महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-221
← आरण्यकपर्व-220 | महाभारतम् तृतीयपर्व महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-221 वेदव्यासः |
आरण्यकपर्व-222 → |
मार्कण्डेयेनाग्नीनामुत्पत्त्यादिकथनम् ।। 1 ।।
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
मार्कण्डेय उवाच। | 3-221-1x |
ब्रह्मणो यस्तृतीयस्तु पुत्रः कुरुकुलोद्वह। तस्यापि वसुदाभार्या प्रजास्तस्यां च मे शृणु ।। | 3-221-1a 3-221-1b |
बृहत्कीर्तिर्बृहज्ज्योतिर्बृहद्ब्रह्मा बृहन्मनाः। बृहन्मन्त्रो बृहद्भासस्तथा राजन्बृहस्पतिः ।। | 3-221-2a 3-221-2b |
प्रजासु तासु सर्वासु रूपेणाप्रतिमाऽभवत्। देवी भानुमती नाम प्रथमाऽङ्गिरसः सुता ।। | 3-221-3a 3-221-3b |
भूतानामेव सर्वेषां यस्यां रागस्तदाऽभवत्। रागाद्रागेति यामाहुर्द्वितीयाऽङ्गिरसः सुता ।। | 3-221-4a 3-221-4b |
यां कपर्दिसुतामाहुर्दृश्यादृश्येति देहिनः। तनुत्वात्सा सिनीवाली तुतीयाऽङ्गिरसः सुता ।। | 3-221-5a 3-221-5b |
यां तु दृष्ट्वा भगवतीं जनः कुहकुहायते। एकानकेति यामाहुश्चतुर्थ्यङ्गिरसः सुता ।। | 3-221-6a 3-221-6b |
पञ्चम्यर्चिष्मती नाम्ना हविर्भिश्च हविष्मती। षष्ठीम्गिरसः कन्यां पुण्यामाहुर्महिष्मतीम् ।। | 3-221-7a 3-221-7b |
महामखेष्वाङ्गिरसी दीप्तिमत्सु महीयती। महामतीति विख्याता सप्तमी कथ्यते सुता ।। | 3-221-8a 3-221-8b |
बृहस्पतेश्चान्द्रमसी भार्याऽऽसीद्या यशस्विनी। अग्नीन्साऽजनयत्पुण्यान्षडेकां चापि पुत्रिकाम् ।। | 3-221-9a 3-221-9b |
आहुतिष्वेव यस्याग्नेर्हविराज्यं विधीयते। सोग्निर्बृहस्पतेः पुत्र शंयुर्नाम महाप्रभः ।। | 3-221-10a 3-221-10b |
चातुर्मास्येषु यस्येष्टमश्वमेधाग्रभागभूत्। दीप्तिज्वालैरनेकाग्रैरग्निष्टोमोऽथ वीर्यवान् ।। | 3-221-11a 3-221-11b |
शंयोरप्रतिमा भार्या सत्या सत्याऽथ धर्मजा। अग्नितस्य सुतो दीप्तस्तिस्रः कन्याश्च सुव्रताः ।। | 3-221-12a 3-221-12b |
प्रथमेनाज्यभागेन पूज्यते योऽग्निरध्वरे। अग्निस्तस्य भरद्वाजः प्रथमः पुत्र उच्यते ।। | 3-221-13a 3-221-13b |
पौर्णमासेषु सर्वेषु हविराज्यं ध्रुवोद्यतम्। भरतो नामतः सोग्निर्द्वितीयः शंयुतः सुतः ।। | 3-221-14a 3-221-14b |
तिस्रः कन्या भवन्त्यन्या यासां स भरत पतिः। भारतस्तु सुतस्तस्य भारत्येका च पुत्रिका ।। | 3-221-15a 3-221-15b |
भारतो भरतस्याग्नेः पावकस्तु प्रजायते। महानत्यर्थमहितस्तथा भरतसत्तम ।। | 3-221-16a 3-221-16b |
भरद्वाजस्य भार्या तु वीरा वीरश्च पिण्डदः। प्राहुराज्येन तस्येज्यां सोमस्येव द्विजाः शनैः ।। | 3-221-17a 3-221-17b |
हविषा यो द्वितीयेन सोमेन सह युज्यते। रथप्रभू रथध्वानः कुम्भरेताः स उच्यते ।। | 3-221-18a 3-221-18b |
