महाभारतम्-01-आदिपर्व-035
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सर्पनामकथनम्।। 1 ।।
शौनक उवाच। | 1-35-1x |
भुजङ्गमानां शापस्य मात्रा चैव सुतेन च। विनतायास्त्वया प्रोक्तं कारणं सूतनन्दन।। | 1-35-1a 1-35-1b |
वरप्रदानं भर्त्रा च कद्रूविनतयोस्तथा। नामनी चैव ते प्रोक्ते पक्षिणोर्वैनतेययोः।। | 1-35-2a 1-35-2b |
पन्नगानां तु नामानि न कीतर्यसि सूतज। प्राधान्येनापि नामानि श्रोतुमिच्छामहे वयम्।। | 1-35-3a 1-35-3b |
सौतिरुवाच। | 1-35-4x |
बहुत्वान्नामधेयानि पन्नगानां तपोधन। न कीर्तयिष्ये सर्वेषां प्राधान्येन तु मे शृणु।। | 1-35-4a 1-35-4b |
शेषः प्रथमतो जातो वासुकिस्तदनन्तरम्। ऐरावतस्तक्षकश्च कर्कोटकधनञ्जयौ।। | 1-35-5a 1-35-5b |
कालियो मणिनागश्च नागश्चापूरणस्तथा। नागस्तथा पिञ्जरक एलापत्रोऽथ वामनः।। | 1-35-6a 1-35-6b |
नीलानीलौ तथा नागौ कल्माषशबलौ तथा। आर्यकश्चोग्रकश्चैव नागः कलशपोतकः।। | 1-35-7a 1-35-7b |
सुमनाख्यो दधिमुखस्तथा विमलपिण्डकः। आप्तः कोटरकश्चैव शङ्खो वालिशिखस्तथा।। | 1-35-8a 1-35-8b |
निष्टानको हेमगुहो नहुषः पिङ्गलस्तथा। बाह्यकर्णो हस्तिपदस्तथा मुद्गरपिण्डकः।। | 1-35-9a 1-35-9b |
कम्बलाश्वतरौ चापि नागः कालीयकस्तथा। वृत्तसंवर्तकौ नागौ द्वौ च पद्माविति श्रुतौ।। | 1-35-10a 1-35-10b |
नागः शङ्खमुखश्चैव तथा कूष्माण्डकोऽपरः। क्षेमकश्च तथा नागो नागः पिण्डारकस्तथा।। | 1-35-11a 1-35-11b |
करवीरः पुष्पदंष्ट्रो बिल्वको बिल्वपाण्डुरः। मूषकादः शङ्खशिराः पूर्णभद्रो हरिद्रकः।। | 1-35-12a 1-35-12b |
अपराजितो ज्योतिकश्च पन्नगः श्रीवहस्तथा। कौरव्यो धृतराष्ट्रश्च शङ्खपिण्डश्च वीर्यवान्।। | 1-35-13a 1-35-13b |
विरजाश्च सुबाहुश्च शालिपिण्डश्च वीर्यवान्। हस्तिपिण्डः पिठरकः सुमुखः कौणपाशनः।। | 1-35-14a 1-35-14b |
कुठऱः कुञ्जरश्चैव तथा नागः प्रभाकरः। कुमुदः कुमुदाक्षश्च तित्तिरिर्हलिकस्तथा।। | 1-35-15a 1-35-15b |
कर्दमश्च महानागो नागश्च बहुमूलकः। कर्कराकर्करौ नागौ कुण्डोदरमहोदरौ।। | 1-35-16a 1-35-16b |
एते प्राधान्यतो नागाः कीर्तिता द्विजसत्तम। बहुत्वान्नामधेयानामितरे नानुकीर्तिताः।। | 1-35-17a 1-35-17b |
एतेषां प्रसवो यश्च प्रसवस्य च संततिः। असङ्ख्येयेति मत्त्वा तान्न ब्रवीमि तपोधन।। | 1-35-18a 1-35-18b |
बहूनीह सहस्राणि प्रयुतान्यर्बुदानि च। अशक्यान्येव सङ्ख्यातुं पन्नगानां तपोधन।। | 1-35-19a 1-35-19b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि पञ्चत्रिंशोऽध्यायः।। 35 ।। |
1-35-1 भुजङ्गमानां मात्रा शापो दत्तस्तस्य कारणं अवज्ञया मातुराज्ञाकारित्वं। विनतायाः सुतेन अरुणेन शापो दत्तस्तस्य कारणं सपत्नीर्ष्या।। पञ्चत्रिंशोऽध्यायः।। 35 ।।
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