महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-299
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अकस्माच्चक्षुर्लाभतुष्टनापि पुत्रानागमविषण्णेन द्युमत्सेनन तत्रतत्रतदन्वेषणम् ।। 1 ।। ऋषिगणेन शुभनिमित्तज्ञापनेन समाश्वासिते तस्मिन्सावित्र्यासह सत्यवता पितुराश्रमाभिगमनम् ।। 2 ।। मुनिगणाय सावित्र्या वने वृत्तवृत्तान्तनिवेदनम् ।। 3 ।।
मार्कण्डेय उवाच। | 3-299-1x |
एतस्मिन्नेव काले तु द्युमत्सेनो महाबलः। लब्धचक्षुः प्रसन्नायां दृष्ट्यां सर्वं ददर्श ह ।। | 3-299-1a 3-299-1b |
स सर्वानाश्रमान्गत्वा शैब्यया सह भार्यया। पुत्रहेतोः परामार्तिं जगाम भरतर्षभ ।। | 3-299-2a 3-299-2b |
तावाश्रमान्नदीश्चैववनानि च सरांसि च। तस्यां निशि विचिन्वन्तौ दम्पती परिजग्मतुः ।। | 3-299-3a 3-299-3b |
श्रुत्वा शब्दं तु यं कंचिदुन्मुखौ सुतशङ्कया। सावित्रीसहितोऽभ्येति सत्यवानित्यभाषताम् ।। | 3-299-4a 3-299-4b |
भिन्नैश्च परुषैः पादैः सव्रणैः शोणितोक्षितैः। कुशकणअटकविद्धाङ्गावुनमत्ताविव धावतः ।। | 3-299-5a 3-299-5b |
ततोऽभिसृत्य तैर्विप्रैः सर्वैराश्रमवासिभिः। परिवार्य समाश्वास्य तावानीतौ स्वमाश्रमम् ।। | 3-299-6a 3-299-6b |
तत्रभार्यासहायः स वृतो वृद्धैस्तपोधनैः। आश्वासितोपि चित्रार्थैः पूर्वराजकथाश्रयैः ।। | 3-299-7a 3-299-7b |
ततस्तौ पुनराश्वस्तौ वृद्धौ पुत्रदिदृक्षया। बाल्यवृत्तानि पुत्रस्य सावित्र्या दर्शनानि च। शोकं जग्मतुरन्योन्यं स्मरन्तौ भृशदुःखितौ ।। | 3-299-8a 3-299-8b 3-299-8c |
हापुत्र हासाध्वि वधु क्वासिक्वासीत्यरोदताम्। ब्राह्मणः सत्यवाक्येषामुवाचेदं तयोर्वचः ।। | 3-299-9a 3-299-9b |
सुवर्चा उवाच। | 3-299-10x |
यथास्य भार्या सावित्री तपसा च दमेन च। आचारेण च संयुक्ता तथा जीवति सत्यवान् ।। | 3-299-10a 3-299-10b |
गौतम उवाच। | 3-83-299x |
वेदाः साङ्गा मयाऽधीतास्तपो मे संचितं महत्। कौमारब्रह्मचर्यं च गुरवोऽग्निश्च तोषिताः ।। | 3-299-11a 3-299-11b |
समाहितेन चीर्णानि सर्वाण्येव व्रतानि मे। वायुभक्षोपवासश्च कृतोमे विधिवत्सदा ।। | 3-299-12a 3-299-12b |
अनेन तपसा वेद्मि सर्वं परचीकीर्षितम्। सत्यमेतन्निबोधध्वं ध्रियते सत्यवानिति ।। | 3-299-13a 3-299-13b |
शिष्य उवाच। | 3-299-14x |
उपाध्यायस्य मे वक्राद्यथा वाक्यं विनिःसृतम्। नैव जातु भवेन्मिथ्या तथा जीवति सत्यवान् ।। | 3-299-14a 3-299-14b |
ऋषय ऊचुः। | 3-299-15x |
