महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-086
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धौम्येन युधिष्टिरंप्रति दक्षिणदिक्स्थनानातीर्थानुकीर्तनम् ।। 1 ।।
धौम्य उवाच। | 3-86-1x |
दक्षिणस्यां तु पुण्यानि शृणु तीर्थानि भारत। विस्तरेण यथाबुद्धि कीर्त्यमानानि तानि वै ।। | 3-86-1a 3-86-1b |
यस्यामाख्यायते पुण्या दिशि गोदावरी नदी। बह्वारामा बहुजला तापसाचरिता शिवा ।। | 3-86-2a 3-86-2b |
वेणा भीमरथी चैव नद्यौ पापभयापहे। मृगद्विजसमाकीर्णे तापसालयभूषिते ।। | 3-86-3a 3-86-3b |
राजर्षेस्तस् च सरिन्नृगस्य भरतर्षभ। रम्यतीर्था बहुजला पयोष्णी द्विजसेविता ।। | 3-86-4a 3-86-4b |
अपि चात्र महायोगी मार्कण्डेयो महायशाः। अनुवंश्यां जगौ गाथां नृगस्य धरणीपतेः ।। | 3-86-5a 3-86-5b |
नृगस् यजमानस्य प्रत्यक्षमिति नः श्रुतम्। `मरुतः परिवेष्टारः सदस्याश्च दिवौकसः'।। | 3-86-6a 3-86-6b |
पयोष्ण्यां यजमानस्य वाराहे तीर्थ उत्तमे। उद्धृतं भूतलस्थं वावायुना समुदीरितम्। पयोष्ण्या हरते तोयं पापमामरणान्तिकम् ।। | 3-86-7a 3-86-7b 3-86-7c |
स्वर्गादुत्तुङ्गममलं विषाणं यत्र शूलिनः। स्वमात्मविहितं दृष्ट्वा मर्त्यः शिवपुरं व्रजेत् ।। | 3-86-8a 3-86-8b |
एकतः सरितः सर्वा गङ्गाद्याः सलिलोच्चयाः। पयोष्णी चैकतः पुण्या तीर्थेभ्यो हि मता मम ।। | 3-86-9a 3-86-9b |
माठरस्य वनं पुण्यं बहुमूलफलं शिवम्। यूपश्च भरतश्रेष्ठ वरुणस्रोतसे गिरौ ।। | 3-86-10a 3-86-10b |
प्रवेण्युत्तरपार्स्वे तु पुण्ये कण्वाश्रमे तथा। तापसानामरण्यानि कीर्तितानि यथाश्रुति ।। | 3-86-11a 3-86-11b |
वेदी शूर्पारके तात जमदग्नेर्महात्मनः। रम्या पाषाणतीर्था च पुरश्चन्द्रा च भारत ।। | 3-86-12a 3-86-12b |
अशोकतीर्थं तत्रैव कौन्ते य बहुलाश्रमम्। अगस्त्यतीर्थं पाण्ड्येषु वारुणं च युधिष्ठिर ।। | 3-86-13a 3-86-13b |
कुमार्यः कथिताः पुण्याः पाण्ड्येष्वेव नरर्षभ। ताम्रपर्णी तु कौन्तेय कीर्तयिष्यामि तां शृणु ।। | 3-86-14a 3-86-14b |
यत्र देवैस्तपस्तप्तं महदिच्छद्भिराश्रमे। गोकर्णमिति विख्यातं त्रिषु लोकेषु भारत ।। | 3-86-15a 3-86-15b |
शीततोयो बहुजलः पुण्यस्तात शिवश्च सः। ह्रदः परमदुष्प्रापो मानुषैरकृतात्मभिः ।। | 3-86-16a 3-86-16b |
तत्र वृक्षतृणाद्यैश्च संपन्नः फलमूलवान्। आश्रमोऽगस्त्यशिष्यस्य पुण्यो देवसहे गिरौ ।। | 3-86-17a 3-86-17b |
वैडूर्यपर्वतस्तत्र श्रीमान्मणिमयः शिवः। अगस्त्यस्याश्रमश्चैव बहुमूलफलोदकः ।। | 3-86-18a 3-86-18b |
सुराष्ट्रेष्वपि वक्ष्यामि पुण्यान्यायतनानि च। आश्रमान्सरितश्चैव सरांसि च नराधिप ।। | 3-86-19a 3-86-19b |
चमसोद्भेदनं विप्रास्तत्रापि कथयन्त्युत। प्रभासं चोदधौ तीर्थं त्रिषु लोकेषु विश्रुतम् ।। | 3-86-20a 3-86-20b |
तत्र पिण्डारकं नाम तापसाचरितं शिवम्। उज्जयन्तश्च शिखरी क्षिप्रं सिद्धिकरो महान् ।। | 3-86-21a 3-86-21b |
तत्र देवर्षिवीरेण नारदेनानुकीर्तितः। पुराणः श्रूयते श्लोकस्तं निबोध युधिष्ठिर ।। | 3-86-22a 3-86-22b |
पुण्ये गिरौ सुराष्ट्रेषु मृगपक्षिनिषेविते। उज्जयन्ते स्म तप्ताङ्गो नाकपृष्ठे महीयते ।। | 3-86-23a 3-86-23b |
`एष नारायणः श्रीमान्क्षीरार्णवनिकेतनः। नागपर्यङ्कमुत्सृज्यह्यागतो मधुरां पुरीम्' ।। | 3-86-24a 3-86-24b |
पुण्या द्वारवती तत्रयत्रासौ मधुसूदनः। साक्षाद्देवः पुराणोसौ स हि धर्मः सनातनः ।। | 3-86-25a 3-86-25b |
ये च कवेदविदो विप्रा ये चाध्यात्मविदो जनाः। ते वदन्ति महात्मानं कृष्णं धर्मं सनातनम् ।। | 3-86-26a 3-86-26b |
पवित्राणां हि गोविन्दः पवित्रं परमुच्यते। पुण्यानामपि पुण्योसौ मङ्गालानां च मङ्गलम्। त्रैलोक्ये पुण्डरीकाक्षो देवदेवः सनातनः ।। | 3-86-27a 3-86-27b 3-86-27c |
अव्ययात्मा व्ययात्मा च क्षेत्रज्ञः परमेश्वरः। आस्ते हरिरचिन्त्यात्मा तत्रैव मधुसूदनः ।। | 3-86-28a 3-86-28b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि षडशीतितमोऽष्यायः ।। |
3-86-5 अनुवंश्यां वंशानूरूपां तु नृगमात्रानुरूपाम् ।। 3-86-13 अशोकतीर्थं मत्स्येष्विति ध. पाठः ।। 3-86-15 महत् मोक्षफलम् ।। 3-86-23 तप्ताङ्ग कृततपस्कः ।।
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