महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-090
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लोमशेन युधिष्ठिरंप्रति स्वसाहित्येन तीर्थयात्राविधायकपार्थवचननिवेदनम् ।। 1 ।। युधिष्ठिरेण लोमशाशयाऽधिक परिजनविसर्जनम् ।। 2 ।।
लोमश उवाच। | 3-90-1x |
धनंजयेन चाप्युक्तं यत्तच्छृणु युधिष्ठिर। युधिष्ठिरं भ्रातरं मे योजयेर्धर्म्यया धिया ।। | 3-90-1a 3-90-1b |
त्वं हि धर्मान्परान्वेत्थ तपांसि च तपोधन। श्रीमतां चापि जानासि धर्मं राज्ञां सनातनम् ।। | 3-90-2a 3-90-2b |
स भवान्परमं वेद रपावनं पुरुषं प्रति। तेन संयोजयेथास्त्वं तीर्थपुण्येन पाण्डवान् ।। | 3-90-3a 3-90-3b |
यथा तीर्थानि गच्छेत गाश्च दद्यात्स पार्थिवः। तथा सर्वात्मना कार्यमिति मामर्जुनोऽब्रवीत् ।। | 3-90-4a 3-90-4b |
भवता चानुगुप्तोऽसौ चरेत्तीर्थानि सर्वशः। रक्षोभ्यो रक्षितव्यश्च दुर्गेषु विषमेषु च ।। | 3-90-5a 3-90-5b |
दधीच इव देवेन्द्रं यथा चाप्यङ्गिरा रविम्। तथा रक्षस्व कौन्तेयान्राक्षसेभ्यो द्विजोत्तम ।। | 3-90-6a 3-90-6b |
यातुधाना हि बहवो राक्षसाः पर्वतोपमाः। त्वयाऽभिगुप्तान्कौन्तेयान्न विवर्तेयुरन्तिकम् ।। | 3-90-7a 3-90-7b |
सोऽहमिन्द्रस्य वचनान्नियोगादर्जुनस्य च। रक्षमाणो भयेभ्यस्त्वां चरिष्यामि त्वा सह ।। | 3-90-8a 3-90-8b |
द्विस्तीर्थानि मया पूर्वं दृष्टानि कुरुनन्दन। इदं तृतीयं द्रक्ष्यामि तान्येव भवता सह ।। | 3-90-9a 3-90-9b |
इयं राजर्षिभिर्याता पुण्यकृद्भिर्युधिष्ठिर। मन्वादिभिर्महाराज तीर्थयात्रा भयापहा ।। | 3-90-10a 3-90-10b |
नानृजुर्नाकृतात्मा च नाविद्यो न च पापकृत्। स्नाति तीर्थेषु कौरव्य न च वक्रमतिर्नरः ।। | 3-90-11a 3-90-11b |
त्वं तु धर्ममतिर्नित्यं धर्मज्ञः सत्यसंगरः। विमुक्तः सर्वपापेभ्यो भूय एव भविष्यसि ।। | 3-90-12a 3-90-12b |
यथा भगीरथो राजा राजानश्च गयादयः। यथा ययातिः कौन्तेय तथा त्वमपि पाण्डव ।। | 3-90-13a 3-90-13b |
युधिष्ठिर उवाच। | 3-90-14x |
न हर्षात्संप्रपश्यामि वाक्यस्यास्योत्तरं क्वचित्। यन्मां स्मरति देवेशः किं नामाभ्यधिकं ततः ।। | 3-90-14a 3-90-14b |
भवता संगमो यस् भ्राता चैव धनंजयः। वासवः स्मरते यस् को नामाभ्यधिकस्ततः ।। | 3-90-15a 3-90-15b |
यच्च मां भगवानाह तीर्थानां गमनं प्रति। धौम्यस्य वचनादेषा बुद्धिः पूर्वं कृतैव मे ।। | 3-90-16a 3-90-16b |
तद्यदा मन्यसे ब्रह्मन्गमनं तीर्तदर्शने। तदैव गन्तास्मि तीर्तान्येष मे निश्चयः परः ।। | 3-90-17a 3-90-17b |
वैशंपायन उवाच। | 3-90-18x |
गमने कृतबुद्धिं तं पाण्डवं लोमशोऽब्रवीत्। लघुर्भव महाराज लघुः स्वैरं गमिष्यसि ।। | 3-90-18a 3-90-18b |
युधिष्ठिर उवाच। | 3-90-19x |
भिक्षाभुजो निवर्तन्तां ब्राह्मणा यतयश्च ये ।। | 3-90-19a |
क्षुत्तृडध्वश्रमायासशीतार्तिमसहिष्णवः। ते सर्वे विनिवर्तन्तां ये च मृष्टभुजो द्विजाः ।। | 3-90-20a 3-90-20b |
पक्वान्नलेह्यपानानां मांसानां च विकल्पकाः। तेऽपि सर्वे निवर्तन्तां ये च सूदानुयायिनः। मया यथोचिताऽऽजीव्यौः संविभक्ताश्च वृत्तिभिः ।। | 3-90-21a 3-90-21b 3-90-21c |
ये चाप्यनुगताः पौरा राजभक्तिपुरःसराः। धृतराष्ट्रं महाराजमभिगच्छन्तु ते च वै। स दास्यति यथाकालमुचिता यस्य या भृतिः ।। | 3-90-22a 3-90-22b 3-90-23c |
स चेद्यथोचितां वृत्तिं न दद्यान्मनुजेश्वरः। अस्मत्प्रियहितार्थायपाञ्चाल्यो वः प्रदास्यति ।। | 3-90-23a 3-90-23b |
वैशंपायन उवाच। | 3-90-24x |
ततो भूयिष्ठशः पौरा गुरौ भारे समाहिते। विप्राश्च यतयो मुख्या जग्मुर्नागपुरं प्रति ।। | 3-90-24a 3-90-24b |
तान्सर्वान्धर्मराजस्य प्रेम्णा राजाऽम्बिकासुतः। प्रतिजग्राह विधिवद्धनैश्च समतर्पयत् ।। | 3-90-25a 3-90-25b |
ततः कुन्तीसुतो राजा लघुभिर्ब्राह्मणैः सह। लोमशेन च सुप्रीतस्त्रिरात्रं काम्यकेऽवसत् ।। | 3-90-26a 3-90-26b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि नवतितमोऽध्यायः ।। 90 ।। |
3-90-3 पुरुषप्रति पुरुषस्येत्यर्थः ।। 3-90-9 द्विः द्विवारम्। तृतीयं तृतीयवारम् ।। 3-90-10 तीर्तयात्रा शुभावहेति क ध. पाठः ।। 3-90-11 नानृती नाकृतात्मा चेति क. ध. पाठः ।। 3-90-18 लघुरल्पपरिवारः ।। 3-90-21 विकल्पकाः मृष्टामृष्टविभाजकाः। आजीव्यैर्भृत्यादिभिः। वृत्तिभिर्जीवनहेतुभिरन्नादिभिः ।। 3-90-23 पाञ्चाल्यो द्रुपदः ।।
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