महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-128
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सोमकनामकेन राज्ञा भार्याशतोद्बाहेपि ज्येष्ठायामेव जन्तुनामकैकापत्यजननम् ।। 1 ।। पिपीलिकादष्टसुतदुःखदर्शननिर्विण्णेन तेन राज्ञा ऋत्विजंप्रति बहुपुत्रोत्पादनोपायप्रश्नः ।। 2 ।। ऋत्विजा राजानंप्रति जन्तोः पशूकरणेन होमे तद्वपाघ्राणनेन भार्याशते पुत्रशतजननोक्तिः ।। 3 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 3-128-1x |
कथंवीर्यः स राजाऽभूत्सोमको ददतांवरः। कर्माण्यस्य प्रभावं च श्रोतुमिच्छामि तत्त्वतः ।। | 3-128-1a 3-128-1b |
लोमश उवाच। | 3-128-2x |
युधिष्ठिरासीन्नृपतिः सोमको नाम धार्मिकः। तस्य भार्याशतं राजन्सदृशीनामभूत्तदा ।। | 3-128-2a 3-128-2b |
स वै यत्नेन महता तासु पुत्रं महीपतिः। कंचिन्नासादयामास कालेन महता ह्यपि ।। | 3-128-3a 3-128-3b |
कदाचित्तस् वृद्धस्य यतमानस्य धीमतः। जन्तुर्नाम सुतस्तस्य ज्येष्ठायां समजायत ।। | 3-128-4a 3-128-4b |
तं जातं मातरः सर्वाः परिवार्य समासते। सततं पृष्ठतः कृत्वा कामभोगान्विशांपते ।। | 3-128-5a 3-128-5b |
ततः पिपीलिका जन्तुं कदाचिददशत्स्फिचि। स दष्टो ह्यरुदद्राजंस्तेन दुःखेन बालकः ।। | 3-128-6a 3-128-6b |
ततस्ता मातरः सर्वाः प्राक्रोशन्भृशदुःखिताः। प्रवार्य जनतुं सहसा स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ।। | 3-128-7a 3-128-7b |
तमार्तनादं सहसा शुश्राव स महीपतिः। अमात्यपर्षदो मध्ये उपविष्टः सहर्त्विजा ।। | 3-128-8a 3-128-8b |
ततः प्रस्थापयामास किमेतदिति पार्थिवः। तस्मै क्षत्ता यथावृत्तमाचचक्षे सुतं प्रति ।। | 3-128-9a 3-128-9b |
त्वरमाणः स चोत्थाय सोमकः सह मन्त्रिभिः। प्रविश्यान्तःपुरं पुत्रमाश्वासयदरिंदमः ।। | 3-128-10a 3-128-10b |
सान्त्वयित्वा तु तं पुत्रं निष्क्रम्यान्तःपुरान्नृपः। ऋत्विजा सहितो राजन्सहामात्य उपाविशत् ।। | 3-128-11a 3-128-11b |
सोमक उवाच। | 3-128-12x |
धिगस्त्विहैकपुत्रत्वमपुत्रत्वं वरं भवेत्। नित्यातुरत्वाद्भूतानां शोक एवैकपुत्रता ।। | 3-128-12a 3-128-12b |
इदं भार्याशतं ब्रह्मन्परीक्ष्यसदृशं प्रभो। पुत्रार्थिना मया वोढं न तासां विद्यते प्रजा ।। | 3-128-13a 3-128-13b |
एकः कथंचिदुत्पन्नः पुत्रो जन्तुरयं मम। यतमानासु सर्वासु किंनु दुःखमतः परम् ।। | 3-128-14a 3-128-14b |
वयश्च समतीतं मे सभार्यस्यं द्विजोत्तम। आसां प्राणाः समायत्ता मम चात्रैकपुत्रके ।। | 3-128-15a 3-128-15b |
स्यात्तु कर्म तथा युक्तं येन पुत्रशतं भवेत्। महता लघुना वाऽपि कर्मणा दुष्करेण वा ।। | 3-128-16a 3-128-16b |
ऋत्विगुवाच। | 3-128-17x |
अस्ति चैतादृशं कर्म येन पुत्रशतं भवेत्। यदि शक्नोषि तत्कर्तुमथ वक्ष्यामि सोमक ।। | 3-128-17a 3-128-17b |
सोमक उवाच। | 3-128-18x |
कार्यं वा यदि वाऽकार्यं येन पुत्रशतं भवेत्। कृतमेवेति तद्विद्धि भगवान्प्रब्रवीतु मे ।। | 3-128-18a 3-128-18b |
ऋत्विगुवाच। | 3-128-19x |
यजस्व जन्तुना राजंस्त्वं मया वितते क्रतौ। ततः पुत्रशतं श्रीमद्भविष्यत्यचिरेण ते ।। | 3-128-19a 3-128-19b |
वपार्या हूयमानायां धूममाघ्राय मातरः। ततस्ताः सुमहावीर्याञ्जनयिष्यन्ति ते सुतान् ।। | 3-128-20a 3-128-20b |
तस्यामेव तु ते जन्तुर्भविता पुनरात्मजः। उत्तरे चास्य सौवर्णं लक्ष्म पार्श्वे भविष्यति ।। | 3-128-21a 3-128-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि अष्टाविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः ।। 128 ।। |
3-128-6 स्फिचि कठ्याम् ।। 3-128-8 अमात्यपर्षदो मध्ये मन्त्रिसभान्तः ।। 3-128-9 क्षत्ता दौवारिकः ।। 3-128-19 जन्तुना पशुभूतेन ।।
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