महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-257
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दुर्योधनेन यज्ञसमापनानन्तरं सतहुमानं प्राहुणिकविप्रनृपेप्रषणपूर्वकं निजनगरप्रवेशनम् ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 3-257-1x |
ततस्तु शिल्पिनः सर्वं कृतमूर्चुर्नराधिपम्। विदुरश्च महाप्राज्ञो धृतराष्ट्रे न्यवेदयत् ।। | 3-257-1a 3-257-1b |
सज्जं क्रतुवरं राजन्कालप्राप्तं च भारत। सौवर्णं च कृतं सर्वं लाङ्गलं च महाधनम् ।। | 3-257-2a 3-257-2b |
एवच्छ्रुत्वा नृपश्रेष्ठो धृतराष्ट्रो विशंपते। आज्ञापयामास नृपः क्रतुराजप्रवर्तनम् ।। | 3-257-3a 3-257-3b |
ततः प्रववृते यज्ञः प्रभूतार्थः सुसंस्कृतः। दीक्षितश्चापि गान्धारिर्यथाशास्त्रं यथाक्रमम् ।। | 3-257-4a 3-257-4b |
प्रहृष्टो धृतराष्ट्रश्च विदुरश्च महायशाः। भीष्मो द्रोणः कृपः कर्णो गान्धारी च यशस्विनी ।। | 3-257-5a 3-257-5b |
निमन्त्रणार्थं दूर्तांश्च प्रेषयामास शीघ्रगान्। पार्थिवानां च राजेन्द्र ब्राह्मणानां तथैव च ।। | 3-257-6a 3-257-6b |
ते प्रयाता यथोद्दिष्टा दूतास्त्वरितवाहनाः। तत्र कचित्प्रयान्तं तु दूतं दुःशासनोऽब्रवीत् ।। | 3-257-7a 3-257-7b |
गच्छ द्वैतवनं शीघ्रं पाण्डवान्पापपूरुषान्। निमन्त्रय यथान्यायं विप्रांस्त स्मिन्वने तदा ।। | 3-257-8a 3-257-8b |
स गत्वा पाण्डवान्सर्वानुवाचाभिप्रणम्य च। दुर्योधनो महाराज यजते नृपसत्तमः ।। | 3-257-9a 3-257-9b |
स्ववीर्यार्जितमर्थौघमवाप्य कुरुसत्तमः। तत्र गच्छन्ति राजानो ब्राह्मणाश्च ततस्ततः ।। | 3-257-10a 3-257-10b |
अहं तु प्रेषितो राजन्कौरवेण महात्मना। आमन्त्रयति वो राजा धार्तराष्ट्रो जनेश्वरः। मनोभिलषितं राज्ञस्तं क्रतुं द्रष्टुमर्हथ ।। | 3-257-11a 3-257-11b 3-257-11c |
ततो युधिष्ठिरो राजा तच्छ्रुत्वा दूतभाषितम्। अब्रवीन्नृपशार्दूलो दिष्ट्या राजा सुयोधनः। यजते क्रतुमुख्येन पूर्वेषां कीर्तिवर्धनः ।। | 3-257-12a 3-257-12b 3-257-12c |
वयमप्युपयास्यामो न त्विदानीं कथंचन। समयः परिपाल्यो नो यावद्वर्षं त्रयोदशम् ।। | 3-257-13a 3-257-13b |
श्रुत्वैतद्धर्मराजस्य भीमो वचनमब्रवीत्। तदा तु नृपतिर्गन्ता धर्मराजो युधिष्ठिरः ।। | 3-257-14a 3-257-14b |
अस्त्रशस्त्रप्रदीप्तेऽग्नौ यदा तं पातयिष्यति। वर्षात्रयोदशादूर्ध्वं रणसत्रे नराधिपः ।। | 3-257-15a 3-257-15b |
यदा क्रोधहविर्मोक्ता धार्तराष्ट्रेषु पाण्डवः। आगन्तारस्तदा स्मेति वाच्यस्ते स सुयोधनः ।। | 3-257-16a 3-257-16b |
शेषास्तु पाण्डवा राजन्नैवोचुः किंचिदप्रियम्। दूतश्चापि यथावृत्तं धार्तराष्ट्रे न्यवेदयत् ।। | 3-257-17a 3-257-17b |
अथाजग्मुर्नरश्रेष्ठा नानाजनपदेश्वराः। ब्राह्मणाश्च महाभाग धार्तराष्ट्रपुरं प्रति ।। | 3-257-18a 3-257-18b |
ते त्वर्चिता यथाशास्त्रं यथाविधि यथाक्रमम्। मुदा परमया युक्ताः प्रीताश्चापि नरेश्वराः ।। | 3-257-19a 3-257-19b |
धृतराष्ट्रोऽपि राजेन्द्र संवृतः सर्वकौरवैः। हर्षेण महता युक्तो विदुरं प्रत्यभाषत ।। | 3-257-20a 3-257-20b |
यथा सुखी जनः सर्वः क्षत्तः स्यादन्नसंयुतः। तुष्येत्तु यज्ञसदने तथा नीतिर्विधीयताम् ।। | 3-257-21a 3-257-21b |
विदुरस्तु तदाज्ञाय सर्ववर्णानरिंदम। यथा प्रमाणतो विद्वान्पूजयामास धर्मवित् ।। | 3-257-22a 3-257-22b |
भक्ष्यपेयान्नपानेन माल्यैश्चापि सुगन्धिभिः। वासोभिर्विविधैश्चैव योजयामास हृष्टवत् ।। | 3-257-23a 3-257-23b |
कृत्वा ह्यवभृथं वीरो यथाशास्त्रं यथाक्रमम्। सान्त्वयित्वा च राजेन्द्रो दत्त्वा च विविधं वसु। विसर्जयामास नपान्ब्राह्मणांश्च सहस्रशः ।। | 3-257-24a 3-257-24b 3-257-24c |
विसृज्यच नृपान्सर्वान्भ्रातृभिः परिवारितः। विवेश हास्तिनपुरं सहितः कर्णसौबलैः ।। | 3-257-25a 3-257-25b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि घोषयात्रापर्वणि सप्तपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 257 ।। |
3-257-25 कर्णसौबलैः सौबलाद्यैः ।।
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