महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-013
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति क्रमेण क्रोधस्यातिथेश्च निन्दाप्रशंसनपरवेदचतुष्टयसंवादानुवादः।। 1 ।।
भीष्म उवाच। | 13-13-1x |
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्। चतुर्णामपि वेदानां संवादं शृणु पुत्रक।। | 13-13-1a 13-13-1b |
ऋग्वेद उवाच। | 13-13-2x |
गृहानाश्रयमाणस्य अग्निहोत्रं च जुह्वतः। सर्वं सुकृतमादत्ते यः साये नुद्यतेऽतिथिः।। | 13-13-2a 13-13-2b |
' | 13-13-3x |
न स्कन्दते न व्यथते नास्योर्ध्वं सर्पते रजः। वरिष्ठमग्निहोत्राच्च ब्राह्मणस्य मुखे हुतम्।। | 13-13-3a 13-13-3b |
सामवेद उवाच। | 13-13-4x |
न चेद्धन्ति पितरं मातरं वा न ब्राह्मणं नापवादं करोति। यत्किंचिदन्यद्वृजिनं करोति। प्रीतोऽतिथिस्तदुपहन्ति पापम्।। | 13-13-4a 13-13-4b 13-13-4c 13-13-4d |
अथर्ववेद उवाच। | 13-13-5x |
यत्क्रोधनो यजते यद्ददाति यद्वा तपस्तप्यति यज्जुहोति। वैवस्वतो हरते सर्वमस्य मोघं चेष्टं भवति क्रोधनस्य।। | 13-13-6a 13-13-6b 13-13-6c 13-13-6d |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि त्रयोदशोऽध्यायः।। 13 ।। |
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