महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-291
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इन्द्रजिद्वधक्रोधाद्रावणेन त्वयमेव युद्धाय रामंप्रत्यभियानम् ।। 1 ।। तदा इन्द्रेण रामाय मातलिसनायस्य निजरथस्य प्रेषणम् ।। 2 ।। श्रीरामेण मायायोधिनो रावणस्य ब्रह्मास्त्रेण हननम् ।। 3 ।।
मार्कण्डेय उवाच। | 3-291-1x |
ततः क्रुद्धो दशग्रीवः प्रिये पुत्रे निपातिते। निर्ययौ रथमास्थाय हेमरत्नविभूषितम् ।। | 3-291-1a 3-291-1b |
संवृतोराक्षसैर्घेरैर्विविधायुधपाणिभिः। अभिदुद्राव रामं स पोथयन्हरियूथपान् ।। | 3-291-2a 3-291-2b |
तमाद्रवन्तं संक्रुद्ध मैन्दनीलनलाङ्गदाः। हनुमाञ्जाम्बवांश्चैव ससैन्याः पर्यवारयन् ।। | 3-291-3a 3-291-3b |
ते दशग्रीवसैन्यं तदृक्षवानरपुङ्गवाः। द्रुमैर्विध्वंसयांचक्रुर्दशग्रीवस्य पश्यतः ।। | 3-291-4a 3-291-4b |
ततः स्वसैन्यमालोक्य वध्यमानमरातिभिः। मायावी चासृजन्मायां रावणो राक्षसाधिपः ।। | 3-291-5a 3-291-5b |
तस्य देहविनिष्क्रान्ताः शतशोऽथ सहस्रशः। राक्षसाः प्रत्यदृश्यन्त शरशक्त्यृष्टिपाणयः ।। | 3-291-6a 3-291-6b |
तान्रामो जघ्निवान्सर्वान्दिव्येनास्त्रेण राक्षसान्। अथ भूयोपि मायां स व्यदधाद्राक्षसाधिपः ।। | 3-291-7a 3-291-7b |
कृत्वा रामस् रूपाणि लक्ष्मणस्य च भारत। अभिदुद्राव रामं च लक्ष्मणं च दशाननः ।। | 3-291-8a 3-291-8b |
ततस्ते राममर्च्छन्तो लक्ष्मणं च क्षपाचराः। अभिपेतुस्तदा रामं प्रगृहीतशरासनाः ।। | 3-291-9a 3-291-9b |
तां दृष्ट्वाराक्षसेन्द्रस् मायामिक्ष्वाकुनन्दनः। उवाच रामः सौमित्रिमसंभ्रान्तो बृहद्वचः ।। | 3-291-10a 3-291-10b |
जहीमान्राक्षसान्पापानात्मनः प्रतिरूपकान्। इत्युक्त्वाऽभ्यहनद्रामो लक्ष्मणश्चात्मरूपकान् ।। | 3-291-11a 3-291-11b |
ततो हर्यश्वयुक्तेन रथेनादित्यवर्चसा। उपतस्थे रणे रामं मातलिः शक्रसारथिः ।। | 3-291-12a 3-291-12b |
मातलिरुवाच। | 3-291-13x |
अयं हर्यश्वयुग्जैत्रो मघोनः स्यन्दनोत्तमः। `त्वदर्थमिह संप्राप्तः संदेशाद्वै शतक्रतोः' ।। | 3-291-13a 3-291-13b |
अनेन शक्रः काकुत्स्थ समरे दैत्यदानवान्। शतशः पुरुषव्याघ्र रथोदारेण जघ्निवान् ।। | 3-291-14a 3-291-14b |
तदनन नरव्याघ्र मया यत्तेन संयुगे। स्यन्दनेन जहिक्षिप्रं रावणं मा चिरं कृथाः ।। | 3-291-15a 3-291-15b |
इत्युक्तो राघवस्तथ्यं वचोऽशङ्कत मातलेः। मायैषाराक्षसस्येति तमुवाच विबीषणः ।। | 3-291-16a 3-291-16b |
नेयं माया नरव्याघ्ररावणस् दुरात्मनः। तदातिष्ठ रथंशीघ्रमिमसैन्द्रं महाद्युते ।। | 3-291-17a 3-291-17b |
