महाभारतम्-01-आदिपर्व-190
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गन्धर्वेण वसिष्ठमाहात्म्यकथनपूर्वकं पाण्डवानां पुरोहितसंग्रहणोपदेशः।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-190-1x |
स गन्धर्ववचः श्रुत्वा तत्तदा भरतर्षभ। अर्जुनः परया भक्त्या पूर्णचन्द्र इवाबभौ।। | 1-190-1a 1-190-1b |
उवाच च महेष्वासो गन्धर्वं कुरुसत्तमः। जातकौतूहलोऽतीव वसिष्ठस्य तपोबलात्।। | 1-190-2a 1-190-2b |
वसिष्ठ इति तस्यैतदृषेर्नाम त्वयेरितम्। एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं यथावत्तद्वदस्व मे।। | 1-190-3a 1-190-3b |
य एष गन्धर्वपते पूर्वेषां नः पुरोहितः। आसीदेतन्ममाचक्ष्व क एष भगवानृषिः।। | 1-190-4a 1-190-4b |
गन्धर्व उवाच। | 1-190-5x |
ब्रह्मणो मानसः पुत्रो वसिष्ठोऽरुन्धतीपतिः। तपसा निर्जितौ शश्वदजेयावमरैरपि।। | 1-190-5a 1-190-5b |
कामक्रोधावुभौ यस्य चरणौ समुवाहतुः। इन्द्रियाणां वशकरो वशिष्ठ इति चोच्यते।। | 1-190-6a 1-190-6b |
`यथा कामश्च क्रोधश्च निर्जितावजितौ नरैः। जितारयो जिता लोकाः पन्थानश्च जिता दिशः।।' | 1-190-7a 1-190-7b |
यस्तु नोच्छेदनं चक्रे कुशिकानामुदारधीः। विश्वामित्रापराधेन धारयन्मन्युमुत्तमम्।। | 1-190-8a 1-190-8b |
पुत्रव्यसनसंतप्तः शक्तिमानप्यशक्तवत्। विश्वामित्रविनाशाय न चक्रे कर्म दारुणम्।। | 1-190-9a 1-190-9b |
मृतांश्च पुनराहर्तुं शक्तः पुत्रान्यमक्षयात्। कृतान्तं नातिचक्राम वेलामिव महोदधिः।। | 1-190-10a 1-190-10b |
यं प्राप्य विजितात्मानं महात्मानं नराधिपाः। इक्ष्वाकवो महीपाला लेभिरे पृथिवीमिमाम्।। | 1-190-11a 1-190-11b |
पुरोहितमिमं प्राप्य वसिष्ठमृषिसत्तमम्। ईजिरे क्रतुभिश्चैव नृपास्ते कुरुनन्दन।। | 1-190-12a 1-190-12b |
स हि तान्याजयामास सर्वान्नृपतिसत्तमान्। ब्रह्मर्षिः पाण्डवश्रेष्ठ बृहस्पतिरिवामरान्।। | 1-190-13a 1-190-13b |
तस्माद्धर्मप्रधानात्मा वेदधर्मविदीप्सितः। ब्राह्मणो गुणवान्कश्चित्पुरोधाः प्रतिदृश्यताम्।। | 1-190-14a 1-190-14b |
क्षत्रियेणाभिजातेन पृथिवीं जेतुमिच्छता। पूर्वं पुरोहितः कार्यः पार्थ राज्याभिवृद्धये।। | 1-190-15a 1-190-15b |
महीं जिगीषता राज्ञा ब्रह्म कार्यं पुरःस्कृतम्। तस्मात्पुरोहितः कश्चिद्गुणवान्विजितेन्द्रियः। विद्वान्भवतु वो विप्रो धर्मकामार्थतत्त्ववित्।। | 1-190-16a 1-190-16b 1-190-16c |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वमि चैत्ररथपर्वणि नवत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 190 ।। |
1-190-2 तपोबलात् तपोबलं श्रुत्वा।। 1-190-7 जितारयः जिता अस्य इति च्छेदः।। 1-190-8 अपराधेन पुत्रशतवधरूपेण।। नवत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 190 ।।
आदिपर्व-189 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-191 |