महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-236
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प्रियोक्तिभिर्द्रौपदीं परिसान्त्वितवत्या सत्यभामया सह श्रीकृष्णेन स्वपुरंप्रति गमनम् ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 3-236-1x |
मार्कण्डेयादिभिर्विप्रैः पाण्डवैश्च महात्मभिः। कथाभिरनुकूलाभिः सह स्तित्वा जनार्दनः ।। | 3-236-1a 3-236-1b |
ततस्तैः संविदं कृत्वा यथावन्मधुसूदनः। आरुरुक्षू रथं सत्यामाह्वयामास भारत ।। | 3-236-2a 3-236-2b |
सत्यभामा ततस्तत्र स्वजित्वा द्रुपदात्मजाम्। उवाच वचनं हृद्यं यथाभावं समाहितम् ।। | 3-236-3a 3-236-3b |
कृष्णे माभूत्तवोत्कण्ठा मा व्यथा मा प्रजागरः। भर्तृभिर्देवसंकाशैर्जितां प्राप्स्यसि मेदिनीम् ।। | 3-236-4a 3-236-4b |
न ह्येवं शीलसंपन्ना नैवं पूजितलक्षणाः। प्राप्नुवन्ति चिरं क्लेशं यथा त्वमसितेक्षणे ।। | 3-236-5a 3-236-5b |
अवश्यं च त्वया भूमिरियं निहतकण्टका। भर्तृभिः सहभोक्तव्या निर्द्वन्द्वेति श्रुतं मया ।। | 3-236-6a 3-236-6b |
धार्तराष्ट्रवधं कृत्वावैराणि प्तियात्य च। युधिष्ठिरस्थां पृथिवीं द्रष्टासि द्रुपदात्मजे ।। | 3-236-7a 3-236-7b |
यास्ताः प्रव्राजपानां त्वां प्राहसन्दर्पमोहिताः। ताः क्षिप्रं हतसंकल्पा द्रक्ष्यसि त्वं कुरुस्त्रियः ।। | 3-236-8a 3-236-8b |
तव दुःखोपपन्नाया यैराचरितमप्रियम्। विद्धि संप्रस्थितान्सर्वांस्तान्कृष्णे यमसादनम् ।। | 3-236-9a 3-236-9b |
पुत्रस्ते प्रतिविन्ध्यश्च सुतसोमस्तथाविधः। श्रुतकर्माऽर्जुनिश्चैव शतानीकश्च नाकुलिः ।। | 3-236-10a 3-236-10b |
सहदेवाच्च यो जातः श्रुतसेनस्तवात्मजः। सर्वेकुशलिनो वीराः कृतास्त्राश्च सुतास्तव ।। | 3-236-11a 3-236-11b |
अभिमन्युरिव प्रीता द्वारवत्यां रता भृशम्। त्वमिवैषां सुभद्रा च प्रीत्या सर्वात्मना स्थिता ।। | 3-236-12a 3-236-12b |
प्रीयते तव निर्द्वन्द्वा तेभ्यश्च विगतज्वरा। दुःखिता तेन दुःखेन सुखेन सुखिता तथा ।। | 3-236-13a 3-236-13b |
भजेत्सर्वात्मना चैव प्रद्युम्नजननी तथा। भानुप्रभृतिभिश्चैनान्विशिनष्टि च केशवः ।। | 3-236-14a 3-236-14b |
भोजनाच्छादने चैषां नित्यं मे श्वशुरः स्थितः। रामप्रभृतयः सर्वे भजन्त्यन्धकवृष्णयः ।। | 3-236-15a 3-236-15b |
तुल्यो हिप्रणयस्तेषां प्रद्युम्नस्य च भामिनि। एवमादि प्रियं सत्यंहृद्यमुक्त्वा मनोनुगम् ।। | 3-236-16a 3-236-16b |
गमनाय मनश्चक्रेवासुदेवरथं प्रति। तां कृष्णां कृष्णमहिषी चकाराभिप्रदक्षिणम् ।। | 3-236-17a 3-236-17b |
आरुरोह रथं शौरेः सत्यभामाऽथ भामिनी। स्मयित्वातु यदुश्रेष्ठो द्रौपदीं परिसान्त्व्य च। उपावर्त्य ततः शीघ्रैर्हयैः प्रायात्परंतपः ।। | 3-236-18a 3-236-18b 3-236-18c |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि द्रौपदीसत्यभामासंवादपर्वणि षट्त्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 236 ।। |
3-236-2 संविदं संभाषाम् ।। 3-236-3 स्वजित्वा आश्लिष्य ।। 3-236-4 कृष्णे हेद्रौपदि ।। 3-236-6 निर्द्वन्द्वा निष्प्रतिपक्षा ।। 3-236-16 प्रणयः स्नेहः ।। 3-236-18 उपावर्त्य पाण्डवनिति शेषः ।।
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