महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-249
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दुर्योधनेन कर्णंप्रति युद्धे सानुजस्य स्वस्य गन्धर्वैर्वन्धनस्य युधिष्ठिरचोदनया मीमादिमिर्गन्धर्वाणां रणे पराजयस्य च कथनम् ।। 1 ।।
दुर्योधन उवाच। | 3-249-1x |
अजानतस्ते राधेय नाभ्यसूयाम्यहं वचः। जानासि त्वं जिताञ्शत्रून्गन्धर्वां स्तेजसा मया ।। | 3-249-1a 3-249-1b |
आयोधितास्तु गन्धर्वाः सुचिरं सोदरैर्मम। मया सह महाबाहो कृतश्चोभयतः क्षयः ।। | 3-249-2a 3-249-2b |
मायाधिकास्त्वयुध्यन्त यदा शूरा वियद्गताः। तदा नो न समं युद्धमभवत्खेचरैः सह ।। | 3-249-3a 3-249-3b |
पराजयं च प्राप्ताः स्मो रणे बन्धनमेव च। सभृत्यामात्यपुत्राश्च सदारबलवाहनाः। उच्चैराकाशमार्गेण ह्रियमाणाः सुदुःखिताः ।। | 3-249-4a 3-249-4b 3-249-4c |
अथ नः सैनिकाः केचिदमात्याश्च महारथाः। उपगम्याब्रुवन्दीनाः पाण्डवाञ्शरणप्रदान् ।। | 3-249-5a 3-249-5b |
एष दुर्योधनो राजा धार्तराष्ट्रः सहानुजः। सामात्यदारो ह्रियते गन्धर्वैर्दिवमाश्रितैः ।। | 3-249-6a 3-249-6b |
तं मोक्षयत भद्रं वः सहदारं नराधिपम्। परामर्शो मा भविष्यत्कुरुदारेषु सर्वशः। `इत्यब्रुवन्रणआन्मुक्ता धर्मराजमुपागताः' ।। | 3-249-7a 3-249-7b 3-249-7c |
एवमुक्ते तु धर्मात्मा ज्येष्ठः पाण्डुसुतस्तदा। प्रसाद्य सोदरान्सर्वानाज्ञापयत मोक्षणे ।। | 3-249-8a 3-249-8b |
अथागम्य तमुद्देशं पाण्डवाः पुरुषर्षभाः। सान्त्वपूर्वमयाचन्त शक्ताः सन्तो महारथाः ।। | 3-249-9a 3-249-9b |
यदा चास्मान्न मुमुचुर्गन्धर्वाः सान्त्विता अपि। `आकाशचारिणो वीरा नदन्तो जलदा इव' ।। | 3-249-10a 3-249-10b |
ततोऽर्जुनश्च भीमश्च यमजौ च बलोत्कटौ। मुमुचुः शरवर्षाणि गन्धर्वान्प्रत्यनेकशः ।। | 3-249-11a 3-249-11b |
अथ सर्वे रणं मुक्त्वा प्रयाताः खेचरा दिवम्। अस्मानेवाभिकर्षन्तो दीनान्मुदितमानसाः ।। | 3-249-12a 3-249-12b |
ततः समन्तात्पश्यामः शरजालेन वेष्टितम्। अमानुषाणि चास्त्राणि प्रयुञ्जानं घनंजयम् ।। | 3-249-13a 3-249-13b |
समावृता दिशो दृष्ट्वा पाण्डवेन शितैः शरैः। धनंजयसखाऽऽत्मानं दर्शयामास वै तदा ।। | 3-249-14a 3-249-14b |
चित्रसेनः पाण्डवेन समाश्लिष्य परस्परम्। कुशलं परिपप्रच्छ तैः पृष्टश्चाप्यनामयम् ।। | 3-249-15a 3-249-15b |
ते समेत्य तथाऽन्योन्यं सन्नाहान्विप्रमुच्य च। एकीभूतास्ततो वीरा गन्धर्वाः सह पाण्डवैः ।। | 3-249-16a 3-249-16b |
`परस्परं समागम्य प्रीत्या परमया युतौ'। अपूजयेतामन्योन्यं चित्रसेनधनंजयौ ।। | 3-249-17a 3-249-17b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि घोषयात्रापर्वणि एकोनपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 249 ।। |
3-249-1 नाभ्यसूयामि दोषवदिति न मन्ये ।।
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