महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-070
← अनुशासनपर्व-069 | महाभारतम् त्रतयोदशपर्व महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-070 वेदव्यासः |
अनुशासनपर्व-071 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरम्प्रति ब्राह्मणमाहात्म्यकथनम्।। 1 ।।
भीष्म उवाच। | 13-70-1x |
जन्मनैव महाभागो ब्राह्मणो नाम जायते। नमस्यः सर्वभूतानामतिथिः प्रश्रिताग्रभुक्।। | 13-70-1a 13-70-1b |
सर्वेषां सुहृदस्तात ब्राह्मणाः सुमनोमुकाः। `सर्वानेते हनिष्यन्ति ब्राह्मणा जातमन्यवः।' गीर्भिर्मङ्गलयुक्ताभिरनुध्यायन्ति पूजिताः।। | 13-70-2a 13-70-2b 13-70-2c |
सर्वान्नो द्विषतस्तात ब्राह्मणा जातमन्यवः। गीर्भिर्दारुणयुक्ताभिर्हन्युश्चैते ह्यपूजिताः।। | 13-70-3a 13-70-3b |
अत्र गाथाः पुरा गीताः कीर्तयन्ति पुराविदः। सृष्ट्वा द्विजातीन्धाता हि यथापूर्वं समादधत्।। | 13-70-4a 13-70-4b |
न वोऽन्यदिह कर्तव्यं किञ्चिदूर्ध्वायनं विधि। गुप्तो गोपायते ब्रह्मा श्रेयो वस्तेन शोभनम्।। | 13-70-5a 13-70-5b |
स्वमेव कुर्वतां कर्म श्रीर्वो ब्राह्मी भविष्यति। प्रमाणं सर्वभूतानां प्रग्रहाश्च भविष्यथ।। | 13-70-6a 13-70-6b |
न शौद्रं कर्म कर्तव्यं ब्राह्मणेन विपश्चिता। शौद्रं हि कुर्वतः कर्म ब्राह्मी श्रीरुपरुध्यते।। | 13-70-7a 13-70-7b |
श्रीश्च बुद्धिश्च तेजश्च विभूतिश्च प्रतापिनी। स्वाध्यायेनैव महात्म्यं विपुलं प्रतिपत्स्यथ।। | 13-70-8a 13-70-8b |
हुत्वा चाहवनीयस्थं महाभाग्ये प्रतिष्ठिताः। अग्रभोज्याः प्रसूतीनां श्रिया ब्राह्मयाऽनुकल्पिताः | 13-70-9a 13-70-9b |
श्रद्धया परया युक्ता ह्यनभिद्रोहलब्धया। दमस्वाध्यायनिरताः सर्वान्कामानवाप्स्यथ।। | 13-70-10a 13-70-10b |
यच्चैव मानुषे लोके यच्च देवेषु किञ्चन। सर्वं वस्तपसा साध्यं ज्ञानेन नियमेन च।। | 13-70-11a 13-70-11b |
`युष्मत्संमाननां प्रीतिं पावनैः क्षत्रिया भृशम्।' अमुत्रेह समायान्ति वैश्यशूद्राधिकास्तथा।। | 13-70-12a 13-70-12b |
अरक्षिताश्च युष्माभिर्विरुद्धा यान्ति विप्रवम्। युष्मत्तेजोधृता लोकास्तद्रक्ष्यथ जगत्त्रयम्।।' | 13-70-13a 13-70-13b |
इत्येवं ब्रह्मगीतास्ते समाख्याता मयाऽनघ। विप्रानुकम्पार्थमिदं तेन प्रोक्तं हि धीमता।। | 13-70-14a 13-70-14b |
भूयस्तेषां बलं मन्ये यथा राज्ञस्तपस्विनः। दुरासदाश्च चण्डाश्च तपसा क्षिप्रकारिणः।। | 13-70-15a 13-70-15b |
सन्त्येषां सिम्हसत्वाश्च व्याघ्रसत्वास्तथाऽपरे। वराहमृगसत्वाश्च गजसत्वास्तथाऽपरे।। | 13-70-16a 13-70-16b |
सर्पस्पर्शसमाः केचित्तथाऽन्ये मकरस्पृशः। विभाष्य घातिनः केचित्तथा चक्षुर्हणोऽपरे।। | 13-70-17a 13-70-17b |
सन्ति चाशीविषसमाः सन्ति मन्दास्तथाऽपरे। विविधानीह वृत्तानि ब्राह्मणानां युधिष्ठिर।। | 13-70-18a 13-70-18b |
मेकला द्राविडा लाटाः पौण्ड्राः कान्वशिरास्तथा। शौण्डिका दरदा दार्वाश्चोराः शबरबर्बराः।। | 13-70-19a 13-70-19b |
किराता यवनाश्चैव तास्ताः क्षत्रियजातयः। वृषत्वमनुप्राप्ता ब्राह्मणानामदर्शनात्।। | 13-70-20a 13-70-20b |
ब्राह्मणानां परिभवादसुराः सलिलेशयाः। ब्राह्मणानां प्रसादाच्च देवाः स्वर्गनिवासिनः।। | 13-70-21a 13-70-21b |
अशक्यं स्प्रष्टुमाकाशमचाल्यो हिमवान्गिरिः। अवार्या सेतुना गङ्गा दुर्जया ब्राह्ममा भुवि।। | 13-70-22a 13-70-22b |
न ब्राह्मणविरोधेन शक्या शास्तुं वसुन्धरा। ब्राह्मणा हि महात्मानो देवानामपि देवताः।। | 13-70-23a 13-70-23b |
तान्पूजयस्व सततं दानेन परिचर्यया। यदीच्छसि महीं भोक्तमिमां सागरमेखलाम्।। | 13-70-24a 13-70-24b |
प्रतिग्रहेण तेजो हि विप्राणा शाम्यतेऽनघ। प्रतिग्रहं ये नेच्छेयुस्तेऽपि रक्ष्यास्त्वया नृप।। | 13-70-25a 13-70-25b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि सप्ततितमोऽध्यायः।। 70 ।। |
13-70-1 जन्मनैव संस्काराद्यभावेऽपि ब्राह्मणो नमस्य एव। प्रश्रितं पक्वमन्नं तत्स्वाग्रे भोक्तुमर्हः प्रश्रिताग्रभुक्।। 13-70-2 सुमनसां देवानां मुखमिव भूताः सुमनोमुखाः।। 13-70-3 नोऽस्माकं द्विषतः शत्रून्। तैरपूजिता ब्राह्मणा हन्युरिति सम्बन्धः।। 13-70-4 समादधत् समाधिं नियमं कृतवान्।। 13-70-5 ब्रह्मा ब्राह्मणः। वः शोभनं श्रेयस्तेनैव।। 13-70-6 प्रग्रहाः दमनक्षभा रज्ज्व इव।। 13-70-7 शौद्रं कर्म सेवा।। 13-70-8 श्रीश्चेत्यादेः श्रियमित्यादिरर्थः।। 13-70-9 आहृवनीयस्थं देवतागणं प्रसूतीनां शिशुभ्योऽप्यग्रे भोज्यं येषां ते। ब्राह्म्या श्रिया विद्ययाऽनुकल्पिताः पात्रीभूताः।। 13-70-15 चण्डत्वादिदोषवन्तोपि पूज्या एवेत्यर्थः।। 13-70-17 कार्पासमृदवः केचिदिति थ. पाठः।। 13-70-20 अदर्शनात् अननुग्रहात्।।
अनुशासनपर्व-069 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-071 |