यथाऽस्य भार्या सावित्री सर्वैरेव सुलक्षणैः। अवैधव्यकरैर्युक्ता तथा जीवति सत्यवान् ।। | 3-299-15a 3-299-15b |
भारद्वाज उवाच। | 3-299-16x |
यथाऽस्य भार्या सावित्री तपसा च दमेन च। आचारेण च संयुक्ता तथा जीवति सत्यवान् ।। | 3-299-16a 3-299-16b |
दाल्भ्या रउवाच। | 3-299-17x |
यथा दृष्टिः प्रवृत्ता ते सावित्र्याश्च यथा व्रतम्। गताऽऽहारमकृत्वैव तथा जीवति सत्यवान् ।। | 3-299-17a 3-299-17b |
आपस्तम्ब उवाच। | 3-299-18x |
यथा वदन्ति शान्तायां दिशि वै मृगपक्षिणः। पार्थिवीं चैववृद्धिं ते तथा जीवति सत्यवान् ।। | 3-299-18a 3-299-18b |
धौम्य उवाच। | 3-299-19x |
सर्वैर्गुणैरुपेतस्ते यथा पुत्रो जनप्रियः। दीर्घायुर्लक्षणोपेतस्तथा जीवति स्यवान् ।। | 3-299-19a 3-299-19b |
मार्कण्डेय उवाच। | 3-299-20x |
एवमाश्वासितस्तैस्तु सत्यवाग्भिस्तपस्विभिः। तांस्तान्विगणयन्सर्वांस्ततः स्थिर इवाभवत् ।। | 3-299-20a 3-299-20b |
ततो मुहूर्तात्सावित्री भर्त्रा सत्वता सह। आजगामाश्रमं रात्रौ प्रहृष्टा प्रविवेश ह ।। | 3-299-21a 3-299-21b |
`दृष्ट्वा चोत्पतिताः सर्वेहर्षं जग्मुश्च ते द्विजाः। कण्ठं माता पिता चास्य समालिङ्ग्याभ्यरोदतां' ।। | 3-299-22a 3-299-22b |
ब्राह्मणा ऊचुः। | 3-299-23x |
पुत्रेण संगतं त्वां तु चक्षुष्मन्तं निरीक्ष्य च। सर्वे वयं वै पृच्छामो वृद्धिं वै पृथिवीपते ।। | 3-299-23a 3-299-23b |
समागमेन पुत्रस्य सावित्र्या दर्शनेन च। चक्षुषश्चात्मनो लाभात्रिभिर्दिष्ठ्या विवर्धसे ।। | 3-299-24a 3-299-24b |
सर्वैरस्माभिरुक्तं यत्तथा तन्नात्रसंशयः। भूयोभूयः समृद्धिस्ते क्षिप्रमेव भविष्यति ।। | 3-299-25a 3-299-25b |
मार्कण्डेय उवाच। | 3-299-26x |
ततोऽग्निं तत्र संज्वाल्य द्विजास्ते सर्व एव हि। उपासांचक्रिरे पार्थ द्युमत्सेनं महीपतिम् ।। | 3-299-26a 3-299-26b |
शैव्या च सत्यवांश्चैव सावित्री चैकतः स्थिताः। सर्वैस्तैरभ्यनुज्ञाता विशोका समुपाविशन् ।। | 3-299-27a 3-299-27b |
ततो राज्ञा सहासीनाः सर्वे ते वनवासिनः। जातकौतूहलाः पार्थ पप्रच्छुर्नृपतेः सुतम् ।। | 3-299-28a 3-299-28b |
प्रागेव नागतं कस्मात्सभार्येण त्वया विभो। विरात्रे चागतं कस्मात्कोनु बन्धस्तवाभवत् ।। | 3-299-29a 3-299-29b |
संतापितः पिता माता वयं चैव नृपात्मज। कस्मादिति न जानीमस्तत्सर्वं वक्तुमर्हिसि ।। | 3-299-30a 3-299-30b |
सत्यवानुवाच। | 3-299-31x |
पित्राऽहमभ्यनुज्ञातः सावित्रीसहितो गतः। अथ मेऽभूच्छिरोदुःखं वने काष्ठानि भिन्दतः ।। | 3-299-31a 3-299-31b |