ततः प्रहृष्टः काकुत्स्थस्तथेत्युक्त्वा विभीषणम्। रथेनाभिपपाताथ दशग्रीवं रुषाऽन्वितः ।। | 3-291-18a 3-291-18b |
हाहाकुतानि भूतानि रावणे समभिद्रुते। सिंहनादाः सपटहादिति दिव्यास्तथाऽनदन् ।। | 3-291-19a 3-291-19b |
[दशकन्धरराजसून्वोस्तथा युद्धमभून्महत्। अलब्धोपममन्यत्रतयोरेव तथाऽभवत् ।।] | 3-291-20a 3-291-20b |
सरामाय महाघोरं विससर्ज निशाचरः। शूलमिन्द्राशनिप्रख्यं ब्रह्मदण्डभिवोद्यतम् ।। | 3-291-21a 3-291-21b |
तच्छूलं सत्वरं रामश्चच्छेद निशितैः शरैः। तद्दृष्ट्वा दुष्करं कर्म रावणं भयमाविशत् ।। | 3-291-22a 3-291-22b |
ततः क्रुद्धः ससर्जाशु दशग्रीवः शिताञ्छरान्। सहस्रायुतशो रामे शस्त्राणि विविधानि च ।। | 3-291-23a 3-291-23b |
ततो भुशुण्डीः शूलानि मुसलानि परश्वथान्। शक्तीश्च विविधाकाराः शतघ्नीश्च शितान्क्षुरान् ।। | 3-291-24a 3-291-24b |
तां मायांविविधां दृष्ट्वा दशग्रीवस्य रक्षसः। भयात्प्रदुद्रुवुः सर्वे वानराः सर्वतोदिशम् ।। | 3-291-25a 3-291-25b |
ततः सुपत्रं सुमुखंहेमपुङ्गं शरोत्तमम्। तूणादादाय काकुत्स्थो ब्रह्मास्त्रेण युयोज ह ।। | 3-291-26a 3-291-26b |
तं प्रेक्ष्यबाणं रामेण ब्रह्मास्त्रेणानुमन्त्रितम्। जहृषुर्देवगन्धर्वा दृष्ट्वा शक्रपुरोगमाः ।। | 3-291-27a 3-291-27b |
अल्पावशेषमायुश्च ततोऽमन्यन्त रक्षसः। ब्रह्मास्त्रोदीरणाच्छत्रोर्देवदानवकिंनराः ।। | 3-291-28a 3-291-28b |
ततः ससर्ज तं रामः शरमप्रतिमौजसम्। रावणान्तकरं घोरं ब्रह्मदण्डमिवोद्यतम् ।। | 3-291-29a 3-291-29b |
मुक्तमात्रेण रामेण दूराकृष्टेन भारत। स तेन राक्षसश्रेष्ठः सरथः साश्वसारथिः। प्रजज्वाल महाज्वालेनाग्निनाभिपरिप्लुतः ।। | 3-291-30a 3-291-30b 3-291-30c |
ततः प्रहृष्टास्त्रिदशाः सहगन्धर्वचारणाः। निहतं रावणं दृष्ट्वा रामेणाक्लिष्टकर्मणा ।। | 3-291-31a 3-291-31b |
तत्यजुस्तं महाभागं पञ्चभूतानि रावणम्। भ्रंशितः सर्वलोकेषु स हि ब्रह्मास्त्रतेजसा ।। | 3-291-32a 3-291-32b |
शरीरधातवो ह्यस् मासं रुधिरमेव च। नेशुर्ब्रह्मास्त्रनिर्दग्दा न च भस्माप्यदृश्यत ।। | 3-291-33a 3-291-33b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि रामोपाख्यानपर्वणि एकनवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 291 ।। |
3-291-8 रामस्य रूपं कृत्वालक्ष्मणमभिदुद्राव लक्ष्मणस्य रूपं कृत्वा राममिति येजना ।। 3-291-32 पञ्चभूतानि तत्यजुर्मृत इत्यर्थः ।।
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