महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-252
← अनुशासनपर्व-251 | महाभारतम् त्रतयोदशपर्व महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-252 वेदव्यासः |
अनुशासनपर्व-253 → |
भीष्मेण हिमवद्गिरौ नारदोदितकृष्णमहिमानुवादः।। 1 ।। तथा पार्थकृष्णयोर्नरनारायणात्मकत्वकथनपूर्वकं कृष्णमहिमप्रशंसनम्।। 2 ।।
नारद उवाच। | 13-252-1x |
अथ व्योम्नि महाञ्शब्दः सविद्युत्स्तनयित्नुमान्। मेघैश्च गगनं नीलं संरुद्धमभवद्धनैः।। | 13-252-1a 13-252-1b |
प्रावृषीव च पर्जन्यो ववृषे निर्मलं पयः। तमश्वैवाभवद्धोरं दिशश्च न चकाशिरे।। | 13-252-2a 13-252-2b |
ततो देवगिरौ तस्मिन्रम्ये पुण्ये सनातने। न शर्वं भूतसङ्घं वा ददृशुर्मनयस्तदा।। | 13-252-3a 13-252-3b |
व्यभ्रं च गगनं सद्यः क्षणेन समपद्यत। तीर्थयात्रां ततो विप्रा जग्मुश्चान्ये यथागतम्।। | 13-252-4a 13-252-4b |
तदद्भुतमचिन्त्यं च दृष्ट्वा ते विस्मिताऽभवन्। शङ्करस्योमया सार्धं संवादं त्वत्कथाश्रयम्।। | 13-252-5a 13-252-5b |
स भवान्पुरुषव्याघ्र ब्रह्मभूतः सनातनः। यदर्थमनुशिष्टा स्मो गिरिपृष्ठे महात्मना।। | 13-252-6a 13-252-6b |
द्वितीयं त्वद्भुतमिदं त्वत्तेजःकृतमद्य वै। दृष्ट्वा च विस्मिताः कृष्ण सा च नः स्मृतिरागता।। | 13-252-7a 13-252-7b |
एतत्ते देवदेवस्य माहात्म्यं कथितं प्रभो। कपर्दिनो गिरीशस्य महाबाहो जनार्दन।। | 13-252-8a 13-252-8b |
इत्युक्ताः स तदा कृष्णस्तपोवननिवासिभिः। मानयामास तान्सर्वानृषीन्देवकिनन्दनः।। | 13-252-9a 13-252-9b |
अथर्षयः सम्प्रहृष्टाः पुनस्ते कृष्ममब्रुवन्। पुनःपुनर्दर्शयास्मान्सदैव मधुसूदन।। | 13-252-10a 13-252-10b |
न हि नः सा रति स्वर्गे या च त्वद्दर्शने विभो। तदृतं च महाबाहो यदाह भगवान्भवः।। | 13-252-11a 13-252-11b |
एतत्ते सर्वमाख्यातं रहस्यमरिकर्शन। त्वमेव ह्यर्ततत्त्वज्ञः पृष्टोऽस्मान्पृच्छसे यदा।। | 13-252-12a 13-252-12b |
तदस्माभिरिदं गुह्यं त्वत्प्रियार्थमुदाहृतम्। न च तेऽविदितं किञ्चित्त्रिषु लोकेषु विद्यते।। | 13-252-13a 13-252-13b |
जन्म चैव प्रसूतिश्च यच्चान्यत्कारणं विभो। वयं तु बहुचापल्यादशक्ता गुह्यधारणे।। | 13-252-14a 13-252-14b |
ततः स्थिते त्वयि विभो लघुत्वात्प्रलपामहे। न हि किञ्चित्तदाश्चर्यं यन्न वेत्ति भवानिह।। | 13-252-15a 13-252-15b |
दिवि वा भुवि वा देव सर्वं हि विदितं तव। साधयाम वयं कृष्ण बुद्धिं पुष्टिमवाप्नुहि।। | 13-252-16a 13-252-16b |
पुत्रस्ते सदृशस्तात विशिष्टो वा भविष्यति। महाप्रभावसंयुक्तो दीप्तिकीर्तिकरः प्रभुः।। | 13-252-17a 13-252-17b |
भीष्म उवाच। | 13-252-18x |
ततः प्रणम्य देवेशं यादवं पुरुषोत्तमम्। प्रदक्षिणमुपावृत्य प्रजग्मुस्ते महर्षयः।। | 13-252-18a 13-252-18b |
सोयं नारायणः श्रीमन्दीप्त्या परमया युतः। व्रतं यथावत्तच्चीर्त्वा द्वारकां पुनरागमत्।। | 13-252-19a 13-252-19b |
पूर्णे च दशमे मासि पुत्रोऽस्य परमाद्भुतः। रुक्मिण्यां सम्मतो जज्ञे शूरो वंशधरः प्रभो।। | 13-252-20a 13-252-20b |
स कामः सर्वभूतानां सर्वभावगतो नृप। असुराणां सुराणां च चरत्यन्तर्गतः सदा।। | 13-252-21a 13-252-21b |
