महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-067
← आरण्यकपर्व-066 | महाभारतम् तृतीयपर्व महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-067 वेदव्यासः |
आरण्यकपर्व-068 → |
दमयन्तीप्रेषितैर्विप्रैस्तत्रतत्रनलान्वेषणम् ।। 1 ।।
दमयन्त्यवाच। | 3-67-1x |
मां चेदिच्छसि जीवन्तीं मातः सत्यं ब्रवीमिते। नलस्य नरवीरस्य यतस्वानयने पुनः ।। | 3-67-1a 3-67-1b |
दमयन्त्या तथोक्ता तु सा देवी भृशदुःखिता। बाष्पेणापिहिता राज्ञी नोत्तरं किंचिदब्रवीत् ।। | 3-67-2a 3-67-2b |
तदवस्थां तु तां दृष्ट्वा सर्वमन्तःपुरं तदा। हाहाभूतमतीवासीद्भृशं च प्ररुरोद ह ।। | 3-67-3a 3-67-3b |
ततो भीमं महाराजं भार्या वचनामब्रवीत्। दमयन्ती नृप भृशं भर्तारमनुशोचति ।। | 3-67-4a 3-67-4b |
अपकृष्य च लज्जां सा स्वयमुक्तवती विभो। प्रयतन्तु तवप्रेष्याः पुण्यश्लोकस्य दर्शने ।। | 3-67-5a 3-67-5b |
बृहदश्व उवाच। | 3-67-6x |
तयाप्रयोदितो राजा ब्राह्मणान्वशवर्तिनः। प्राश्थापयद्दिशः सर्वा यतध्वं नलदर्शने ।। | 3-67-6a 3-67-6b |
ततो विदर्भाधिपतेर्नियोगाद्ब्राह्मणास्तदा। दमयन्तीमथापृच्छ्य प्रस्थितास्ते तथाऽव्रुवन् ।। | 3-67-7a 3-67-7b |
अथ तानब्रवीद्भैमी सर्वराष्ट्रेष्विदं वचः। ब्रूत वै जनसंसत्सु तत्रतत्र पुनः पुनः ।। | 3-67-8a 3-67-8b |
क्वनु त्वं कितव च्छित्त्वा वस्त्रार्धं प्रस्थितो मम। उत्सृज्य वपिने सुप्तामनुरक्तां प्रियां प्रिय ।। | 3-67-9a 3-67-9b |
सा वै यथा त्वया दृष्टा तथाऽऽस्ते त्वत्प्रतीक्षिणी। दह्यमाना भृशं बाला वस्त्रार्धेनाभिसंवृता ।। | 3-67-10a 3-67-10b |
तस्या रुदन्त्याः सततं तेन शोकेन पार्थिव। प्रसादं कुरु वै देव प्रतिवाक्यं वदस्व च ।। | 3-67-11a 3-67-11b |
एवमन्यच्च वक्तव्यं कृपां कुर्याद्यथा मयि। वायुना धूयमानो हि वनं दहति पावकः ।। | 3-67-12a 3-67-12b |
भर्तव्या रक्षणीया त्व पत्नी पत्या हि नित्यदा। तन्नष्टमुभयं कस्माद्धर्मज्ञस्य सतस्तव ।। | 3-67-13a 3-67-13b |
ख्यातः प्राज्ञः कुलीनश् सानुक्रोशो भवान्सदा। संवृत्तो निरनुक्रोशः शङ्के मद्भाग्यसंक्षयात् ।। | 3-67-14a 3-67-14b |
तत्कुरुष्व नरव्याघ्र दयां मयि नरर्पभ। आनृशंस्यं परो धर्मस्त्वत्त एव हि मे श्रुतः ।। | 3-67-15a 3-67-15b |
एवंब्रुवाणान्यदि वः प्रतिब्रूयाद्धि कश्चन। स नरः सर्वथा ज्ञेयः कश्चासौ क्वनु वर्तते ।। | 3-67-16a 3-67-16b |
यश्चैवं वचनं श्रुत्य्वा बूयात्प्रतिवचो नरः। तदादाय वचस्तस्य ममावेद्यं द्विजोत्तमाः ।। | 3-67-17a 3-67-17b |
यथा च वो न जानीयाच्चरतो भीमशासनात्। पुनरागमनं चेह तथा कार्यमतन्द्रितैः ।। | 3-67-18a 3-67-18b |
यदि वाऽसौ समृद्धः स्याद्यदि वाऽप्यधनो भवेत्। यदिऽवाप्यसमर्थः स्याज्ज्ञेयमस्य चिकीर्षितम् ।। | 3-67-19a 3-67-19b |
एवमुक्तास्त्वगच्छंस्ते ब्राह्मणाः सर्वतो दिशम्। नलं मृगयितुं राजंस्तदा व्यसनिनं तथा ।। | 3-67-20a 3-67-20b |
ते पुराणि सराष्ट्राणि ग्रामान्धोपांस्तथाऽऽश्रमान्। अन्वेषन्तो नलं राजन्नाधिजग्मुर्दविजातयः ।। | 3-67-21a 3-67-21b |
तच्च वाक्यं तथा सर्वेतत्रतत्र विशांपते। श्रावयांचक्रिरे विप्रा दमयन्त्या यथेरितम् ।। | 3-67-22a 3-67-22b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि नलोपाख्यानपर्वणि सप्तषष्टितमोऽध्यायः ।। 67 ।। |
3-67-7 तथा अव्रुवन्नलान्वेषणाय प्रस्थिताःस्मेति ।। 3-67-12 वायुनेति शोकाग्निः कालवायुना दिनेदिने वर्धमानो दमयन्तीशरीरवनं दहतीति रूपकेणोक्तम् ।। 3-67-13 भर्तव्याऽन्नादिना। रक्षणीया दस्युप्रभृतिभ्यः। उभयं रक्षणभरणात्मकम् ।। 3-67-14 सानुक्रोशः सदयः ।।
आरण्यकपर्व-066 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आरण्यकपर्व-068 |