महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-313
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पिपासितेषु पाण्डवेषु युधिष्ठिरनियोगाद्वृक्षाग्रमधिरूढेन नकुलेन नातिदूरे किंचित्सरोविलोकनम् ।।
पानीयानयमाय सरोगतेषु नकुलादिषु यक्षवचनावमत्या पानीयपानेन दीर्घनिद्राश्रवणादनागतेषु युधिष्ठिरेणापि तत्सरोगमनम् ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 3-313-1x |
नापदामस्ति मर्यादा न निमित्तं न कारणम्। धर्मस्तु विभजत्यर्थमुभयोः पुण्यपापयोः ।। | 3-313-1a 3-313-1b |
भीम उवाच। | 3-313-2x |
प्रातिकाम्यनयत्कृष्णां सभायां प्रेष्यवत्तदा। न मया निहतस्तत्रतेन प्राप्ताः स्म संशयम् ।। | 3-313-2a 3-313-2b |
अर्जुन उवाच। | 3-313-3x |
वाचस्तीक्ष्णास्थिभेदिन्यः सूतपुत्रेण भाषिताः। अतितीव्रा मया क्षान्तास्तेन प्राप्ताः स्म संशयं ।। | 3-313-3a 3-313-3b |
सहदेव उवाच। | 3-313-4x |
शकुनिस्त्वां यदाऽजैषीदक्षद्यूतेन भारत। स मया न हतस्तत्रतेन प्राप्ताः स्म संशयम् ।। | 3-313-4a 3-313-4b |
वैशंपायन उवाच। | 3-313-5x |
ततो युधिष्ठिरो राजा नकुलं वाक्यमब्रवीत्। आरुह्य वृक्षं माद्रेय निरीक्षस्व दिशो दश ।। | 3-313-5a 3-313-5b |
पानीयमन्तिके पश्य वृक्षान्वाप्युदकाश्रयान्। एते हि भ्रातरः श्रान्तास्तव तात पिपासिताः ।। | 3-313-6a 3-313-6b |
नकुलस्तु तथेत्युक्त्वा भ्रातुर्ज्येऽष्ठस्य शासनात्। तत उत्थाय मतिमाञ्शीघ्रमारुह्य पादपम्। अब्रवीद्धांतरं ज्येष्मभिवीक्ष्य समन्ततः ।। | 3-313-7a 3-313-7b 3-313-7c |
पश्यामि बहुलान्राजन्वृक्षानुदकसंश्रयान्। सारसानां च निर्ह्रादस्तत्रोदकमसंशयम् ।। | 3-313-8a 3-313-8b |
ततोऽब्रवीत्सत्यधृतिः कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। गच्छ सौम्य ततः शीघ्रं तूणैः रपानीयमानय ।। | 3-313-9a 3-313-9b |
नकुलस्तु तथेत्युक्त्वा भ्रातुर्ज्येष्ठस्य शासनात्। प्राद्रवद्यत्र पानीयं शीघ्रं चैवान्वपद्यत ।। | 3-313-10a 3-313-10b |
स दृष्ट्वा विमलं तोयं सारसैः परिवारितम्। पातुकामस्ततो वाचमन्तरिक्षात्स शुश्रुवे ।। | 3-313-11a 3-313-11b |
यक्ष उवाच। | 3-313-12x |
मा तात साहसं कार्षीर्मम पूर्वपरिग्रहः। प्रश्नानुक्त्वा तु माद्रेय ततः पिब हरस्व च ।। | 3-313-12a 3-313-12b |
अनादृत्य तु तद्वाक्यं नकुलः सुपिपासितः। अपिबच्छीतलं तोयं पीत्वा च निपपात ह ।। | 3-313-13a 3-313-13b |
चिरायमाणे नकुले कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। अब्रवीद्ध्रातरं वीरं सहदेवमरिंदमम् ।। | 3-313-14a 3-313-14b |
भ्राता चिरायते तात सहदेव तवाग्रजः। तं चैवानय सोदर्यं पानीयं च त्वमानय ।। | 3-313-15a 3-313-15b |
