महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-272
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युधिष्ठिरादीनां जयद्रथादिभिरायोधनम् ।। 1 ।। जयद्रथेन मीमादिभिः स्वसहायानां निधने द्रौपदीविमोचनपूर्वकं पलायनम् ।। 2 ।। भीमार्जुनाभ्यां परुषोक्तिपूर्वकं तदनुधावनम् ।। 3 ।।
महाभारतस्य पर्वाणि |
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वैशंपायन उवाच। | 3-272-1x |
संतिष्ठध्वं प्रहरत तूर्णं विपरिधावत। इति स्म सैन्धवो राजा चोदयामास तान्नृपन् ।। | 3-272-1a 3-272-1b |
ततो घोरतमः शब्दोरणे समभवत्तदा। भीमार्जुनयमान्दृष्ट्वा सैन्यानां सयुधिष्ठिरान् ।। | 3-272-2a 3-272-2b |
शिबिसिंधुत्रिगर्तानां विषादश्चाप्यजायत। तान्दृष्ट्वापुरुषव्याघ्रान्व्याघ्रानिव बलोत्कटान् ।। | 3-272-3a 3-272-3b |
हेमबिन्दुं महोत्सेधां सर्वशैक्यायसीं गदाम्। प्रगृह्याभ्यद्रवद्भीमः सैन्धवं कालचोदितम् ।। | 3-272-4a 3-272-4b |
तदन्तरमथावृत्य कोटिकाश्योऽभ्यहारयत्। महता रथवंशेन परिवार्य वृकोधरम् ।। | 3-272-5a 3-272-5b |
शक्तितोमरनाराचैर्वीरबाहुप्रचोदितैः। कीर्यमाणोपि बहुभिर्न स्म भीमोऽभ्यकम्पत ।। | 3-272-6a 3-272-6b |
गजं तु सगजारोहं पदातींश्च चतुर्दश। जघान गदया भीमः सैन्धवध्वजंनीमुखे ।। | 3-272-7a 3-272-7b |
पार्थः पञ्चशताञ्शूरान्पार्वतीयान्महारथान्। परीप्समानः सौवीरं जघान ध्वजिनीमुखे ।। | 3-272-8a 3-272-8b |
राजा स्वयं सुवीराणां प्रवराणां प्रहारिणाम्। निमेषमात्रेण शतं जघान समरे तदा ।। | 3-272-9a 3-272-9b |
ददृशे नकुलस्तत्ररथात्प्रस्कन्द्य खङ्गधृत्। शिरांसि पादरक्षाणां बीजवत्प्रवपन्मुहुः ।। | 3-272-10a 3-272-10b |
सहदेवस्तु संयाय रथेन गजयोधिनः। पातयामास नाराचैर्द्रुमेभ्य इव बर्हिणः ।। | 3-272-11a 3-272-11b |
ततस्त्रिगर्तः सधनुरवतीर्य महारथात्। गदया चतुरो वाहान्राज्ञस्तस् तदाऽवधीत् ।। | 3-272-12a 3-272-12b |
तमथाभ्यागतं राजा पदातिं कुन्तिनन्दनः। अर्धचन्द्रेण बाणएन विव्याधोरसि धर्मराट् ।। | 3-272-13a 3-272-13b |
स भिन्नहृदयो वीरो वक्राच्छोणितमुद्वमन्। पपाताभिमुखं प्राप्तश्चिन्नमूल इव द्रुमः ।। | 3-272-14a 3-272-14b |
इन्द्रसेनद्वितीयस्तु रथात्प्रस्कन्द्य धर्मराट्। हताश्वः सहदेवस्य प्रतिपेदे महारथम् ।। | 3-272-15a 3-272-15b |
नकुलं त्वभिसंवार्य क्षेमंकरमहामुखौ। उभावुभतस्तीक्ष्णैः शरवर्षैरवर्षताम् ।। | 3-272-16a 3-272-16b |
तौ शरैरभिवर्षन्तौ जीमूताविव वार्षिकौ। एकैकेन विपाठेन जघ्ने माद्रवतीसुतः ।। | 3-272-17a 3-272-17b |