सोयं पुरुषशार्दूलो मेघवर्णश्चतुर्भुजः। संश्रितः पाण्डवान्प्रेम्णा भवन्तश्चैनमाश्रिताः।। | 13-252-22a 13-252-22b |
कीर्तिर्लक्ष्मीर्धृतिश्चैवक स्वर्गमार्गस्तथैव च। यत्रैष संस्थितस्तत्र देवो विष्णुस्त्रिविक्रमः।। | 13-252-23a 13-252-23b |
सेन्द्रा देवास्त्रयस्त्रिंशदेष नात्र विचारणा। आदिदेवो महादेवः सर्वभूतप्रतिश्रयः।। | 13-252-24a 13-252-24b |
अनादिनिधनोऽव्यक्तो महात्मा मधुसूदनः। अयं जातो महातेजाः सुराणामर्थसिद्धये।। | 13-252-25a 13-252-25b |
सुदुस्तरार्थतत्त्वस्य वक्ता कर्ता च माधवः। तव पार्थ जयः कृत्स्नस्तव कीर्तिस्तथाऽतुला।। | 13-252-26a 13-252-26b |
तवेयं पृथिवी देवी कृत्स्ना नारायणाश्रयात्। अयं नाथस्तवाचिन्त्यो यस्य नारायणो गतिः।। | 13-252-27a 13-252-27b |
स भवांस्त्वमुपाध्वर्यू रणाग्नौ हुतवान्नृपान्। कृष्णस्रुवेण महता युगान्ताग्निसमेन वै।। | 13-252-28a 13-252-28b |
दुर्योधनश्च शोच्योसौ सपुत्रभ्रातृबान्धवः। कृतवान्योऽबुधः क्रोधाद्धरिगाण्डीविविग्रहम्।। | 13-252-29a 13-252-29b |
दैतेया दानवेन्द्राश्च महाकाया महाबलाः। चक्राग्नौ क्षयमापन्ना दावाग्नौ शलभा इव।। | 13-252-30a 13-252-30b |
प्रतियोद्धुं न शक्यो हि मानुषैरेव संयुगे। विहीनैः पुरुषव्याघ्र सत्त्वशक्तिबलादिभिः।। | 13-252-31a 13-252-31b |
जयो योगी युगान्ताभः सव्यसाची रणाग्रगः। तेजसा हतवान्सर्वं सुयोधनवलं नृप।। | 13-252-32a 13-252-32b |
यत्तु गोवृषभाङ्केन मुनिभ्यः समुदाहृतम्। पुराणं हिमवत्पृष्ठे तन्मे निगदतः शृणु।। | 13-252-33a 13-252-33b |
यावत्तस्य भवेत्पुष्टिस्तेजो जीप्तिः पराक्रमः। प्रभावः सन्नतिर्जन्म कृष्णे तत्त्रिगुणं विभो।। | 13-252-34a 13-252-34b |
कः शक्नोत्यन्यथा कर्तुं तद्यदि स्यात्तथा शृणु। यत्रः कृष्णो हि भगवांस्तत्र पुष्टिरनुत्तमा।। | 13-252-35a 13-252-35b |
वयं त्विहाल्पमतयः परतन्त्राः सुविक्लबाः। ज्ञानपूर्वं प्रपन्नाः स्मो मृत्योः पन्थानमव्ययम्।। | 13-252-36a 13-252-36b |
भवांश्चाप्यार्जवपरः पूर्वं कृत्वा प्रतिश्रयम्। राजवृत्तं न लभते प्रतिज्ञापालने रतः।। | 13-252-37a 13-252-37b |
अत्येवात्मवधं लोके राजंस्त्वं बहु मन्यसे। न हि प्रतिज्ञा या दत्ता तां प्रहातुमरिंदम।। | 13-252-38a 13-252-38b |
कालेनायं जनः सर्वो निहतो रणमूर्धनि। वयं च कालेन हताः कालो हि परमेश्वरः।। | 13-252-39a 13-252-39b |
न हि कालेन कालज्ञः स्पृष्टः शोचितुमर्हसि। कालो लोहितरक्ताक्षः कृष्णो दण्डी सनातनः।। | 13-252-40a 13-252-40b |
तस्मात्कुन्तीसुत ज्ञातीन्नेह शोचितुमर्हसि। व्यपेतमन्युर्नित्यं त्वं भव कौरवनन्दन।। | 13-252-41a 13-252-41b |
माधवस्यास्य महात्म्यं श्रुतं यत्कथितं मया। तदेव तावत्पर्याप्तं सज्जनस्य निदर्शनम्।। | 13-252-42a 13-252-42b |
व्यासस्य वचनं श्रुत्वा नारदस्य च धीमतः। स्वयं चैव महाराज कृष्णस्यार्हतमस्य वै।। | 13-252-43a 13-252-43b |
प्रभावश्चर्षिपूगस्य कथितः सुमहान्मया। महेश्वरस्य संवादं शैलपुत्र्याश्च भारत।। | 13-252-44a 13-252-44b |
