महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-066
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सुदेवेन दमयन्तीतत्वं निवेदितया राजमात्रा पिप्लुरूपलाञ्छनेन तत्वनिर्धारणपूर्वकं तस्याः पितृपुरंप्रति प्रापणम् ।। 1 ।।
सुदेव उवाच। | 3-66-1x |
विदर्भराजो धर्मात्मा भीमो भीमपराक्रमः। सुतेयं तस्य कल्याणी दमयन्तीति विश्रुता ।। | 3-66-1a 3-66-1b |
राजा तु नैषधो नाम वीरसेनसुतो नलः। भार्येयं तस्य कल्याणी पुण्यश्लोकस्य धीमतः ।। | 3-66-2a 3-66-2b |
स द्यूतेन जितो भ्रात्रा हृतराज्यो महामनाः। दमयन्त्या गतः सार्धं न प्राज्ञायत कस्यचित् ।। | 3-66-3a 3-66-3b |
ते वयं दमयन्त्यर्थे चरामः पृथिवीमिमाम्। सेयमासादिता बाला तव देवि निवेशने ।। | 3-66-4a 3-66-4b |
अस्या रूपेण सदृशी मानुषी न हि विद्यते। अस्या ह्येष भ्रुवोर्मध्ये सहजः पिप्लुरुत्तमः ।। | 3-66-5a 3-66-5b |
श्यामायाः पद्मसंकाशो लक्षितोऽन्तर्हितो मया। मलेन संवृतोह्यस्याश्छन्नोऽभ्रेणेव चन्द्रमाः ।। | 3-66-6a 3-66-6b |
चिह्नभूतो विभूत्यर्थमयं धात्रा विनिर्मितः। प्रतिपत्कलुषेवेन्दोर्लेखा नातिविराजते ।। | 3-66-7a 3-66-7b |
न चास्या नश्यते रूपं वपुर्मलसमाचितम्। असंस्कृतमपि व्यक्तं भाति काञ्चनसन्निभम् ।। | 3-66-8a 3-66-8b |
अनेन वपुषा बाला पिप्लुनाऽनेन सूचिता। लक्षितेयं मया देवी पिहितोऽग्निरिवोष्मणा ।। | 3-66-9a 3-66-9b |
बृहदश्व उवाच। | 3-66-10x |
तच्छ्रुत्वा वचनं तस्य सुदेवस्य विशांपते। सुनन्दा शोधयामास पिप्लुप्रच्छादनं मलम् ।। | 3-66-10a 3-66-10b |
स मलेनापकृष्टन पिप्लुस्तस्या व्यरोचत। दमयन्त्या यथा व्यभ्रे नभसीव निशाकरः ।। | 3-66-11a 3-66-11b |
पिप्लुं दृष्ट्वा सुनन्दा च राजमाता च भारत। रुदन्त्यौ तां परिष्वज्यमुहूर्तमिव तस्थतुः ।। | 3-66-12a 3-66-12b |
उत्सृज्य बाष्पं शनकै राजमातेदमब्रवीत्। भगिन्या दुहिता मेऽसि पिप्लुनानेन सूचिता ।। | 3-66-13a 3-66-13b |
अहं च तव माता च राजन्यस्य महात्मनः। सुते दशार्णाधिपतेः सुदाम्नश्चारुदर्शने ।। | 3-66-14a 3-66-14b |
भीमस्य राज्ञः सा दत्ता वीरबाहोरहं पुनः। त्वं तु जाता मया दृष्टा दशार्णेषु पितुर्गृहे ।। | 3-66-15a 3-66-15b |
यथैव ते पितुर्गेहं तथेदमपि भामिति। यथैव च ममैश्वर्यं दमयन्ति तथा तव ।। | 3-66-16a 3-66-16b |
तां प्रहृष्टेन मनसा दमयन्ती विशांपते। प्रणम्य मातुर्भगिनीमिदं वचनमब्रवीत् ।। | 3-66-17a 3-66-17b |
अज्ञायमानाऽपिसती सुखमस्म्युषिता त्वयि। सर्वकामैः सुविहिता रक्ष्यमाणा सदा त्वया ।। | 3-66-18a 3-66-18b |
सुखात्सुखतरो वासो भविष्यति न संशयः। चिरविप्रोषितां मातर्मामनुज्ञातुमर्हसि ।। | 3-66-19a 3-66-19b |
दारकौ च हि मे नीतौ वसतस्तत्र बालकौ। पित्रा विहीनौ शोकार्तौ मया चैव कथं नु तौ ।। | 3-66-20a 3-66-20b |
यदि चापि प्रियं किंचिन्मयि कर्तुमिहेच्छसि। विदर्भान्यातुमिच्छामि शीघ्रं मे यानमादिश ।। | 3-66-21a 3-66-21b |
बाढमित्येव तामुक्त्वा हृष्ट्वा मातृष्वसा नृप। गुप्तां बलेन महता पुत्रस्यानुमते ततः ।। | 3-66-22a 3-66-22b |
प्रास्थापयद्राजमाता श्रीमतीं नरवाहिना। यानेन भरतश्रेष्ठ स्वन्नपानपरिच्छदाम् ।। | 3-66-23a 3-66-23b |
ततः सा नचिरादेव विदर्भानगमच्छुभा। तां तु बन्धुजनः सर्वः प्रहृष्टः समपूजयत् ।। | 3-66-24a 3-66-24b |
सर्वान्कुशलिनो दृष्ट्वा बान्धवान्दारकौ च तौ। मातरं पितरं चोभौ सर्वं चैव सखीजनम् ।। | 3-66-25a 3-66-25b |
देवताः पूजयामास ब्राह्मणांश्च यशस्विनी। परेण विधिना देवी दमयन्ती विशांपते ।। | 3-66-26a 3-66-26b |
अतर्पयत्सुदेवं च गोसहस्रेण पार्थिवः। प्रीतो दृष्ट्वैव तनयां ग्रामेण द्रविणेन च ।। | 3-66-27a 3-66-27b |
सा व्युष्टा रजनीं तत्रपितुर्वेश्मनि भामिनी। विश्रान्ता मातरं राजन्निदं वचनमब्रवीत् ।। | 3-66-28a 3-66-28b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि नलोपाख्यानपर्वणि षट्षष्टितमोऽध्यायः ।। 66 ।। |
3-66-5 पिप्लुः रक्ततिलकाकृतिलाञ्छनम् ।। 3-66-6 स दृष्टो बहुशो नाद्य लक्ष्यतेऽन्तर्हितो मयेति क. पाठः ।। 3-66-7 चिह्नभूतः सचात्यर्थमिति ध. पाठः ।। 3-66-8 अस्यास्तु दृश्यते रूपमिति ध. पाठः ।। 3-66-11 अपकृष्टेन दूरीकृतेन ।। 3-66-20 दारकौ सुतः सुता च ।। 3-66-28 व्युष्टा वासंकृतवती ।।
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