महाभारतम्-01-आदिपर्व-026
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स्तुत्या तुष्टेन इन्द्रेण कृतं जलवर्षणम्।। 1 ।।
सौतिरुवाच। | 1-26-1x |
एवं स्तुतस्तदा कद्र्वा भगवान्हरिवाहनः। नीलजीमूतसंघातैः सर्वमम्बरमावृणोत्।। | 1-26-1a 1-26-1b |
मेघानाज्ञापयामास वर्षध्वममृतं शुभम्। ते मेघा मुमुचुस्तोयं प्रभूतं विद्युदुज्ज्वलाः।। | 1-26-2a 1-26-2b |
परस्परमिवात्यर्थं गर्जन्तः सततं दिवि। संवर्तितमिवाकाशं जलदैः सुमहाद्भुतैः।। | 1-26-3a 1-26-3b |
सृजद्भिरतुलं तोयमजस्रं सुमहारवैः। संप्रनृत्तमिवाकाशं धारोर्मिभिरनेकशः।। | 1-26-4a 1-26-4b |
मेघस्तनितनिर्घोषौर्विद्युत्पवनकम्पितैः। तैर्मेघैः सततासारं वर्षद्भिरनिशं तदा।। | 1-26-5a 1-26-5b |
नष्टचन्द्रार्ककिरणमम्बरं समपद्यत। नागानामुत्तमो हर्षस्तथा वर्षति वासवे।। | 1-26-6a 1-26-6b |
आपूर्यत मही चापि सलिलेन समन्ततः। रसातलमनुप्राप्तं शीतलं विमलं जलम्। | 1-26-7a 1-26-7b |
तदा भूरभवच्छन्ना जलोर्मिभिरनेकशः। रामणीयकमागच्छन्मात्रा सह भुजंगमाः।। | 1-26-8a 1-26-8b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि पौलोमपर्वणि षड्विंशोऽध्यायः।। 26 ।। |
1-26-3 संवर्तः कल्पान्तः संजातोस्मिन्निति संवर्तितम्।। 1-26-8 रामणीयकं रमणकसंज्ञं द्वीपम्।। ष॰्विंशोऽध्यायः।। 26 ।।
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