सरय्वां जनयत्सिद्धिं भानुं भाभिः समावृणोत्। आग्नेयमनयन्मिथ्यं मिथ्यो नामैव कथ्यते ।। | 3-221-19a 3-221-19b |
यस्तु न च्यवते नित्यं शयसा वर्चसा श्रिया। अग्निर्निश्च्यवनो नाम पृथिवीं स्तौति केवलम् ।। | 3-221-20a 3-221-20b |
विपाप्मा कलुषैर्मुक्तो विशुद्धश्चार्चिषा ज्वलन्। विपापोऽग्निः सुतस्तस्य योज्यः समयकर्मसु ।। | 3-221-21a 3-221-21b |
अक्रोशतां हि भूतानां यः करोति हि निष्कृतिम्। अग्निः स निष्कृतिर्नाम शोभयत्यभिसेवितः ।। | 3-221-22a 3-221-22b |
अनुकूजन्ति येनेह वेदनार्ताः स्वयं जनाः। तस्य पुत्रः स्वनो नाम पावकः सरुजस्करः ।। | 3-221-23a 3-221-23b |
यस्तु विश्वस् जगतो बुद्धिमाक्रम्य तिष्ठति। तं प्राहुरध्यात्मविदो विश्वजिन्नाम पावकम् ।। | 3-221-24a 3-221-24b |
अन्तराग्निः स्मृतो यस्तु भुक्तं पचति देहिनाम्। स यज्ञे विश्वभुङ्वाम सर्वलोकेषु भारत ।। | 3-221-25a 3-221-25b |
ब्रह्मचारी यतात्मा च सततं विपुलप्रभः। ब्राह्मणाः पूजयन्त्येनं पाकयज्ञेषु पावकम् ।। | 3-221-26a 3-221-26b |
प्रथितो गोपतिर्नाम नदी यस्याभवत्प्रिया। तस्मिन्कर्माणि सर्वाणि क्रियन्ते धर्मकर्तृभिः ।। | 3-221-27a 3-221-27b |
बडबाग्निः पिबत्यम्भो योसौ परमदारुणः। ऊर्द्वभागूर्ध्वभाङ्नाम कविः प्राणाश्रितस्तु यः ।। | 3-221-28a 3-221-28b |
उदग्द्वारं हविर्यस्य गृहे नित्यं प्रदीयते। ततस्तुष्टो भवेद्ब्रह्मा स्विष्टकृत्परमः स्मृतः ।। | 3-221-29a 3-221-29b |
यः प्रशान्तेषु भूतेषु आविर्भवति पावकः। क्रुद्धस्य तु रसो जज्ञे मन्युतीव्रा च पुत्रिका ।। | 3-221-30a 3-221-30b |
स्वाहेति दारुणा क्रूरा सर्वभूतेषु तिष्ठति। त्रिदिवे यस्य सदृशो नास्ति रूपेण कश्चन। अतुलत्वात्कृतो देवैर्नाम्ना कामस्तु पावकः ।। | 3-221-31a 3-221-31b 3-221-31c |
संहर्षाद्धारयन्क्रोधं धन्वी स्रग्वी रथे स्थितः। समरे नाशयेच्छत्रूनमोघो नाम पावकः ।। | 3-221-32a 3-221-32b |
उक्थ्यो नाम महाभाग त्रिभिरुक्थैरभिष्टुतः। महावर्षं त्वजनयत्सकामाश्वं हि यं विदुः ।। | 3-221-33a 3-221-33b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि मार्कण्डेयसमास्यापर्वणि एकविंसत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 221 ।। |
3-221-1 तस्यापि वसुधा भार्या इति ट. ध. पाठः ।। 3-221-2 बृहत्तेजा बृहन्मना इति क. ध. पाठः ।। 3-221-10 हविषाद्यं विधीयते इति झ. पाठः ।। 3-221-17 वीरस्य पिण्डदा इतिझ. पाठः ।। 3-221-33a उक्थो नाम महाभाग त्रिभिरुक्थैरभिष्टुतः। 3-221-33b महावाचं त्वजनयत् समाश्वासं हि यं विदुः।।
आरण्यकपर्व-220 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आरण्यकपर्व-222 |