सुप्तश्चाहं वेदनया चिरमित्युपलक्षये। तावत्कालं न च मया सुप्तपूर्वं कदाचन ।। | 3-299-32a 3-299-32b |
सर्वेषामेव भवतां संतापो मा भवेदिति। अतो विरात्रागमनं नान्यदस्तीह कारणम् ।। | 3-299-33a 3-299-33b |
गौतम उवाच। | 3-299-34x |
अकस्माच्चक्षुः प्राप्तिर्द्युमत्सेनस्य ते पितुः। नास्य त्वं कारणं वेत्सि सावित्री वक्तुमर्हति ।। | 3-299-34a 3-299-34b |
श्रोतुमिच्छामि सावित्रि त्वं हि वेत्थ परावरम्। त्वां हि जानामि सावित्रि सावित्रीमिव तेजसा ।। | 3-299-35a 3-299-35b |
त्वमत्र हेतुं जानीषे तस्मात्सत्यं निरुच्यताम्। रहस्यं यदि ते नास्ति किंचिदत्र वदस्व नः ।। | 3-299-36a 3-299-36b |
सावित्र्युवाच। | 3-299-37x |
एवमेतद्यथा वेत्थ संकल्पो नान्यथा हि वः। न हि किंचिद्रहस्यं मे श्रूयतां तथ्यमेव यत् ।। | 3-299-37a 3-299-37b |
मृत्युर्मे पत्युराख्यातो नारदेन महात्मना। स चाद्य दिवसः प्राप्तस्ततो नैनं जहाम्यहम् ।। | 3-299-38a 3-299-38b |
सुप्तं चैनं साक्षादुपागच्छत्सकिंकरः। स एनमनयद्बद्ध्वा दिशं पितृनिषेविताम् ।। | 3-299-39a 3-299-39b |
अस्तौषं तमहं देवं सत्येन वचसा विभुम्। पञ्च वै तेन मे दत्ता वराः शृणुत तान्मम ।। | 3-299-40a 3-299-40b |
चक्षुषी च स्वराज्यंच द्वौ वरौ श्वशुरस्य मे। लब्धं पितुः पुत्रशतं पुत्राणां चात्मनः शतम् ।। | 3-299-41a 3-299-41b |
चतुर्वर्षशतायुर्मे भर्ता लब्धश्च सत्यवान्। भर्तुर्हि जीवितार्थं तु मया चीर्णं त्विदं व्रतम्। | 3-299-42a 3-299-42b |
एतत्सर्वं मयाऽऽख्यातं कारणं विस्तरण वः। यथावृत्तं सुखोदर्कमिदं दुःखं महन्मम ।। | 3-299-43a 3-299-43b |
ऋषय ऊचुः। | 3-299-44x |
निमज्ज्मानं व्यसनैरभिद्रुतं कुलं नरन्द्रस्य तमोमये ह्रदे। त्वया सुशीलव्रतपुण्यया कुलं रसमुद्धृतं साध्वि पुनः कुलीनया ।। | 3-299-44a 3-299-44b 3-299-44c 3-299-44d |
मार्कण्डेय उवाच। | 3-299-45x |
तथा प्रशस्य ह्यभिपूज्य चैव वरस्त्रियं तामृषयः समागताः। नरेन्द्रमामन्त्र्य सपुत्रभञ्जसा शिवेन रजग्मुर्मुदिताः स्वमालयम् ।। | 3-299-45a 3-299-45b 3-299-45c 3-299-45d |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि पतिव्रतामाहात्म्यपर्वणि एकोनत्रिशततमोऽध्यायः ।। 299 ।। |
3-299-5 भिन्नौर्विदीर्णैः। परुषैः कर्कशैः ।। 3-299-12 कुशलानि च यानि मे इति ध.पाठः ।। 3-299-18 शान्तायां प्रसन्नायाम् ।। 3-299-29 विरात्रे बहुरात्रे काले आगतं आगमनम् ।।
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