त्रिगर्तराजः सुरथस्तस्याथ गजूर्गतः। रथमाक्षेपयामास गजेन गजयानवित् ।। | 3-272-18a 3-272-18b |
नकुलस्त्वपभीस्तस्माद्रथाच्चर्मासिपाणिमान्। उद्धाम्य स्तानमास्थाय तस्थौ गिरिवाचलः ।। | 3-272-19a 3-272-19b |
सुरथस्तं गजवरं वधाय नकुलस्य तु। प्रेषयामास सक्रोधमत्युच्छ्रितकरं ततः ।। | 3-272-20a 3-272-20b |
नकुलस्तस्य नागस्य समीपपरिवर्तिनः। सविषाणं भुजं मूले खङ्गेन निरकृन्तत ।। | 3-272-21a 3-272-21b |
स विनद्यमहानादं गजः किङ्किणिभूषणः। पतन्नवाक्शिरा भूमौ हस्त्यारोहमपोथयत् ।। | 3-272-22a 3-272-22b |
स तत्कर्म महत्कृत्वा शूरो माद्रवतीसुतः। भीमसेनरथं प्राप्य शर्म लेभे महारथः ।। | 3-272-23a 3-272-23b |
भीमस्त्वापततो राज्ञः कोटिकाश्यस् संगरे। सूतस्य नुदतो वाहान्क्षुरेणापाहरच्छिरः ।। | 3-272-24a 3-272-24b |
न बुबोध हतं सूतं स राजा बाहुशालिना। तस्याश्वा व्यद्रवन्सङ्ख्ये हतमसूतास्ततस्ततः ।। | 3-272-25a 3-272-25b |
विरथं हतसूतं तं भीमः प्रहरतांवरः। जघान तलयुक्तेन प्रासेनाभ्येत्य पाण्डवः ।। | 3-272-26a 3-272-26b |
द्वादशानां तु सर्वेषां सौवीराणां धनंजयः। चकर्त निशितैर्भल्लैर्धनूंषि च शिरांसि च ।। | 3-272-27a 3-272-27b |
शिबीनिक्ष्वाकुमुख्यांश्च त्रिगर्तान्सैन्धवानपि। जघानातिरथः सङ्ख्ये बाणगोचरमागतान् ।। | 3-272-28a 3-272-28b |
सूदिताः प्रत्यदृश्यन्त बहवः सव्यसाचिना। सपताकाश्च मातङ्गाः सध्वजाश्च महारथाः ।। | 3-272-29a 3-272-29b |
प्रच्छाद्य पृथिवीं तस्थुः सर्वमायोधनं प्रति। शरीराण्यशिरस्कानि विदेहानि शिरांसि च ।। | 3-272-30a 3-272-30b |
श्वगृध्रकङ्ककाकोलभासगोमायुवायसाः। अतृप्यंस्तत्रवीराणां हतानां मासशोणितैः ।। | 3-272-31a 3-272-31b |
`एवं तीक्ष्णशरज्वालैर्गाण्डीवानिलचोदितैः। सेनेन्धनं ददाहाशु सरोषः पार्थपावकः ।। | 3-272-32a 3-272-32b |
चक्राणां पतितानां च युगानां च महीपते। तूणीराणआं पताकानां ध्वजानां च रथैः सह ।। | 3-272-33a 3-272-33b |
ईषाणामनुकर्षाणां त्रिवेणूनां तथैव च। अक्षाणामथ योक्राणां प्रतोदानां च राशयः ।। | 3-272-34a 3-272-34b |
शिरसां पतितानां च कुण्डलोष्णीषधारिणाम्। भुजानां मकुटानां च हाराणामङ्गदैः सह ।। | 3-272-35a 3-272-35b |
छत्राणां व्यजनानां च चर्मणआं वर्मणां तथा। छिन्नानां कार्मुकाणां च पट्टसानां तथैव च ।। | 3-272-36a 3-272-36b |
शक्तीनामथ खङ्गानां दण्डानां सह तेमरैः। राशयश्चात्रदृश्यन्ते तत्रतत्र विशांपते ।। | 3-272-37a 3-272-37b |
