महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-146
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गन्धमादनप्रयाणे गमनाक्षमतयाऽधः पतनेन मूर्च्छिताया द्रौपद्याः पाण्डवैः सलिलसेचनादिना श्रमापनोदनम् ।। 1 ।। पाञ्चाल्या दुश्चराध्वसंचरणे चिन्तयमानं यिधिष्ठिरंप्रति भीमेन स्वेन घटोत्कचेन वा तस्या वहनोक्तिः ।। 2 ।।
वैशंपायन उवाच। | 3-146-1x |
ततः प्रयातमात्रेषु पाण्डवेषु महात्मसु। पद्भ्यामनुचिता गन्तुं द्रौपदी समुपाविशत् ।। | 3-146-1a 3-146-1b |
श्रान्ता दुःखपरीता च वातवर्षेण तेन च। सौकुमार्याच्च पाञ्चाली संमुमोह तपस्विनी ।। | 3-146-2a 3-146-2b |
सा कम्पमाना मोहेन बाहुभ्यामसितेक्षणा। रवृत्ताभ्यामनुरूपाभ्यामूरू समवलम्बत ।। | 3-146-3a 3-146-3b |
आलम्बमाना सहितावूरू गजकरोपमौ। रपपात सहसा भूमौ वेपन्ती कदली यथा ।। | 3-146-4a 3-146-4b |
तां पतन्तीं वरारोहां भज्यमानां लतामिव। नकुलः समभिद्रुत्य परिजग्राह वीर्यवान् ।। | 3-146-5a 3-146-5b |
नकुल उवाच। | 3-146-6x |
राजन्पाञ्चालराजस्य सुतेयमसितक्षणा। श्रान्ता निपतिता भूमौ तामवेक्षस्व भारत ।। | 3-146-6a 3-146-6b |
अदुःखार्हा परं दुःखं प्राप्तेयं मृदुगामिनी। आश्वासय महाराज तामिमां श्रमकर्शिताम् ।। | 3-146-7a 3-146-7b |
वैशंपायन उवाच। | 3-146-8x |
राजा तु वचनात्तस्य भृशं दुःखसमन्वितः। भीमश्च सहदेवश्च सहसा समुपाद्रवन् ।। | 3-146-8a 3-146-8b |
तामवेक्ष्यतु कौन्तेयो विवर्णवदनां कृशाम्। अङ्कमानीय धर्मात्मा पर्यदेवयदातुरः ।। | 3-146-9a 3-146-9b |
युधिष्ठिर उवाच। | 3-146-10x |
कथं वेश्मसु गुप्तेषु स्वास्तीर्णशयनोचिता। भूमौ निषतिता शेते सुखार्हा वरवर्णिनी ।। | 3-146-10a 3-146-10b |
सुकुमारौ कथं पादौ मुखं च कमलप्रभम्। मत्कृतेऽद्य वरार्हायाः श्यामतां समुपागतम् ।। | 3-146-11a 3-146-11b |
किमिदं द्यूतकामेन मया कृतमबुद्धिना। आदाय कृष्णां चरता वने मृगगणाकुले ।। | 3-146-12a 3-146-12b |
सुखं प्राप्स्यसि कल्याणि पाण्डवान्प्राप्य वै पतीन्। इतिद्रुवदराजेन पित्रा दत्ताऽयतेक्षणा ।। | 3-146-13a 3-146-13b |
तत्सर्वमानवाप्येयं श्रमशोकाद्विकर्शिता। शेते निपतिता भूमौ पापस्य मम कर्मभिः ।। | 3-146-14a 3-146-14b |
वैशंपायन उवाच। | 3-146-15x |
तथा लालप्यमाने तु धर्मराजे युधिष्ठिरे। धौम्यप्रभृतयः सर्वे तत्राजग्मुर्द्विजोत्तमाः ।। | 3-146-15a 3-146-15b |
ते समाश्वासयामासुराशीर्भिश्चाप्यपूजयन्। राक्षोघ्नांश्च तथा मन्त्राञ्जेपुश्चक्रुश्च ते क्रियाः ।। | 3-146-16a 3-146-16b |
पठ्यमानेषु मन्त्रेषु शान्त्यर्थं परमर्षिभिः। स्पृश्यमाना करैः शीतैः पाण्डवैश्च मुहुर्मुहुः ।। | 3-146-17a 3-146-17b |
सेव्यमाना च शीतेन जलमिश्रेण वायुना। पाञ्चाली सुखमासाद्य लेभे चेतः शनैः शनैः ।। | 3-146-18a 3-146-18b |
परिगृह्यच तां दीनां कृष्णामजिनसंस्तरे। पार्था विश्रामयामासुर्लब्धसंज्ञां तपस्विनम् ।। | 3-146-19a 3-146-19b |
तस्या यमौ रक्ततलौ पादौ पूजितलक्षणौ। कराभ्यां किणजाताभ्यां शनकैः संववाहतुः ।। | 3-146-20a 3-146-20b |
पर्याश्वासयदप्येनां धर्मराजो युधिष्ठिरः। उवाच च कुरुश्रेष्ठो भीमसेनमिदं वचः ।। | 3-146-21a 3-146-21b |
बहवः पर्वता मीम विषमा हिमदुर्गमाः। तेषु कृष्णा महाबाहो कथं नु विचरिष्यति ।। | 3-146-22a 3-146-22b |
भीमसेन उवाच। | 3-146-23x |
त्वां राजन्राजपुत्रीं च यमौ च पुरुषर्षभ। स्वयं नेष्यामि राजेनद्र मा विषादे मनुः कृथाः ।। | 3-146-23a 3-146-23b |
अथवा यो मया जातो विहगो मद्बलोपमः। वहेदनघ सर्वान्नो वचनात्ते घटोत्कचः ।। | 3-146-24a 3-146-24b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि षट्चत्वारिंशदधिकशततमोऽध्यायः ।। 146 ।। |
3-146-1 क्रोशमात्रं प्रयातेषु इति झ. पाठः ।। 1 .। 3-146-24 विहगइव विहगः खेचरः ।।
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