महाभारतम्-01-आदिपर्व-119
← आदिपर्व-118 | महाभारतम् प्रथमपर्व महाभारतम्-01-आदिपर्व-119 वेदव्यासः |
आदिपर्व-120 → |
धृतराष्ट्रविवाहार्थं भीष्मविदुरसंवादः।। 1 ।।
धृतराष्ट्रस्य गान्धार्या विवाहः।। 2 ।।
भीष्म उवाच। | 1-119-1x |
गुणैः समुदितं सम्यगिदं नः प्रथितं कुलम्। अत्यन्यान्पृथिवीपालान्पृथिव्यामधिराज्यभाक्।। | 1-119-1a 1-119-1b |
रक्षितं राजभिः पूर्वं धर्मविद्भिर्महात्मभिः। नोत्सादमगमच्चेदं कदाचिदिह नः कुलम्।। | 1-119-2a 1-119-2b |
मया च सत्यवत्या च कृष्णेन च महात्मना। समवस्थापित भूयो युष्मासु कुलतन्तुषु।। | 1-119-3a 1-119-3b |
तच्चैतद्वर्धते भूयः कुलं सागरवद्यथा। तथा मया विधातव्यं त्वया चैव न संशयः।। | 1-119-4a 1-119-4b |
श्रूयते यादवी कन्या स्वनुरूपा कुलस्य नः। सुबलस्यात्मजा चैव तथा मद्रेश्वरस्य च।। | 1-119-5a 1-119-5b |
कुलीना रूपवत्यश्च ताः कन्याः पुत्र सर्वशः। उचिताश्चैव संबन्धे तेऽस्माकं क्षत्रियर्षभाः।। | 1-119-6a 1-119-6b |
मन्ये वरयितव्यास्ता इत्यहं धीमतां वर। सन्तानार्थं कुलस्यास्य यद्वा विदुर मन्यसे।। | 1-119-7a 1-119-7b |
विदुर उवाच। | 1-119-8x |
भवान्पिता भावन्माता भवान्नः परमो गुरुः। तस्मात्स्वयं कुलस्यास्य विचार्य कुरु यद्धितम्।। | 1-119-8a 1-119-8b |
वैशंपायन उवाच। | 1-119-9x |
अथ शुश्राव विप्रेभ्यो गान्धारीं सुबलात्मजाम्। आराध्य वरदं देवं भगनेत्रहरं हरम्।। | 1-119-9a 1-119-9b |
गान्धारी किल पुत्राणां शतं लेभे वरं शुभा। इति शुश्राव तत्त्वेन भीष्मः कुरुपितामहः।। | 1-119-10a 1-119-10b |
ततो गान्धारराजस्य प्रेषयामास भारत। अचक्षुरिति तत्रासीत्सुबलस्य विचारणा।। | 1-119-11a 1-119-11b |
कुलं ख्यातिं च वृत्तं च बुद्ध्या तु प्रसमीक्ष्य सः। ददै तां धृतराष्ट्राय गान्धारीं धर्मचारिणीम्।। | 1-119-12a 1-119-12b |
गान्धारी त्वथ शुश्राव धृतराष्ट्रमचक्षुषम्। आत्मानं दिप्सितं चास्मै पित्रा मात्रा च भारत।। | 1-119-13a 1-119-13b |
ततः सा पटमादाय कृत्वा बहुगुणं तदा। बबन्ध नेत्रे स्वे राजन्पतिव्रतपरायणा।। | 1-119-14a 1-119-14b |
नाभ्यसूयां पतिमहमित्येवं कृतनिश्चया। ततो गान्धारराजस्य पुत्रः शकुनिरभ्ययात्।। | 1-119-15a 1-119-15b |
स्वसारं परया लक्ष्म्या युक्तामादाय कौरवान्। तां तदा धृतराष्ट्राय ददौ परमसत्कृताम्। भीष्मस्यानुमते चैव विवाहं समकारयत्।। | 1-119-16a 1-119-16b 1-119-16c |
दत्त्वा स भगिनीं वीरो यथार्हं च परिच्छदम्। पुनरायात्स्वनगरं भीष्मेण प्रतिपूजितः।। | 1-119-17a 1-119-17b |
गान्धार्यपि वरारोहा शीलाचारविचिषेटितैः। तुष्टिं कुरूणां सर्वेषां जनयामास भारत।। | 1-119-18a 1-119-18b |
`गान्धारी सा पतिं दृष्ट्वा प्रज्ञाचक्षुषमीश्वरम्। अतिचाराद्भृशं भीता भर्तुः सा समचिन्तयत्।। | 1-119-19a 1-119-19b |
सा दृष्टिविनिवृत्त्या हि भर्तुश्च समतां ययौ। नहि सूक्ष्मेप्यतीचारे भर्तुः सा ववृते तदा।। | 1-119-20a 1-119-20b |
वृत्तेनाराध्य तान्सर्वान्गुरून्पतिपरायणा। वाचापि पुरुषानन्यान्सुव्रता नान्वकीर्तयत्।। | 1-119-21a 1-119-21b |
तस्याः सहोदरीः कन्याः पुनरेव ददौ दश। गान्धारराजः सुबलो भीष्मेण च वृतस्तदा।। | 1-119-22a 1-119-22b |
सत्यव्रतां सत्यसेनां सुदेष्णां चापि संहिताम्। तेजश्श्र्वां सुश्रवां च तथैव निकृतिं शुभाम्।। | 1-119-23a 1-119-23b |
शंभ्वठां च दशार्णां च गान्धारीर्दश विश्रुताः। एकाह्ना प्रतिजग्राह धृतराष्ट्रो जनेश्वरः।। | 1-119-24a 1-119-24b |
ततः शान्तनवो भीष्मो धानुष्कस्तास्ततस्ततः। अददाद्धृतराष्ट्रस्य राजपुत्रीः परश्शतम्।।' | 1-119-25a 1-119-25b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि एकोनविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 119 ।। |
1-119-5 यादवी यादवस्य कुन्तिभोजस्य अपत्यम्।। 1-119-11 प्रेषयामास दूतमिति शेषः।। 1-119-13 दित्सितं दातुमिष्टम्।। 1-119-14 बहुगुणं बहुधागुणितम्।। 1-119-15 नाभ्यसूयां पत्युरभिभवं न कुर्याम्।। एकोनविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 119 ।।
आदिपर्व-118 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-120 |