महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-089
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लोमशेनेन्द्रवचनाद्युधिष्ठिरंप्रति पार्थस् पाशुपतादिप्राप्तिकथनपूर्वकमिनद्रसंदेशनिवेदनम् ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 3-89-1x |
एवं संभाषमाणे तु धौम्ये कौरवनन्दन। लोमशः स महातेजा ऋषिस्तत्राजगाम ह ।। | 3-89-1a 3-89-1b |
तं पाण्डवाग्रजो राजा सगणो ब्राह्मणाश्च ते। उपातिष्ठन्महाभागं दिवि शक्रमिवामराः ।। | 3-89-2a 3-89-2b |
समभ्यर्च्य यथान्यायं धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः। पप्रच्छागमने हेतुमटने च प्रयोजनम् ।। | 3-89-3a 3-89-3b |
स पृष्टः पाण्डुपुत्रेण प्रीयमाणो महामनाः। उवाच श्लक्ष्णया वाचा हर्षयन्निव पाण्डवान् ।। | 3-89-4a 3-89-4b |
संचरन्नस्मि कौन्तेय सर्वांल्लोकान्यदृच्छया। गतः शक्रस्य भवनं तत्रापश्यं सुरेश्वरम् ।। | 3-89-5a 3-89-5b |
तव च भ्रातरं वीरमपश्यं सव्यसाचिनम्। शक्रस्यार्धासनगतं तत्र मे विस्मयो महान् ।। | 3-89-6a 3-89-6b |
आसीत्पुरुषशार्दूल दृष्ट्वा पार्थं तथागतम्। आह मां तत्र देवेशो गच्छ पाण्डुसुतान्प्रति ।। | 3-89-7a 3-89-7b |
सोऽहमभ्यागतः क्षिप्रं दिदृक्षस्त्वां सहानुजम्। वचनात्पुरुहूतस्य पार्थस् च महात्मनः ।। | 3-89-8a 3-89-8b |
आख्यास्ये ते प्रियं तात महत्पाण्डवनन्दन। भ्रातृभिः सहितो राजन्कृष्णया चैव तच्छृणु ।। | 3-89-9a 3-89-9b |
यत्त्वयोक्तो महाबाहुरस्त्रार्थं भरतर्षभ। तदस्त्रमाप्तं पार्थेन रुद्रादप्रतिमं विभो ।। | 3-89-10a 3-89-10b |
यत्तद्ब्रह्मशिरो नाम तपसा रुद्रमागमत्। अमृतादुत्थितं रौद्रं तल्लब्धं सव्यसाचिना ।। | 3-89-11a 3-89-11b |
तत्समन्त्रं ससंहारं सप्रायश्चित्तमङ्गलम्। वज्रमस्त्राणि चान्यानि दण्डादीनि युधिष्ठिर ।। | 3-89-12a 3-89-12b |
यमात्कुबेराद्वरुणादिन्द्राच्च कुरुनन्दन। अस्त्राण्यधीतवान्पार्थो दिव्यान्यमितविक्रमः ।। | 3-89-13a 3-89-13b |
विश्वावसोस्तु तनयाद्गीतं नृत्यं च साम च। वादित्रं च यथान्यायं प्रत्यविन्दद्यथाविधि ।। | 3-89-14a 3-89-14b |
एवं कृतास्त्रः कौन्तेयो गान्धर्वं वेदमात्मवान्। सुखं वसति बीभत्सुरनुजस्यानुजस्तव ।। | 3-89-15a 3-89-15b |
यदर्थं मां सुरश्रेष्ठ इदं वचनमब्रवीत्। तच्च ते कथयिष्यामि युधिष्ठिर निबोध मे ।। | 3-89-16a 3-89-16b |
भवान्मनुष्यलोकेऽपि गमिष्यति न संशयः। ब्रूयाद्युधिष्ठिरं तत्रवचनान्मे द्विजोत्तम ।। | 3-89-17a 3-89-17b |
आगमिष्यति ते भ्राता कृतास्त्रः क्षिप्रमर्जुनः। सुरकार्यं महत्कृत्वा यदशक्यं दिवौकसैः ।। | 3-89-18a 3-89-18b |
तपसाऽपि त्वमात्मानं योजय भ्रातृभिः सह। तपसो हि परं नास्ति तपसा विन्दते महत् ।। | 3-89-19a 3-89-19b |
अहं च कर्णं जानामि यथावद्भरतर्षभ। सत्यसन्धं महोत्साहं महावीर्यं महाबलम् ।। | 3-89-20a 3-89-20b |
महाहवेष्वप्रतिमं महायुद्धविशारदम्। महाधनुर्धरं वीरं महास्त्रं वरवर्णिनम् ।। | 3-89-21a 3-89-21b |
महेश्वरसुतप्रख्यमादित्यतनयं प्रभुम्। तथाऽर्जुनमतिस्कन्धं सहजोल्वणपौरुणम् ।। | 3-89-22a 3-89-22b |
न स पार्तस्य संग्रामे कलामर्हति षोडशीम् ।। | 3-89-23a |
यच्चापि ते भयं कर्णान्मनसिस्थमरिंदम। तच्चाप्यपहरिष्यामि सव्यसाचिन्युपागते ।। | 3-89-24a 3-89-24b |
यच्च ते मानसं वीर तीर्थयात्रामिमां प्रति। स महर्षिर्लोमशस्ते कथयिष्यत्यसंशयम् ।। | 3-89-25a 3-89-25b |
यच्च किंचित्तपोयुक्तं फलं तीर्थेषु भारत। ब्रह्मर्षिरेष ब्रूयात्ते न तच्छ्रद्धेयमन्यथा ।। | 3-89-26a 3-89-26b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्तयात्रापर्वणि एकोननवतितमोऽध्यायः ।। 89 ।। |
3-89-12 प्रायश्चित्तं अस्त्राग्निना निरपराधानां दाहे यो दोषस्तस् शोधनम्। मङ्गलं दग्धानामेवारामादीनां पुनर्विकसनम्। वज्रं वज्रवदप्रतीकार्यं रौद्रमेव ।। 3-89-14 गीतं लौकिकं गानम्। साम ऋक्षु गानम् ।। 3-89-18 सुरकार्यं निवातकवचादीनां वधः। कृतार्थः क्षिप्रमर्जुन इति क. थ. पाठः ।। 3-89-20 रसत्यसन्धं सत्यप्रतिज्ञम् ।। 3-89-21 वरवर्णिनं अतिसुन्दरम् ।। 3-89-22 महेश्वरसुतप्रख्यं स्कन्दतुल्यम्। अतित्कन्धं उन्नतांसम् ।। 3-89-24 अपहरिष्यामि कवचकुण्डलापहरणेन ।। 3-89-26 तत् श्रद्धेयं नत्वन्यथा ग्रहीतव्यमित्यर्थः ।।
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