवाहः।। 1 ।।
विचित्रवीर्यमरणम्।। 2 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-111-1x |
अम्बायां निर्गतायां तु भीष्मः शान्तनवस्तदा। न्यायेन कारयामास राज्ञो वैवाहिकीं क्रियाम्।। | 1-111-1a 1-111-1b |
अम्बिकाम्बालिके चैव परिणीयाग्निसंनिधौ। `तयोः पाणी गृहीत्वा तु कौरव्यो रूपदर्पितः।' विचित्रवीर्यो धर्मात्मा कामात्मा समपद्यत।। | 1-111-2a 1-111-2b 1-111-2c |
ते चापि बृहतीश्यामे नीलकुञ्चितमूर्धजे। रक्ततुङ्गनखोपेते पीनश्रोणिपयोधऱे।। | 1-111-3a 1-111-3b |
आत्मनः प्रतिरूपोऽसौ लब्धः पतिरिति स्थिते। विचित्रवीर्यं कल्याण्यौ पूजयामासतुः शुभे।। | 1-111-4a 1-111-4b |
`अन्योन्यं प्रति सक्ते च एकभावे इव स्थिते।' स चाश्विरूपसदृशो देवतुल्यपराक्रमः। सर्वासामेव नारीणां चित्तप्रमथनो रहः।। | 1-111-5a 1-111-5b 1-111-5c |
ताभ्यां सह समाः सप्त विहरन्पृथिवीपतिः। विचित्रवीर्यस्तरुणो यक्ष्मणा समगृह्यत।। | 1-111-6a 1-111-6b |
सुहृदां यतमानानामाप्तैः सह चिकित्सकैः। जगामास्तमिवादित्यः कौरव्यो यमसादनम्।। | 1-111-7a 1-111-7b |
धर्मात्मा स तु गाङ्गेयः चिन्ताशोकपरायणः। प्रेतकार्याणि सर्वाणि तस्य सम्यगकारयत्।। | 1-111-8a 1-111-8b |
राज्ञो विचित्रवीर्यस्य सत्यवत्या मते स्थितः। ऋत्विग्बिः सहितो भीष्मः सर्वैश्च कुरुपुङ्गवैः।। प्रसीद यज्ञसेनेह गतिर्मे भव सोमक।। | 1-111-9a 1-111-9b 1-110-11b |
1-111-3 बृहतीश्यामे बृहतीपुष्पद्रक्तश्यामे।। 1-111-4 प्रतिरूपः अनुरूपः।। एकादशाधिकशततमोऽध्यायः।। 111 ।।
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