महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-094
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लोमशेन युधिष्ठिरंप्रत्यगस्त्यचरितकथनारम्भः ।। 1 ।। वातापील्वलवृत्तकधनम् ।। 2 ।। तथा लोपामुद्रोत्पत्तिप्रकारकथनम् ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 3-94-1x |
ततः संप्रस्थितो राजा कौन्तेयो भूरिदक्षिणः। अगस्त्याश्रममासाद्य दुर्जयायामुवास ह ।। | 3-94-1a 3-94-1b |
तत्रैव लोमशं राजा पप्रच्छ वदतांवरः। अगस्त्येनेह वातापिः किमर्थमुपशामितः ।। | 3-94-2a 3-94-2b |
आसीद्वा किंप्रभावश्च स दैत्यो मानवान्तकः। किमर्थं चोदितो मन्युरगस्त्यस्य महात्मनः ।। | 3-94-3a 3-94-3b |
लोमश उवाच। | 3-94-4x |
इल्वलो नाम दैतेय आसीत्कौरवनन्दना। मणिमत्यां पुरि पुरा वातापिस्तस्य चानुजः ।। | 3-94-4a 3-94-4b |
स ब्राह्मणं तपोयुक्तमुवाच दितिनन्दनः। पुत्रं मे भगवानेकमिन्द्रतुल्यं प्रयच्छतु ।। | 3-94-5a 3-94-5b |
तस्मै स ब्राह्मणो नादात्पुत्रं वासवसंमितम्। चुक्रोध सोऽसुरस्तस्य ब्राह्मणस्य ततो भृशम् ।। | 3-94-6a 3-94-6b |
तदाप्रभृतिराजेन्द्र इल्वलो ब्रह्महाऽसुरः। मन्युमान्भ्रातरं छागं मायावी ह्यकरोत्ततः ।। | 3-94-7a 3-94-7b |
मेषरूपी च वातापिः कामरूप्यभवत्क्षणात्। संस्कृत्यतं भोजयति ततो विप्रं जिधांसति ।। | 3-94-8a 3-94-8b |
स चाह्वयति यं वाचा गतं वैवस्वतक्षयम्। स पुनर्देहमास्थाय जीवन्स्म प्रत्यदृश्यत ।। | 3-94-9a 3-94-9b |
ततो वातापिमसुरं छागं कृत्वा सुसंस्कृतम्। तं ब्राह्मणं भोजयित्वा पुनरेव समाह्वयत् ।। | 3-94-10a 3-94-10b |
तामिल्वलेन महता स्वरेण गिरमीरिताम्। श्रुत्वाऽतिमायो बालवान्क्षिप्रं ब्राह्मणकण्टकः ।। | 3-94-11a 3-94-11b |
तस्य पार्श्वं विनिर्भिद्य ब्राह्मणस्य महासुरः। वातापिः प्रहसन्राजन्निश्चक्राम विशांपते ।। | 3-94-12a 3-94-12b |
एवं स ब्राह्मणान्राजन्भोजयित्वा पुनःपुनः। हिंसयामायस दैतेय इल्वलो दुष्टचेतनः ।। | 3-94-13a 3-94-13b |
अगस्त्यश्चापि भगवानेतस्मिन्काल एव तु। पितॄन्ददर्श गर्ते वै लम्बमानानधोमुखान् ।। | 3-94-14a 3-94-14b |
सोऽपृच्छल्लम्बमानांस्तान्भगवन्तश्च किंपराः। `किंमर्थं वेह लम्बध्वे गर्ते यूयमधोमुखाः'। संतानहेतोरिति ते प्रत्यूचुर्ब्रह्मवादिनः ।। | 3-94-15a 3-94-15b 3-94-15c |
ते तस्मै कथयामासुर्वयं ते पितरः स्वकाः। गर्तमेतमनुप्राप्ता लम्बामः प्रसवार्थिनः ।। | 3-94-16a 3-94-16b |
यदि नो जनयेथास्त्वमगस्त्यापत्यमुत्तमम्। स्यान्नोस्मान्निरयान्मोक्षस्त्वं च पुत्राप्नुया गतिम् ।। | 3-94-17a 3-94-17b |