पतितैश्चैव मातङ्गैः सयोधैः पर्वतोपमैः। हयैर्द्विधाकृतैः सार्धं सादिभिः सायुधैस्तथा ।। | 3-272-38a 3-272-38b |
विप्रविद्धै रथैश्चैव निहतैश्चपदातिभिः। अगम्यरूपा पृथिवी मांसशोणितकर्दमा' ।। | 3-272-39a 3-272-39b |
हतेषु तेषु वीरेषु सिन्धुराजो जयद्रथः। विमुच्य कृष्णां संत्रस्तः पलायनपरोऽभवत् ।। | 3-272-40a 3-272-40b |
स तस्मिन्संकुले सैन्ये द्रौपदीमवतार्य ताम्। प्राणप्रेप्सुरुपाधावद्वनं तत्र नराधमः ।। | 3-272-41a 3-272-41b |
द्रौपदीं धर्मराजस्तु दृष्ट्वा धौम्यपुरस्कृताम्। माद्रीपुत्रेण वीरेण रथमारोपयत्तदा ।। | 3-272-42a 3-272-42b |
ततस्तद्विद्रुतं सैन्यमपयाते जयद्रथे। आदिश्यादिश्य नाराचैराजघान वृकोदरः ।। | 3-272-43a 3-272-43b |
सव्यसाची तु तं दृष्ट्वा पलायन्तं जयद्रथम्। वारयामास निघ्नन्तं भीमं सैन्धवसैनिकान् ।। | 3-272-44a 3-272-44b |
अर्जुन उवाच। | 3-272-45x |
यस्यापचारात्प्राप्तोऽयमस्मान्क्लेशो दुरासदः। तमस्मिन्समरोद्देशे न पश्यामि जयद्रथम् ।। | 3-272-45a 3-272-45b |
`मूढं नैकृतिकं दुष्टं द्रौपद्याः क्लेशकारिणम्'। तमेवान्विष भद्रं ते किं ते योधैर्निपातितैः। अनामिषमिदं कर्म कथं वा मन्यते भवान् ।। | 3-272-46a 3-272-46b 3-272-46c |
वैशंपायन उवाच। | 3-272-47x |
इत्युक्तो भीमसेनस्तु गुडाकेशेन धीमता। युधिष्ठिरमभिप्रेत्य वाग्मी वचनमब्रवीत् ।। | 3-272-47a 3-272-47b |
हतप्रवीरा रिपवो भूयिष्ठं विद्रुता दिशः। गृहीत्वा द्रौपदीं राजन्निवर्ततु भवानितः ।। | 3-272-48a 3-272-48b |
यमाभ्यां सह राजेन्द्र धौम्येन च महात्मना। प्राप्याश्रमपदं राजन्द्रौपदीं परिसान्त्वय ।। | 3-272-49a 3-272-49b |
न हि मे मोक्ष्यतेजीवन्मूढः सैन्धवको नृपः। पातालतलसंस्थोपि यदि शक्रोस्य सारथिः ।। | 3-272-50a 3-272-50b |
युधिष्ठिर उवाच। | 3-272-51x |
न हन्तव्यो महाबाहो दुरात्माऽपिस सैन्धवः। दुःशलामभिसंस्मृत्य गान्धारीं च यशस्विनीम् ।। | 3-272-51a 3-272-51b |
वैशंपायन उवाच। | 3-272-52x |
तच्छ्रुत्वा द्रौपदी भीममुवाच व्याकुलेन्द्रिया। कुपिता ह्रीमती प्राज्ञा पती भीमार्जुनावुभौ ।। | 3-272-52a 3-272-52b |
कर्तव्यं चेत्प्रियं मह्यं वध्यः स पुरुषाधमः। सैन्धवापशदः पापो दुर्मतिः कुलपांसनः ।। | 3-272-53a 3-272-53b |
भार्याभिहर्ता वैरी यो यश्च राज्यहरो रिपुः। याचमानोऽपिसंग्रामे न मोक्तव्यः कथंचन ।। | 3-272-54a 3-272-54b |
इत्युक्तौ तौ नरव्याघ्रौ ययतुर्यत्र सैन्धवः। राजा निववृतेकृष्णामादाय सपुरोहितः ।। | 3-272-55a 3-272-55b |
स प्रविश्याश्रमपदमपविद्धवृसीकटम्। मार्कण्डेयादिभिर्विप्रैरनुकीर्णं ददर्श ह ।। | 3-272-56a 3-272-56b |