सहदेवस्तथेत्युक्त्वा तां दिशं प्रत्यपद्यत। ददर्श च हतं भूमौ भ्रातरं नकुलं तदा ।। | 3-313-16a 3-313-16b |
भ्रातृशोकाभिसंतप्तस्तृषया च प्रपीडितः। अभिदुद्राव रपानीयं ततो वागभ्यभाषत ।। | 3-313-17a 3-313-17b |
मा तात साहसं कार्षीर्मम पूर्वपरिग्रहः। प्रश्नानुक्त्वा यथाकामं पिबस्व च हरस्व च ।। | 3-313-18a 3-313-18b |
अनादृत्य तु तद्वाक्यं सहदेवः पिपासितः। अपिबच्छीतलं तोयं पीत्वा च निपपात ह ।। | 3-313-19a 3-313-19b |
अथाब्रवीत्स विजयं कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। भ्रातरौ ते चिरगतौ बीभत्सो शत्रुकर्शन ।। | 3-313-20a 3-313-20b |
तौ चैवानय भद्रं ते पानीयं च त्वमानय। त्वं हि नस्तात सर्वेषां दुःखितानामपाश्रयः ।। | 3-313-21a 3-313-21b |
एवमुक्तो गुडाकेशः प्रगृह्य सशरं धनुः। आमुक्तखङ्गो मेधावी तत्सरः प्रत्यपद्यत ।। | 3-313-22a 3-313-22b |
यतः पुरुषशार्दूलौ पानीयहरणे गतौ। तौ ददर्श हतौ तत्रभ्रातरौ श्वेतवाहनः ।। | 3-313-23a 3-313-23b |
`विगतासू नरव्याघ्रौ शयानौ वसुधातले'। प्रसुप्ताविव तौ दृष्ट्वा नरसिंहः सुदुःखितः। धनुरुद्यम्य कौन्तेयो व्यलोकयत तद्वनम् ।। | 3-313-24a 3-313-24b 3-313-24c |
नापश्यत्तत्रकिंचित्स भूतमस्मिन्महावने। सव्यसाची पिपासार्तः पानीयं सोभ्यधावत ।। | 3-313-25a 3-313-25b |
अभिधावंस्ततो वाचमन्तरिक्षात्स शुश्रुवे। यत्त्वमिच्छसि पानीयं नैतच्छक्यं बलात्त्वया ।। | 3-313-26a 3-313-26b |
कौन्तेय यदि वै प्रश्नान्मयोक्तान्प्रतिवक्ष्यसि। ततः पास्यसि पानीयं हरिष्यसि च भारत ।। | 3-313-27a 3-313-27b |
वारितस्त्वब्रवीत्पार्थो दृश्यमानो निवारय। यावद्बाणैर्विनिर्भिन्नः पुनर्नैवं वदिष्यसि ।। | 3-313-28a 3-313-28b |
एवमुक्त्वा ततः पार्थः शरैरस्त्रानुमन्त्रितैः। प्रववर्ष रदिशः कृत्स्नाः शब्दवेधं च दर्शयन्। कर्णिनालीकनाराचानुत्सृजन्भरतर्षभः। | 3-313-29a 3-313-29b 3-313-29c |
स त्वमोघानिषून्मुक्त्वा तृष्णयाऽभिप्रपीडितः। अनेकैरिषुसंघातैरन्तरिक्षे ववर्ष ह ।। | 3-313-30a 3-313-30b |
यक्ष उवाच। | 3-313-31x |
किं विधानेन ते पार्थ प्रश्नानुक्त्वा पयः पिब। अनुक्त्वा च पिबन्प्रश्नान्पीत्वैव नभविष्यसि ।। | 3-313-31a 3-313-31b |
स च मोघानिषून्दृष्ट्वातृष्णया च प्रपीडितः। अवज्ञायैव तां वाचं पीत्वैव निपपात् ह ।। | 3-313-32a 3-313-32b |
अथाब्रवीद्भीमसेनं कुनतीपुत्रो युधिष्ठिरः। नकुलः सहदेवश्च बीभत्सुश्च परंतप ।। | 3-313-33a 3-313-33b |
चिरंगतास्तोयहेतोर्न चागच्छन्ति भारत। तांश्चैवानय भद्रं ते पानीयं च त्वमानय ।। | 3-313-34a 3-313-34b |
