महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-138
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति श्राद्धे वर्जनीयधान्यशाकादिप्रतिपादकात्रिनिमिसंवादानुवादः।। 1 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 13-138-1x |
केन सङ्कल्पितं श्राद्धं कस्मिन्काले किमात्मकम्। भृग्वङ्गिरसिके काले मुनिना कतरेण वा।। | 13-138-1a 13-138-1b |
`येन सङ्कल्पितं चैव तन्मे ब्रूहि पितामह। कानि श्राद्धेषु वर्ज्यानि कानि मूलफलानि च। धान्यजात्यश्च का वर्ज्यास्तन्मे ब्रूहि पितामह।। | 13-138-2a 13-138-2b 13-138-2c |
भीष्म उवाच। | 13-138-3x |
यथा श्राद्धं सम्प्रवृत्तं यस्मिन्काले सदात्मकम्। येन सङ्कल्पितं चैव तन्मे शृणु जनाधिप।। | 13-138-3a 13-138-3b |
स्वायम्भुवोऽत्रिः कौरव्य परमर्षिः प्रतापवान्। तस्य वंशे महाराज दत्तात्रेय इति स्मृतः।। | 13-138-4a 13-138-4b |
दत्तात्रेयस्य पुत्रोऽभून्निमिर्नाम तपोधनः। निमेश्चाप्यभवत्पुत्रः श्रीमान्नाम श्रिया वृतः।। | 13-138-5a 13-138-5b |
पूर्णो वर्षसहस्रान्ते स कृत्वा दुष्करं तपः। कालधर्मपरीतात्मा निधनं समुपागतः।। | 13-138-6a 13-138-6b |
निमिस्तु कृत्वा शौचानि विधिदृष्टेन कर्मणा। सन्तापमगमत्तीप्रं पुत्रशोकपरायणः।। | 13-138-7a 13-138-7b |
अथ कृत्वोपकार्याणि चतुर्दश्यां महामतिः। तमेव गणयञ्शोकं विरात्रे प्रत्यबुध्यत।। | 13-138-8a 13-138-8b |
तस्यासीत्प्रतिबुद्धस्य शोकेन व्यथितात्मनः। मनः संहृत्य विषये बुद्धिर्विस्तारगामिनी।। | 13-138-9a 13-138-9b |
ततः सञ्चिन्तयामास श्राद्धकल्पं समाहितः। यानि तस्यैव भोज्यानि मूलानि च फलानि च।। | 13-138-10a 13-138-10b |
उक्तानि यानि चान्यानि यानि चेष्टानि तस्य ह। तानि सर्वाणि मनसा विनिश्चित्य तपोधनः।। | 13-138-11a 13-138-11b |
अमावास्यां महाप्राज्ञो विप्रानानाय्य पूजितान्। दक्षिणावर्तिकाः सर्वा बृसीः स्वयमथाकरोत्।। | 13-138-12a 13-138-12b |
सप्त विप्रांस्ततो भोज्ये युगपत्समुपानयत्। ऋते च लवणं भोज्यं श्यामाकान्नं ददौ प्रभुः।। | 13-138-13a 13-138-13b |
दक्षिणाग्रास्ततो दर्भा विष्टरेषु निवेशिताः। पादयोश्चैव विप्राणां ये त्वन्नमुपभुञ्जते।। | 13-138-14a 13-138-14b |
कृत्वा च दक्षिणाग्नान्वै दर्भान्स प्रयतः शुचिः। प्रददौ श्रीमते पिण्डान्नामगोत्रमुदाहरन्।। | 13-138-15a 13-138-15b |
तत्कृत्वा स मुनिश्रेष्ठो धर्मसङ्करमात्मनः। पश्चात्तापेन महता तप्यमानोऽभ्यचिन्तयत्।। | 13-138-16a 13-138-16b |
