महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-166
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अर्जुनेन युधिष्ठिरादीन्प्रति संक्षेपेण स्वकीयस्वर्गनिवासप्रकारकथनम् ।। 1 ।।
महाभारतस्य पर्वाणि |
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वैशंपायन उवाच। | 3-166-1x |
ततः कदाचिद्धरिसंप्रयुक्तं महेन्द्रवाहं सहसोपयातम्। विद्युत्प्रभं प्रेक्ष्य महारथानां हर्षोऽर्जुनं चिन्तयतां बभूव ।। | 3-166-1a 3-166-1b 3-166-1c 3-166-1d |
स दीप्यमानः सहसाऽन्तरिक्षं प्रकाशयन्मातलिसंगृहीतः। बभौ महोल्केव घनान्तरस्था शिखेव चाग्नेर्ज्वलिता विधूमा ।। | 3-166-2a 3-166-2b 3-166-2c 3-166-2d |
तमास्थितः संददृशे किरीटी स्रग्वी नवान्याभरणानि बिभ्रत्। धनंजयो वज्रधरप्रभावः श्रिया ज्वलन्पर्वतमाजगाम् ।। | 3-166-3a 3-166-3b 3-166-3c 3-166-3d |
स शैलमासाद्य किरीटमाली महेन्द्रवाहादवरुह्य तस्मात्। धौम्यस्य पादावभिवाद्य पूर्व- मजातशत्रोस्तदनन्तरं च ।। | 3-166-4a 3-166-4b 3-166-4c 3-166-4d |
वृकोदरस्यापि च वन्द्य पादौ माद्रीसुताभ्यामभिवादितश्च। समेत्य कृष्णां परिसान्त्व्य चैनां प्रह्वोऽभवद्भ्रातुरुपह्वरे सः ।। | 3-166-5a 3-166-5b 3-166-5c 3-166-5d |
बभूव तेषां परमः प्रहर्ष- स्तेनाप्रमेयेण समेत्य तत्र। स चापि तान्प्रेक्ष्य किरीटमाली ननन्द राजानमभिप्रशंसन् ।। | 3-166-6a 3-166-6b 3-166-6c 3-166-6d |
यमास्थितः सप्त जघान पूगान् दितेः सुतानां नमुचेर्निहन्ता। तमिन्द्रवाहं समुपेत्य पार्थाः प्रदक्षिणं चक्रुरदीनसत्वाः ।। | 3-166-7a 3-166-7b 3-166-7c 3-166-7d |
ते मातलेश्चक्रुरतीव हृष्टाः सत्कारमग्र्यं सुरराजतुल्यम्। सर्वं यथावच्च दिवौकसङ्घं पप्रच्युरेनं कुरुराजपुत्राः ।। | 3-166-8a 3-166-8b 3-166-8c 3-166-8d |
तानप्यसौ मातलिरभ्यनन्द- त्पितेव पुत्राननुशिष्य पार्थान्। ययौ रथेनाप्रतिमप्रभेण पुनः सकाशं त्रिदिवेश्वरस्य ।। | 3-166-9a 3-166-9b 3-166-9c 3-166-9d |
गते तु तस्मिन्वरदेववाहे शक्रात्मजः सर्वरिपुप्रमाथी। `साक्षात्सहस्राक्ष इव प्रतीतः श्रीमान्स्वदेहादवमुच्य जिष्णुः' ।। | 3-166-10a 3-166-10b 3-166-10c 3-166-10d |
शक्रेण दत्तानिददौ महात्मा महाधनान्युत्तमरूपवन्ति। दिवाकराभाणि विभूषणानि प्रीतः प्रियायै सुतसोममात्रे ।। | 3-166-11a 3-166-11b 3-166-11c 3-166-11d |
ततऋः स तेषां कुरुपुङ्गवानां तेषां च सूर्याग्निसमप्रभाणाम्। विप्रर्षभाणामुपविश्य मध्ये सर्वं यथावत्कथयांबभूव ।। | 3-166-12a 3-166-12b 3-166-12c 3-166-12d |
एवं मयाऽस्त्राण्युपशिक्षितानि शक्राच्च वायोश्च शिवाच्च साक्षात्। तथैव शीलेन समाधिना च प्रीताः सुरा मे सहिताः सहेन्द्राः ।। | 3-166-13a 3-166-13b 3-166-13c 3-166-13d |
संक्षेपतो वै स विशुद्धकर्मा तेभ्यः समाख्याय दिवःप्रवेशम्। माद्रीसुताभ्यां सहितः किरीटी सुष्वाप तामावसतिं प्रतीतः ।। | 3-166-14a 3-166-14b 3-166-14c 3-166-14d |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि निवातकवचयुद्धपर्वणि षट्षष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः ।। 166 |
3-166-1 हरिभिरश्वैः संप्रयुक्तम्। महेन्द्रस्य वाहं रथम् ।। 3-166-5 प्रह्वो नम्रः। उपह्णरे समीपे ।। 3-166-7 पूगान्यूथानि ।। 3-166-8 एनं मातलिम् ।। 3-166-11 सुतसोमो भीमाद्द्रौपद्यां जातः ।। 3-166-14 आवसतिं रात्रिम्। प्रतीतो हृष्ठः ।।
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