स तानुवाच तेजस्वी सत्यधर्मपरायणः। करिष्ये पितरः कामं व्येतु वो मानसो ज्वरः ।। | 3-94-18a 3-94-18b |
ततः प्रसवसन्तानं चिन्तयन्भगवानृषिः। आत्मनः प्रसवस्यार्थे नापश्यत्सदृशीं स्त्रियम् ।। | 3-94-19a 3-94-19b |
स तस्य तस् सत्वस्य तत्तदङ्गमनुत्तमम्। संगृह्यतत्समैरङ्गैर्निर्ममे स्त्रियमुत्तमाम् ।। | 3-94-20a 3-94-20b |
स तां विदर्भराजाय पुत्रकामाय ताम्यते। निर्मितामात्मनोऽर्थाय मुनिः प्रादान्महातपाः ।। | 3-94-21a 3-94-21b |
सा तत्र जज्ञे सुभगा विद्युत्सौदामनी यथा। विभ्राजमाना वपुषा व्यवर्धत शुभानना ।। | 3-94-22a 3-94-22b |
जातमात्रां च तां दृष्ट्वा वैदर्भः पृथिवीपतिः। प्रहर्षेण द्विजातिभ्यो न्यवेदयत भारत ।। | 3-94-23a 3-94-23b |
अभ्यनन्दन्त तां सर्वे ब्राह्मणा वसुधाधिप। लोपामुद्रेति तस्याश्च चक्रिरे नाम ते द्विजाः ।। | 3-94-24a 3-94-24b |
ववृधे सा महाराज बिभ्रती रूपमुत्तमम्। अप्स्विवोत्पलिनी शीघ्रमग्नेरिव शिखा शुभा ।। | 3-94-25a 3-94-25b |
तां यौवनस्थां राजेन्द्रशतं कन्याः स्वलंकृताः। दास्यः शतं च कल्याणीमुपातस्थुर्वशानुगाः ।। | 3-94-26a 3-94-26b |
सा स्म दासीशतवृता मध्ये कन्याशतस्य च। आरस्ते तेजस्विनी कन्या रोहिणीव दिविप्रभा ।। | 3-94-27a 3-94-27b |
यौवनस्थामपि च तां शीलाचारसमन्विताम्। न वव्रे पुरुषः कश्चिद्भयात्तस्य महात्मनः ।। | 3-94-28a 3-94-28b |
सा तु सत्यवती कन्या रूपेणाप्सरसोप्यति। तोषयामास पितरं शीलेन स्वजनं तथा ।। | 3-94-29a 3-94-29b |
वैदर्भी तु तथायुक्तां युवतीं प्रेक्ष्य वै पिता। मनसा चिन्तयामास कस्मै दद्यामिमांसुताम् ।। | 3-94-30a 3-94-30b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि चतुर्नवतितमोऽध्यायः ।। 94 ।। |
3-94-1 दुर्जयायां वातापिपुर्यां मणिमतीसंज्ञायाम् ।। 3-94-6 नादात् न दत्तवान् ।। 3-94-8 कामरूपी यथाकामं रूपाणि कर्तुं समर्थः। संस्कृत्य पक्त्वा ।। 3-94-9 स च इल्वलश्च ।। 3-94-19 प्रसवसन्तानं संततेरविच्छेदम् ।। 3-94-20 तस्य तस्य सिंहमृगादेः अङ्गं कटिदृष्ठ्यादि। सर्वगुणवतीमित्यर्थः ।। 3-94-22 जज्ञे जाता। विद्युदिति विशेषणं द्युतिविशेषोपपादनार्थम् ।। 3-94-24 मुद्राणां तत्तन्मृगादिजातिगतानामसाधारणानां चिह्नानां कमनीयचक्षुष्ट्वानां लोपइव लोपस्तिरस्कारो यया सा लोपामुद्रा। आहिताग्न्यादिवत्पूर्वनिपातः। अन्येष्वपि दृश्यत इति दीर्घः ।। 3-94-26 वशानुगाः इच्छानुरूपाः ।।
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