भीमसेनस्तथेत्युक्त्वा तं देशं प्रत्यपद्यत। रयत्रते पुरुषव्याघ्रा भ्रातरोस्य निपातिताः ।। | 3-313-35a 3-313-35b |
तान्दृष्ट्वा दुःखितो भीमस्तृषया च प्रपीडितः। अमन्यत महाबाहुः कर्म तद्यक्षरक्षसाम् ।। | 3-313-36a 3-313-36b |
सचिन्तयामास तदा योद्धव्यं ध्रुवमद्य मे। पास्यामि तावत्पानीयमिति पार्थो वृकोदरः ।। | 3-313-37a 3-313-37b |
ततोऽभ्यधावत्पानीयं पिपासुः पुरुषर्षभः ।। | 3-313-38a |
यक्ष उवाच। | 3-313-39x |
मा तात साहसंकार्षीर्मम पूर्वपरिग्रहः। प्रश्नानुक्त्वा तु कौन्तेय ततः पिब हरस्व च ।। | 3-313-39a 3-313-39b |
एवमुक्तस्तदा भीमो यक्षेणामिततेजसा। अनुक्त्वैव तु तान्प्रश्नान्पीत्वैव निपपात ह ।। | 3-313-40a 3-313-40b |
ततः कुन्तीसुतो राजा प्रचिन्त्य पुरुषर्षभः। `आत्मनाऽऽत्मानमन्विष्य विचारमकरोत्प्रभुः ।। | 3-313-41a 3-313-41b |
ततश्चिरगतान्भ्रातृनथाऽऽज्ञाय युधिष्ठिरः। चिरायमाणान्बहुशः पुनः पुनरुवाचह ।। | 3-313-42a 3-313-42b |
किंस्विद्वनमिदं दग्धं किंखिद्दृष्टो मृतो भवेत्। प्रहरन्तो महाभूतं शप्तास्तेनाथ तेऽपतन् ।। | 3-313-43a 3-313-43b |
न पश्यन्त्यथवा वीराः पानीयं यत्रते गताः। अन्विच्छद्भिर्वने तोयं कालोऽयमतिपातितः ।। | 3-313-44a 3-313-44b |
किंनु तत्कारणं येन नायान्ति पुरुषर्षभाः। गच्छाम्येषां पदं द्रष्टुमिति कृत्वा युधिष्ठिरः' ।। | 3-313-45a 3-313-45b |
समुत्थाय महाबुद्धिर्दह्यमानेन चेतसा। व्यपेतजननिर्घोषं प्रविवेश महावनम् ।। | 3-313-46a 3-313-46b |
रुरुभिश्च वराहैश्च पक्षिभिश्च निषेवितम्। नीलभास्वरवर्णैश्च पादपैरुशोभितम् ।। | 3-313-47a 3-313-47b |
भ्रमरैरुपगीतं च पक्षिभिश् समन्ततः। `मृदुशाड्वलसंकीर्णभूमिभागं मनोहरम्' ।। | 3-313-48a 3-313-48b |
स गच्छन्कानने तस्मिन्हेमजालपरिष्कृतम्। ददर्श तत्सरः श्रीमान्विश्वकर्मकृतं यथा ।। | 3-313-49a 3-313-49b |
उपेतं नलिनीजालैः सिन्धुवारैः सचेतसैः। केतकैः करवीरैश्च पिप्पलैश्चैव संवृतम् ।। | 3-313-50a 3-313-50b |
`ततो धर्मसुतः श्रीमान्भ्रातृदर्शनलालसः'। श्रमार्तस्तदुपागम्य सरो दृष्ट्वाऽथ विस्मितः ।। | 3-313-51a 3-313-51b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि आरणेयपर्वणि त्रयोदशाधिकत्रिशततमोऽध्यायः ।। 313 ।। |
3-313-1 रूपं विभजति ।। 3-313-2 प्रेष्यवत् प्रेष्यामिव ।। 3-313-12 साहसं जलपानरूपम्। परिग्रहो नियमः। यो मत्प्रश्नान्वदेत्स एवेतः पयः पिबेद्धरेद्धेति ।। 3-313-28 दृश्यमानो भूत्वेति शेषः ।। 3-313-31 विधानन यत्नेन। रनभविष्यसि मरिष्यसि ।। 3-313-49 हमजालानि हेमवर्णानि केसराणि तैः परिष्कृतं मण्डितम् ।। 3-313-50 सिन्धुवारैर्जलजविशेषैः ।।
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