अकृतं मुनिभिः पूर्वं किं मयेदमनुष्ठितम्। कथं नु शापेन न मां दहेयुर्ब्राह्मणा इति।। | 13-138-17a 13-138-17b |
ततः सञ्चिन्तयामास वंशकर्तारमात्मनः। `बुद्ध्वाऽत्रिं मनसा दध्यौ भगवन्तं समाहितः। ध्यातमात्रस्तथा चात्रिराजगाम तपोधनः।। | 13-138-18a 13-138-18b 13-138-18c |
अथात्रिस्तं तथा दृष्ट्वा पुत्रशोकेन कर्शितम्। भृशमाश्वासयामास वाग्भिरिष्टाभिरव्ययः।। | 13-138-19a 13-138-19b |
निमे सङ्कल्पितस्तेऽयं पितृयज्ञस्तपोधन। मतो मे पूर्वदृष्टोऽत्र धर्मोऽयं ब्रह्मणा स्वयम्।। | 13-138-20a 13-138-20b |
सोयं स्वयभुविहितो धर्मः सङ्कल्पितस्त्वया। ऋते स्वयम्भुवः कोऽन्यः श्राद्धे संविधिमाहरेत्।। | 13-138-21a 13-138-21b |
अथाख्यास्यामि ते पुत्र श्राद्दे यं विधिमुत्तमम्। स्वयम्भुविहितं पुत्र तत्कुरुष्व निबोध मे।। | 13-138-22a 13-138-22b |
कृत्वाऽग्निशरणं पूर्वं मन्त्रपूर्वं तपोधन। ततोऽग्नयेऽथ सोमाय वरुणाय च नित्यशः।। | 13-138-23a 13-138-23b |
विश्वेदवाश्च यि नित्यं पितृभिः सह गोचराः। तेभ्यः सङ्कल्पिता भागाः स्वयमेव स्वयम्भुवा।। | 13-138-24a 13-138-24b |
स्तोतव्या चेह पृथिवी लोकस्यैव तु धारिणी। वैष्णवी काश्यपि चेति तथैवेहाक्षयेति च।। | 13-138-25a 13-138-25b |
उदकानयने चैव स्तोतव्यो वरुणो विभुः। ततोऽग्निश्चैव सोमश्च आराध्याविह तेऽनघ।। | 13-138-26a 13-138-26b |
देवास्तु पितरो नाम निर्मिता ये स्वयम्भुवा। ऊष्मपा ये महाभागास्तेषां भागः प्रकल्पितः।। | 13-138-27a 13-138-27b |
ते श्राद्धेनार्च्यमाना वै विमुच्यन्ते ह किल्बिषात्। सप्तकाः पितृवंशास्तु पूर्वदृष्टाः स्वयंभुवा।। | 13-138-28a 13-138-28b |
विश्वे चाग्निमुखा देवाः संख्याताः पूर्वमेव ते। तेषां नामानि वक्ष्यामि भागार्हाणां महात्मनाम्।। | 13-138-29a 13-138-29b |
सहः कृतिर्विपाप्मा च पुण्यकृत्पावनस्तथा। ग्राम्यः क्षेम्यः समूहश्च दिव्यसानुस्तथैव च।। | 13-138-30a 13-138-30b |
विवस्वान्वीर्यवाञ्श्रीमान्कीर्तिमान्कृत एव च। जितात्मा मुनिवीर्यश्च दीप्तरोमा भयङ्करः।। | 13-138-31a 13-138-31b |
अनुकर्मा प्रतीतश्च प्रदाताऽप्यंशुमांस्तथा। शैलाभः परमक्रोधी धीरोष्णी भूपतिस्तथा।। | 13-138-32a 13-138-32b |
स्रजो वज्रीवरी चैव विश्वेदेवाः सनातनाः। विद्युद्वर्चाः सोमवर्चाः सूर्यश्रीश्चेति नामतः।। | 13-138-33a 13-138-33b |
सोमपः सूर्यसावित्रो दत्तात्मा पुण्डरीयकः। उष्णीनाभो नभोदश्च विश्वायुर्दीप्तिरेव च।। | 13-138-34a 13-138-34b |