धारयिष्यति यश्चैनं महापुरुषसम्भवम्। शृणुयात्कथयेद्वा यः स श्रेयो लभते परम्।। | 13-252-45a 13-252-45b |
भवितारश्च तस्याथ सर्वे कामा यथेप्सिताः। प्रेत्य स्वर्गं च लभते नरो नास्त्यत्र संशयः।। | 13-252-46a 13-252-46b |
न्याय्यं श्रेयोभिकामेन प्रतिपत्तुं जनार्दनः। एष एवाक्षयो विप्रैः स्तुतो राजञ्जनार्दनः।। | 13-252-47a 13-252-47b |
महेश्वरमुखोत्सृष्टा ये च धर्मगुणाः स्मृताः। ते त्वया मनसा धार्याः कुरुराज दिवानिशम्।। | 13-252-48a 13-252-48b |
एवं ते वर्तमानस्य सम्यग्दण्डधरस्य च। प्रजापालनदक्षस्य स्वर्गलोको भविष्यति।। | 13-252-49a 13-252-49b |
धर्मोणापि सदा राजन्प्रजा रक्षितुमर्हसि। यस्तस्य विपुलो दण्डः सम्यग्धर्मः स कीर्त्यते।। | 13-252-50a 13-252-50b |
य एष कथितो राजन्मया सज्जनसन्निधौ। शङ्करस्योमया सार्धं संवादो धर्मसंहितः।। | 13-252-51a 13-252-51b |
श्रुत्वा वा श्रोतुकामो वाऽप्यर्चयेद्वृषभध्वजम्। विशुद्धेनेह भावेन य इच्छेद्भूतिमात्मनः।। | 13-252-52a 13-252-52b |
एष तस्यानवद्यस्य नारदस्य महात्मनः। संदेशो देवपूजार्थं तं तथा कुरु पाण्डव।। | 13-252-53a 13-252-53b |
एतदत्यद्भुतं वृत्तं पुण्ये हि भवति प्रभो। वासुदेवस्य कौन्तेय स्थाणोश्चैव स्वभावजम्।। | 13-252-54a 13-252-54b |
दशवर्शसहस्राणि बदर्यामेष शाश्वतः। तपश्चचार विपुलं सह गाण्डीवधन्वना।। | 13-252-55a 13-252-55b |
त्रियुगौ पुण्डरीकाक्षौ वासुदेवधनंजयौ। विदितौ नारदादेतौ मम व्यासाच्च पार्थिव।। | 13-252-56a 13-252-56b |
बाल एव महाबाहुश्चकार कदनं महत्। कंसस्य पुण्डरीकाक्षो ज्ञातित्रामार्थकारणात्।। | 13-252-57a 13-252-57b |
कर्मणामस्य कौन्तेय नान्तं सङ्ख्यातुमुत्सहे। शाश्वतस्य पुराणस्य पुरुषस्य युधिष्ठिर।। | 13-252-58a 13-252-58b |
ध्रुवं श्रेयः परं तात भविष्यति तवोत्तमम्। यस्य ते पुरुषव्याघ्रः सखा चायं जनार्दनः।। | 13-252-59a 13-252-59b |
दुर्योधनं तु शोचामि प्रेत्य लोकेऽपि दुर्मतिम्। यत्कृते पृथिवी सर्वा विनष्टा सहयद्विपा।। | 13-252-60a 13-252-60b |
दुर्योधनापराधेन कर्णस्य शकुनेस्तथा। दुःशासनवतुर्थानां कुरवो निधनं गताः।। | 13-252-61a 13-252-61b |
वैशम्पायन उवाच। | 13-252-62x |
एवं सम्भाषमाणे तु गाङ्गेये पुरुषर्षभे। तूष्णीं बभूव कौरव्यो मध्ये तेषां महात्मनाम्।। | 13-252-62a 13-252-62b |
तच्छ्रुत्वा विस्मयं जग्मुर्धृतराष्ट्रादयो नृपाः। सम्पूज्य मनसा कृष्णं सर्वे प्राञ्जलयऽभवन्।। | 13-252-63a 13-252-63b |
ऋषयश्चापि ते सर्वे नारदप्रमुखास्तदा। प्रतिगृह्याभ्यनन्दन्त तद्वाक्यं प्रतिपूज्य च।। | 13-252-64a 13-252-64b |
इत्येतदखिलं सर्वैः पाण्डवो भ्रातृभिः सह। श्रुतवान्सुमहाश्चर्यं पुण्यं भीष्मानुशासनम्।। | 13-252-65a 13-252-65b |
वैशम्पायन उवाच। | 13-252-66x |
युधिष्ठिरस्तु गाङ्गेयं विश्रान्तं भूरिदक्षिणम्। पुनरेव महाबुद्धिः पर्यपृच्छन्महीपतिः।। | 13-252-66a 13-252-66b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि द्विपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 252 ।। |
अनुशासनपर्व-251 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-253 |