महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-018
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति श्रीकृष्णमहिमप्रतिपादकव्यासमद्रराजसंवादानुवादः।। 1 ।।
`द्वैपायन उवाच। | 13-18-1x |
सर्वे वेदाः सर्ववेद्याः सशास्त्राः सर्वे यज्ञाः सर्व इत्यश्च कृष्णः। विदुः कृष्णं ब्राह्मणास्तत्वतो ये तेषां राजन्सर्वयज्ञः समाप्तः।। | 13-18-1a 13-18-1b 13-18-1c 13-18-1d |
ज्ञेयो योगी ब्राह्मणैर्वेदतत्वै- रारण्यकैः सैष कृष्णः प्रभुत्वात्। सर्वान्यज्ञान्ब्राह्मणान्ब्रह्म चैव व्याप्यातिष्ठद्देवदेवस्त्रिलोके।। | 13-18-2a 13-18-2b 13-18-2c 13-18-2d |
स एष देवः शक्रमीशं यजानं प्रीत्या प्राह क्रतुयष्टारमग्र्यम् न मा शक्रो वेदवेदार्थतत्वा- द्भक्तो भक्त्या शुद्धभावप्रधानः।। | 13-18-3a 13-18-3b 13-18-3c 13-18-3d |
मा जानन्ते ब्रह्मशीर्षं वरिष्ठं विश्वे विश्वं ब्रह्मयोनिं ह्ययोनिम्। सर्वत्राहं शाश्वतः शाश्वतेशः कृत्स्नो वेदोऽग्निर्निर्गुणोऽनन्ततेजाः।। | 13-18-4a 13-18-4b 13-18-4c 13-18-4d |
सर्वे देवा वासुदेवं यजन्ते ततो बुद्ध्या मार्गमाणास्तनूनाम्। सर्वान्कामान्प्राप्नुवन्ते विशालां- स्त्रैलोक्येऽस्मिन्कृष्णनामाभिधानात्।। | 13-18-5a 13-18-5b 13-18-5c 13-18-5d |
कृष्णो यज्ञैरिज्यते यायजूकैः कृष्णो वीर्यैरिज्यते विक्रमद्भिः। कृष्णो वाक्यैरिज्यते सम्मृशानैः कृष्णो मुक्तैरिज्यते वीतमोहैः।। | 13-18-6a 13-18-6b 13-18-6c 13-18-6d |
विद्यावन्तः सोमपा ये विपापा इष्ट्वा यज्ञेर्गोचरं प्रार्थयन्ते। | 13-18-7a 13-18-7b |
भवगानुवाच। | 13-18-7x |
सर्वं क्रान्तं देवलोकं विशाल- मन्ते गत्वा मुक्तिलोकं भजन्ति।। | 13-18-7c 13-18-7d |
एवं सर्वे त्वाश्रमाः सुव्रता ये मां जानन्तो यान्ति लोकानदीनान्। ये ध्यानदीक्षामुद्वहन्तो विपापा ज्योतिर्भूत्वा देवलोकं भजन्ति।। | 13-18-8a 13-18-8b 13-18-8c 13-18-8c |
पूज्यन्ते मां पूजयन्तः प्रहृष्टा मां जानन्तः श्रद्धया वासुदेवम्। भक्त्या तुष्टोऽहं तस्य सत्त्वं प्रयच्छे सत्वस्पृष्टो वीतमोहोऽयमेति।। | 13-18-9a 13-18-9b 13-18-9c 13-18-9d |
द्वैपायन उवाच। | 13-18-10x |
ज्योतींषि शुक्तानि च यानि लोके त्रयो लोका लोकपालास्त्रयश्च। त्रयोऽग्नयश्चाहुतयश्च पञ्च सर्वे देवा देवकीपुत्र एव।। | 13-18-10a 13-18-10b 13-18-10c 13-18-10d |
भीष्म उवाच। | 13-18-11x |
व्यासस्यैतद्वचः श्रुत्वा मद्रराजः सहर्षिभिः। व्यासं कृष्णं च विधिवत्प्रीतात्मा प्रत्यपूजयत्।। | 13-18-11a 13-18-11b |
वैशम्पायन उवाच। | 13-18-12x |
कविः प्रयातस्तु महर्षिपुत्रो द्वैपायनस्तद्वचनं निशम्य। जगाम पृथ्वीं शिरसा महात्मा नमश्च कृष्णाय चकार भीष्मः।।' | 13-18-12a 13-18-12b 13-18-12c 13-18-12d |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणी दानधर्मपर्वणि अष्टादशोऽध्यायः।। 18 ।। |
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