महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-288
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लक्ष्मणेन कुम्भकर्णवधः ।। 1 ।। हनुमन्नीलाक्ष्यां वज्रवेगप्रमाथिनोर्वधः ।। 2 ।।
मार्कण्डेय उवाच। | 3-288-1x |
ततो निर्याय स्वपुरात्कुम्भकर्णः सहानुगः। अपश्यत्कपिसैन्यं रतज्जितकाश्यग्रतः स्थितम् ।। | 3-288-1a 3-288-1b |
स वीक्षमाणस्तत्सैन्यं रामदर्शनकाङ्क्षया। अपश्यच्चापि सौमित्रिं धनुष्पाणिं व्यवस्थितम् ।। | 3-288-2a 3-288-2b |
तमभ्येत्याशु हरयः परिवब्रुः समन्ततः। `शैलवृक्षायुधा नादानमुञ्चन्भीषणास्ततः' ।। | 3-288-3a 3-288-3b |
अभ्यघ्नंश्च महाकायैर्बहुभिर्जगतीरुहैः। करजैरतुदंश्चान्ये विहाय भयमुत्तमम् ।। | 3-288-4a 3-288-4b |
बहुधा युध्यमानास्ते युद्धमार्गैः प्लवंगमाः। नानाप्रहरणैर्भीमै राक्षसेन्द्रमताडयन् ।। | 3-288-5a 3-288-5b |
स ताड्यमानः प्रहसन्भक्षयामास वानरान्। बलं चण्डबलाख्यं च वज्रबाहुं च वानरम् ।। | 3-288-6a 3-288-6b |
तद्दृष्ट्वा व्यथनं कर्म कुम्भकर्णस्य रक्षसः। उदक्रोशन्परित्रस्तास्तारप्रभृतयस्तदा ।। | 3-288-7a 3-288-7b |
तानुच्चैः क्रोशतः सैन्याञ्श्रुत्वा स हरियूथपान्। अभिदुद्राव सुग्रीवः कुम्भकर्णमपेतभीः ।। | 3-288-8a 3-288-8b |
ततो निपत्य वेगेन कुम्भकर्णं महामना। सालेन जघ्निवान्मूर्ध्निं बलेन कपिकुञ्जरः ।। | 3-288-9a 3-288-9b |
स महात्मा महावेगः कुम्भकर्णस् मूर्धनि। बिभेद सालं सुग्रीवो न चैवाव्यथयत्कपिः ।। | 3-288-10a 3-288-10b |
ततो विनद्यसहसा सालस्पर्शविबोधितः। दोर्भ्यामादाय सुग्रीवं कुम्भकर्णोऽहरद्बलात् ।। | 3-288-11a 3-288-11b |
ह्रियमाणं तु सुग्रीवं कुम्भकर्णेन रक्षसा। अवेक्ष्याभ्यद्रवद्वीरः सौमित्रिर्मित्रनन्दनः ।। | 3-288-12a 3-288-12b |
सोऽभिपत्य महर्वेगं रुक्मपुङ्खं महाशरम्। प्राहिणोत्कुम्भकर्णाय लक्ष्मणः परवीरहा ।। | 3-288-13a 3-288-13b |
स तस्य देहावरणं भित्त्वा देहं च सायकः। जगाम दारयन्भूमिं रुधिरेण समुक्षितः ।। | 3-288-14a 3-288-14b |
तथा स भिन्नहृदयः समुत्सृज्य कपीश्वरम्। `वेगेन महताऽऽविष्टस्तिष्ठतिष्ठेति चाब्रवीत् ।। | 3-288-15a 3-288-15b |
कुम्भकर्णो महेष्वासः प्रगृहीतशिलायुधः। अभिदुद्राव सौमित्रिमुद्यम्य महतीं शिलाम् ।। | 3-288-16a 3-288-16b |
तस्याभिपततस्तूर्णं क्षुराभ्यामुच्छितौ करौ। चिच्छेद निशिताग्राभ्यां स बभूव चतुर्भुजः ।। | 3-288-17a 3-288-17b |
तानप्यस् भुजान्सर्वान्प्रगृहीतशिलायुधान्। क्षुरैश्चिच्छेदलघ्वस्त्रं सौमित्रिः प्रतिदर्शयन् ।। | 3-288-18a 3-288-18b |
स बभूवातिकायश्च बहुपादशिरोभुजः। तं ब्रह्मास्त्रेण सौमित्रिर्ददाराद्रिचयोपमम् ।। | 3-288-19a 3-288-19b |
स पपात महावीर्यो दिव्यास्त्राभिहतो रणे। महाशनिविनिर्दग्धः पादपोऽङ्कुरवानिव ।। | 3-288-20a 3-288-20b |
तं दृष्ट्वा वृत्रसंकाशं कुम्भकर्णं तरस्विनम्। गतासुं पतितं भूमौ राक्षसाः प्राद्रवन्भयात् ।। | 3-288-21a 3-288-21b |
तथातान्द्रवतो योधान्दृष्ट्वा तौ दूषणानुजौ। अवस्थाप्याथ सौमित्रिं संक्रुद्धावभ्यधावताम् ।। | 3-288-22a 3-288-22b |
तावाद्रवन्तौ संक्रुद्धौ वज्रवेगप्रमाथिनौ। अभिजग्राह सौमित्रिर्विनद्योभौ पतत्रिभिः ।। | 3-288-23a 3-288-23b |
ततः सुतुमुलं युद्धमभवद्रोमहर्षणम्। दूषणानुजयोः पार्थ लक्ष्मणस् च धीमतः ।। | 3-288-24a 3-288-24b |
महता शरवर्षेण राक्षसौ सोऽभ्यवर्पत। तं चापिवीरौ संक्रुद्धावुभौ तौ समवर्षताम् ।। | 3-288-25a 3-288-25b |
मुहूर्तमेवमभवद्वज्रवेगप्रमाथिनोः। सौमित्रेश्च महाबाहोः संप्रहारः सुदारुणः ।। | 3-288-26a 3-288-26b |
अथाद्रिशृङ्गमादाय हनुमान्मारुतात्मजः। अभिद्रुत्याददे प्राणान्वज्रवेगस्य रक्षसः ।। | 3-288-27a 3-288-27b |
नीलश्च महता ग्राव्णा दूपणावरजं हरिः। प्रमाथिनमभिद्रुत्य प्रममाथ महाबलः ।। | 3-288-28a 3-288-28b |
ततः प्रावर्तत पुनः संग्रामः कटुकोदयः। रामरावणसैन्यानामन्योन्यमभिधावताम् ।। | 3-288-29a 3-288-29b |
शतसो नैर्ऋतान्वन्या जघ्नुर्वन्यांश्च नैर्ऋताः। नैर्ऋतास्तत्रवध्यन्ते प्रायेण न तु वानराः ।। | 3-288-30a 3-288-30b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि रामोपाख्यानपर्वणि अष्टाशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 288 ।। |
3-288-1 जितकाशि दृढमुष्टि। काशिर्मुष्टिः प्रकाशनादिति यास्क ।। 3-288-30 वन्या वनेचरा वानराः ।।
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