द्रौपदीमनुशोचद्भिर्ब्राह्मणैस्तैः समाहितैः। समेयाय महाप्राज्ञः सभार्य भ्रातृमध्यगः ।। | 3-272-57a 3-272-57b |
ते स्म तं मुदिता दृष्ट्वा पुनरप्यागतं नृपम्। जित्वा तान्सिनधुसौवीरान्द्रौपदीं चाहृतां पुनः ।। | 3-272-58a 3-272-58b |
स तैः परिवृतो राजातत्रैवोपविवेश ह। प्रविवेशाश्रमं कृष्णा यमाभ्यां सह भामिनी ।। | 3-272-59a 3-272-59b |
भीमसेनार्जुनौ चापि श्रुत्वा क्रोशगतं रिपुम्। स्वयमश्वांस्तुदन्तौ तौ जवेनैवाभ्यधावताम् ।। | 3-272-60a 3-272-60b |
इदमत्यद्भुतं चात्र चकारातिरथोऽर्जुनः। क्रोशमात्रगतानश्वान्सैन्धवस्य जघान यत् ।। | 3-272-61a 3-272-61b |
स हि दिव्यास्त्रसंपन्नः कृच्छ्रकालेऽप्यसंभ्रमः। अकरोद्दुष्करं कर्म शरैरस्त्रानुमन्त्रितैः ।। | 3-272-62a 3-272-62b |
ततोऽभ्यधावतां वीरावुभौ भीमधनंजयौ। हताश्वं सैन्धवं भीतमेकं व्याकुलचेतसम् ।। | 3-272-63a 3-272-63b |
सैन्धवस्तु हतान्दृष्ट्वा तथाऽश्वान्स्वान्सुदुःखितः। `रथात्प्रस्कन्द्य पद्भ्यां वै पलायनपरोऽभवत्' ।। | 3-272-64a 3-272-64b |
दृष्ट्वा रविक्रमकर्माणि कुर्वाणं च धनंजयम्। पलायनकृतोत्साहः प्राद्रवद्येन वै वनम् ।। | 3-272-65a 3-272-65b |
सैन्धवं त्वमिसंप्रेक्ष्यपराक्रान्तं पलायने। अनुयाय महाबाहुः फल्गुनो वाक्यमब्रवीत् ।। | 3-272-66a 3-272-66b |
अनन वीर्येण कथं स्त्रियं प्रार्थयसे बलात्। राजपुत्र निवर्तस्व न ते युक्तं पलायनम् ।। | 3-272-67a 3-272-67b |
कथं ह्यनुचरान्हित्वा शत्रुमध्ये पलायसे। इत्युच्यमानः पार्थेन सैन्धवो न न्यवर्तत ।। | 3-272-68a 3-272-68b |
तिष्ठतिष्ठेति तं भीमः सहसाऽभ्यद्रवद्बली। मा वधीरिति पार्थस्तं दयावान्प्रत्यभाषत ।। | 3-272-69a 3-272-69b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि द्रौपदीहरणपर्वणि द्विसप्तत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 272 ।। |
3-272-5 अन्तरं अभ्यहारयत् भीमजयद्रथयोर्मध्ये प्रवेशेन व्यवधानं कृतवान्। रथवंशेन रथवर्ग्रेण ।। 3-272-16 क्षेमंकरसुमालवौ इति क. पाठः। क्षेमंकरमहामलौ इति थ. ध. पाठः ।। 3-272-21 सविषाणं भुजं सदन्तं शुण्डादण्डम्। मूले गण्डप्रदेशे ।। 3-272-26 तलयुक्तेन मुष्टियुक्तेन ।। 3-272-46 अन्विष अन्विच्छ ।। 3-272-51 दुःशलां दुर्योधनभगिनीम् ।। 3-272-56 अपविद्धा इतस्ततो विशीर्णा बस्यः ऋषीणामासनानि ।। 3-272-65 विक्रमयुक्तानि कर्माणि ।।
आरण्यकपर्व-271 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आरण्यकपर्व-273 |