महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-293
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मार्कण्डेयेन स्वस्यानुपमदुःखानुभवितृत्वबुद्ध्या शोचतोयुधिष्ठिरस्य रामोपाख्यानकथनपूर्वकं हेतूपन्यासेन शोकापनोदनम् ।। 1 ।।
महाभारतस्य पर्वाणि |
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मार्कण्डेय उवाच। | 3-293-1x |
एवमेतन्महाबाहो रामेणामिततेजसा। प्राप्तं व्यसनमत्युग्रं वनवासकृतं पुरा ।। | 3-293-1a 3-293-1b |
मा शुचः परुषव्याघ्र क्षत्रियोसि परंतप। बाहुवीर्याश्रयेमार्गे वर्तसे दीप्तनिर्णये ।। | 3-293-2a 3-293-2b |
न हि ते वृजिनं किंचिद्दृश्यते परमण्वपि। अस्मिन्मार्गे निपीदेयुः सेन्द्रा अपि सुरासुराः ।। | 3-293-3a 3-293-3b |
संहत्य निहतोवृत्रो मरुद्भिर्वज्रपाणिना। नमुचिश्चैवदुर्धर्षो दीर्गजिह्वा चराक्षसी ।। | 3-293-4a 3-293-4b |
सहायवति सर्वार्थाः सतिष्ठन्तीह सर्वशः। किंनु तस्याजितं सङ्ख्ये यस् भ्राता धनंजयः ।। | 3-293-5a 3-293-5b |
अयं च बलिनांश्रेष्ठो भीमो भीमपराक्रमाः। युवानौ च महेष्वासौ वीरौ माद्रवतीसुतौ ।। | 3-293-6a 3-293-6b |
एभिः सहायैः कस्मात्त्वं विषीदसि परंतप। य इमे वज्रिणः सेनां जयेयुः समरुद्गणाम् ।। | 3-293-7a 3-293-7b |
त्वमप्येभिर्महेष्वासैः सहायैर्देवरूपिभिः। विजेष्यसि रणे सर्वानमित्रान्भरतर्षभ ।। | 3-293-8a 3-293-8b |
इतश्च त्वमिमां पश्यसैन्धवेन दुरात्मना। बलिना वीर्यमत्तेन हृतामेभिर्महात्मभिः ।। | 3-293-9a 3-293-9b |
आनीतां द्रौपदीं कृष्णां कृत्वा कर्म सुदुष्करम्। जयद्रथं च राजानं विजितं वशमागतम् ।। | 3-293-10a 3-293-10b |
असहायेन रामेण वैदेही पुनराहृता। हत्वासङ्ख्ये दशग्रीवं राक्षसं भीमविक्रमम् ।। | 3-293-11a 3-293-11b |
यस् शाखामृगामित्राण्यृक्षाः कालमुखास्तथा। जात्यन्तरगता राजन्नेतद्बुद्ध्याऽनुचिन्तय ।। | 3-293-12a 3-293-12b |
तस्मात्सर्वं कुरुश्रेष्ठ मा शुचो भरतर्षभ। त्वद्विधा हि महात्मानो न शोचन्ति परंतप ।। | 3-293-13a 3-293-13b |
वैशंपायन उवाच। | 3-293-14x |
एवमाश्वासितो राजामार्कण्डेयेन धीमता। त्यक्त्वा दुःखमदीनात्मा पुनरप्येनमब्रवीत् ।। | 3-293-14a 3-293-14b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि रामोपाख्यानपपर्वणि त्रिनवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 294 ।। |
3-293-2 दीप्तनिर्णये असंदिग्धे प्रत्यक्षफले ।।
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