महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-055
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दमयन्तीस्वयंवरादनन्तरं दिवं गच्छतामिन्द्रादीनां मध्येमार्गं कलिद्वापरयोर्दर्शनम् ।। 1 ।।
तैः स्वयंवरे दमयन्त्या नलवरणं निवेदितेन द्वापरद्वितीयेन कलिना नलपराभवप्रतिज्ञानम् ।। 2 ।।
बृहदश्व उवाच। | 3-55-1x |
वृते तु नैषधे भैम्या लोकपाला महौजसः। यान्तो ददृशुरायान्तं द्वापरं कलिना सह ।। | 3-55-1a 3-55-1b |
अथाब्रवीत्कलिं शक्रः संप्रेक्ष्य बलवृत्रहा। द्वापरेण सहायेन कले ब्रूहि क्व यास्यसि ।। | 3-55-2a 3-55-2b |
ततोऽब्रवीत्कलिः शक्रं दमयन्त्याः स्वयंवरम्। गत्वा हि वरयिष्ये तां मनो हि मम तां गतम् ।। | 3-55-3a 3-55-3b |
तमब्रवीत्प्रहस्येन्द्रो निर्वृत्तः स स्वयंवरः। वृतस्तया नलो राजा पतिरस्मत्समीपतः ।। | 3-55-4a 3-55-4b |
एवमुक्तस्तु शक्रेण कलिः कोपसमन्वितः। देवानामन्त्र्य तान्सर्वानुवाचेदं वचस्तदा ।। | 3-55-5a 3-55-5b |
देवानां मानुषं मध्ये यत्सा पतिमविन्दत। ननु तस्या भवेन्न्याय्यं विपुलं दण्डधारणम् ।। | 3-55-6a 3-55-6b |
एवमुक्ते तु कलिना प्रत्यूचुस्ते दिवौकसः। अस्माभिः सभनुज्ञाते दमयन्त्या नलो वृतः ।। | 3-55-7a 3-55-7b |
का हि सर्वगुणोपेतं नाश्रयेत नलं नृपम्। यो वेद धर्मानखिलान्यथावच्चरितव्रतः ।। | 3-55-8a 3-55-8b |
योऽधीते चतुरो वेदान्सर्वानाख्यानपञ्चमान्। अहिंसानिरतो यश्च सत्यवादी दृढव्रतः ।। | 3-55-9a 3-55-9b |
यस्मिन्दाक्ष्यं धृतिर्ज्ञानं तपः शौचं दमः शमः। ध्रुवाणि पुरुषव्याघ्रे लोकपालसमे नृपे ।। | 3-55-10a 3-55-10b |
एवंरूपं नलं यो वै कामयेच्छपितुं कले। आत्मानं स शपेन्मूढो हन्यादात्मानमात्मना ।। | 3-55-11a 3-55-11b |
एवंगुणं नलं यो वै कामयेच्छपितुं कले। कृच्छ्रे स नरके मञ्जेदगाधे विपुले ह्रदे ।। | 3-55-12a 3-55-12b |
एवमुक्त्वा कलिं देवा द्वापरं च दिवं ययुः। ततो गतेषु देवेषु कलिर्द्वापरमब्रवीत् ।। | 3-55-13a 3-55-13b |
संयन्तुं नोत्सहे कोपं नले वत्स्यामि द्वापर। भ्रंशयिष्यामि तं राज्यान्न भैम्या सह रंस्यते ।। | 3-55-14a 3-55-14b |
त्वमप्यक्षान्समाविश्य साहाय्यं कर्तुमर्हसि। `मम प्रियकृते ह्यस्मन्कृतवांश्च भविष्यसि' ।। | 3-55-15a 3-55-15b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि नलोपाख्यानपर्वणि पञ्चपञ्चाशोऽध्यायः ।। 55 ।। |
3-55-4 निर्वृत्तः समाप्तः ।। 3-55-7 अस्माभिः समनुज्ञातो दमयन्त्येति क. ध. पाठः ।। 3-55-9 धर्मवादी दृढव्रतं इति क. पाठः ।। 3-55-10 शौचं दया क्षमेति क. पाठः ।।
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