महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-172
← आरण्यकपर्व-171 | महाभारतम् तृतीयपर्व महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-172 वेदव्यासः |
आरण्यकपर्व-173 → |
अर्जुनस्य निवातकवचैः सह युद्धम् ।। 1 ।।
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
अर्जुन उवाच। | 3-172-1x |
ततो निवातकवचाः सर्वेवेगेन भारत। अभ्यद्रवन्मां सहिताः प्रगृहीतायुधा रणे ।। | 3-172-1a 3-172-1b |
आच्छाद्य रथपन्थानमुत्क्रोशन्तो महारथाः। अवृत्य सर्वतस्ते मां शरवर्षैरवाकिरन् ।। | 3-172-2a 3-172-2b |
ततोऽपरे महावीर्याः शूलपट्टसपाणयः। शूलानि च भुशुण्डीश्च मुमुचुर्दानवा मयि ।। | 3-172-3a 3-172-3b |
सुमहत्तुमुलं वर्षं गदाशक्तिसमाकुलम्। अनिशं सृज्यमानं तैरपतन्मद्रथोपरि ।। | 3-172-4a 3-172-4b |
अन्ये मामभ्यधावन्त निवातकवचा सुधि। शितशस्त्रायुधा रौद्राः कालरूपाः प्रहारिणः ।। | 3-172-5a 3-172-5b |
तानहं विविधैर्बाणैर्वेगवद्भिरजिह्मगैः। गाण्डीवमुक्तैरभ्यघ्नमेकैकं दशभिर्मृधे ।। | 3-172-6a 3-172-6b |
ते कृता विमुखाः सर्वे मत्प्रयुक्तैः शिलाशितैः। ततो मातलिना तूर्णं हयास्ते संप्रयोदिताः ।। | 3-172-7a 3-172-7b |
अथ मार्गान्बहूस्तत्र विचेरुर्वातरंहसः। सुसंयता मातलिना प्रामथ्नन्त दितेःसुतान् ।। | 3-172-8a 3-172-8b |
शतं शतास्ते हरयस्तस्मिन्युक्ता महारथे। तदा मातलिना यथ्ता व्यचरन्नल्पका इव ।। | 3-172-9a 3-172-9b |
तेषां चरणपातेन रथनेमिस्वनेन च। मम बाणनिपातैश्च हतास्ते शतशोऽसुराः ।। | 3-172-10a 3-172-10b |
गतासवस्तथैवान्ये दानवाः पाण्डवर्षभ। हतसारथयस्तत्र व्यकृष्यन्त तुरंगमैः ।। | 3-172-11a 3-172-11b |
ते दिशो विदिशः सर्वे प्रतिरुध्य प्रहारिणः। अभ्यघ्नन्विविधैः शस्त्रैस्ततो मे व्यथितं मनः ।। | 3-172-12a 3-172-12b |
ततोऽहं मातलेर्वीर्यमद्भुतं समदर्शयम्। अश्वांस्तथा वेगवतो यदयत्नादधारयत् ।। | 3-172-13a 3-172-13b |
ततोऽहं लघुभिश्चित्रैरस्त्रैस्तानसुरान्रणे। चिच्छेद सायुधान्राजञ्छतशोऽथ सहस्रशः ।। | 3-172-14a 3-172-14b |
एवं मे चरतस्तत्र सर्वयत्नेन शत्रुहन्। प्रीतिमानभवद्वीरो मातलिः शक्रसारथिः ।। | 3-172-15a 3-172-15b |
वध्यमानास्ततस्तैस्तु हयैस्तेन रथेन च। अगमन्प्रक्षयं केचिन्न्यवर्तन्त तथाऽपरे ।। | 3-172-16a 3-172-16b |
स्पर्धमाना इवास्माभिर्निवातकवचा रणे। शरवर्षैः शरार्तं मां महद्भिः प्रत्यवारयन् ।। | 3-172-17a 3-172-17b |
शरवेगैर्निहत्याहमस्त्रैः शरविघातिभिः। ज्वलद्भिः परमैः शीघ्रैस्तानविध्यं सहस्रशः ।। | 3-172-18a 3-172-18b |
ततः संपीड्यमानास्ते क्रोधाविष्टा महासुराः। अपीडयन्मां सहिताः शक्तिशूलासिवृष्टिभिः ।। | 3-172-19a 3-172-19b |
ततोऽहमस्त्रं प्रायुञ्जं गान्धर्वं नाम भारत। दयितं देवराजस् माधवं नाम भारत ।। | 3-172-20a 3-172-20b |
ततः खङ्गांस्त्रिशूलांश्च तोमरांशच् सहस्रशः। अस्त्रवीर्येण शतधा तैर्मुक्तानहमच्छिदम् ।। | 3-172-21a 3-172-21b |
छित्त्वा प्रहरणान्येषां ततस्तानपि सर्वशः। प्रत्यविध्यमहं रोषाद्दशभिर्दशभिः शरैः ।। | 3-172-22a 3-172-22b |
गाण्डीवाद्धि तदा सङ्ख्ये यथा भ्रमरपङ्क्तयः। निष्पतन्ति महाबाणास्तन्मातलिरपूजयत् ।। | 3-172-23a 3-172-23b |
तेषामपि तु बाणास्ते बहुत्वाच्छलभा इव। अवाकिरन्मां बलवत्तानहं व्यधमं शरैः ।। | 3-172-24a 3-172-24b |
वध्यमानास्ततस्ते तु निवातकवचाः पुनः। शरवर्षैर्महद्भिर्मां समन्तात्पर्यवारयन् ।। | 3-172-25a 3-172-25b |
शरवेगान्निहत्याहमस्त्रैरस्त्रविघातिभिः। ज्वलद्भिः परमैः शीघ्रैस्तानविध्यं सहस्रशः ।। | 3-172-26a 3-172-26b |
तेषां छिन्नानि गात्राणि विसृजन्तिस्म शोणितम्। प्रावृषीवाभिवृष्टानि शृङ्गाण्यथ धराभृताम् ।। | 3-172-27a 3-172-27b |
इन्द्राशनिसमस्पर्शैर्वेगवद्भिरजिह्मगैः। मद्वाणैर्वध्यमानास्ते समुद्विग्राः स्म दानवाः ।। | 3-172-28a 3-172-28b |
शतधा भिन्नदेहास्ते क्षीणप्रहरणौजसः। ततो निवातकवचा मामयुध्यन्त मायया ।। | 3-172-29a 3-172-29b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि निवातकवचयुद्धपर्वणि द्विसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः ।। 172 |
3-172-9 शताः शतानि अयुतमित्यर्थः। हरयोऽश्वाः ।। 3-172-14 चिच्छेद अहमिति शेषः ।। 3-172-20 माधवं नाम मधोर्दैत्यस् वधार्धं निर्मितत्वात्। देवराजस्य ब्रह्मदण्डसमंरणे इति ध. पाठः ।।
आरण्यकपर्व-171 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आरण्यकपर्व-173 |