चमूहरः सुरेशश्च व्योमारिः शङ्करो भवः। ईशः कर्ता कृतिर्दक्षो भुवनो दिव्यकर्मकृत्।। | 13-138-35a 13-138-35b |
गणितः पञ्चवीर्यश्च आदित्यो रश्मिवांस्तथा। सप्तकृत्सोमवर्चाश्च विश्वकृत्कविरेव च।। | 13-138-36a 13-138-36b |
अनुगोप्ता सुगोप्ता च नप्ता चेश्वर एव च। कीर्तितास्ते महाभागाः कालस्य गतिगोचराः।। | 13-138-37a 13-138-37b |
अश्राद्धेयानि धान्यानि कोद्रवाः पुलकास्तथा। हिङ्गुद्रवेषु शाकेषु मूलानां लशुनं तथा।। | 13-138-38a 13-138-38b |
पलाण्डुः सौभाञ्जनकस्तथा गृञ्जनकादयः। कूश्माण्डजात्यलाबुं च कृष्णं लवणमेव च।। | 13-138-39a 13-138-39b |
ग्राम्यवाराहमांसं च यच्चैवाप्रोक्षितं भवेत्। कृष्णाजं जीरकं चैव शीतपाकी तथैव च। अङ्कुराद्यास्तथा वर्ज्या इह शृङ्गाटकानि च।। | 13-138-40a 13-138-40b 13-138-40c |
वर्जयेल्लवणं सर्वं तथा जम्बूफलानि च। अवक्षुतावरुदितं तथा श्राद्धे च वर्जयेत्। | 13-138-41a 13-138-41b |
निवापे हव्यकव्ये वा गर्हितं च सुदर्शनम्। पितरश्च हि देवाश्च नाभिनन्दन्ति तद्धविः।। | 13-138-42a 13-138-42b |
चण्डालश्वपचौ वर्ज्यौ निवापे समुपस्थिते। काषायवासाः कुष्ठी वा पतितो ब्रह्महाऽपि वा।। | 13-138-43a 13-138-43b |
सङ्कीर्णयोनिर्विप्रश्च सम्बन्धी पतितश्च यः। वर्जनीय बुधैरेते निवापे समुपस्थिते।। | 13-138-44a 13-138-44b |
इत्येवमुक्त्वा भगवान्स्ववंश्यं तमृषिं पुरा। पितामहसभां दिव्या जगामात्रिस्तपोधनः।। | 13-138-45a 13-138-45b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि अष्टत्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 138 ।। |
13-138-1 भृग्वङ्गिरसके यदा भृगवोऽङ्गिरसश्च वर्तन्ते नान्ये।। 13-138-2 श्राद्धेषु कानि कर्माणि वर्ज्यानि।। 13-138-8 कृत्वा उपकल्प्य। उपकार्याणि मृष्टान्नकशिपूपबर्हणादीनि। विरात्रे प्रभाते।। 13-138-9 विषये मनःसंहृत्य शोकं त्यक्त्वेत्यर्थः।। 13-138-12 दक्षिणावर्तिकाः प्रदक्षिणावर्तिताः। बृसीः आसनानि।। 13-138-16 श्रौते पित्राद्युद्देशेन दृष्टो धर्मो लोके पुत्रोद्देशेनापि स्वेच्छया कल्पित इति सङ्करः।। 13-138-23 तत्रार्थम्णे च सोमायेति ट.थ.पाठः।। 13-138-28 ते प्रसिद्धाः पित्रादयः। विमुच्यन्ते किल्बिषात् नरकादिरूपात्।। 13-138-38 पुलकाः असम्पूर्णतण्डुलयुक्तधान्यानि। हिङ्गुद्रवेषु शाकादिसंस्कारकद्रव्येषु।। 13-138-39 सौभाञ्जनकः शिग्रुः।। 13-138-40 शीतपाकी शाकविशेषः।। 13-138-42 सुदर्शनं शाकविशेषः।।
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