महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-199
← अनुशासनपर्व-198 | महाभारतम् त्रतयोदशपर्व महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-199 वेदव्यासः |
अनुशासनपर्व-200 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति अप्रतिग्राह्यप्रतिग्रहे अभोज्यभोजने च प्रायश्चित्तकथनम्।। 1 ।।
[युधिष्ठिर उवाच। | 13-199-1x |
उक्तास्तु भवता भोज्यास्तथाऽभोज्याश्च सर्वशः। अत्र मे प्रश्नसन्देहस्तन्मे वद पितामह।। | 13-199-1a 13-199-1b |
ब्राह्मणानां विशेषेण हव्यकव्यप्रतिग्रहे। नानाविधेषु भोज्येषु प्रायश्चित्तानि शंस मे।। | 13-199-2a 13-199-2b |
भीष्म उवाच। | 13-199-3x |
हन्त वक्ष्यामि ते राजन्ब्राह्मणानां महात्मनाम्। प्रतिग्रहेषु भोज्ये च मुच्यते येन पाप्मनः।। | 13-199-3a 13-199-3b |
घृतप्रतिग्रहे चैव सावित्री समिदाहुतिः। तिलप्रतिग्रहे चैव सममेतद्युधिष्ठिर।। | 13-199-4a 13-199-4b |
मांसप्रतिग्रहे चैव मधुनो लवणस्य च। आदित्योदयनं स्थित्वा पूतो भवति ब्राह्मणः।। | 13-199-5a 13-199-5b |
काञ्चनं प्रतिगृह्याथ जपमानो गुरुश्रुतिम्। कृष्णायसं च विवृतं धारयन्मुच्यते द्विजः।। | 13-199-6a 13-199-6b |
एवं प्रतिगृहीतेऽथ धने वस्त्रे तथा स्त्रियाम्। एवमेव नरश्रेष्ठ सुवर्णस्य प्रतिग्रहे। | 13-199-7a 13-199-7b |
अन्नप्रतिग्रहे चैव पायसेक्षुरसे तथा। इक्षुतैलपवित्राणां त्रिसन्ध्येऽप्सु निमज्जनम्।। | 13-199-8a 13-199-8b |
व्रीहौ पुष्पे फले चैव जले पिष्टमये तथा। यावके दधिदुग्धे च सावित्रीं शतशोऽन्विताम्।। | 13-199-9a 13-199-9b |
उपानहौ च च्छत्रं च प्रतिगृह्यौर्ध्वदेहिके। जपेच्छतं समायुक्तस्तेन मुच्यते पाप्मना।। | 13-199-10a 13-199-10b |
क्षेत्रप्रतिग्रहे चैव ग्रहसूतकयोस्तथा। त्रीणि रात्राण्युपोषित्वा तेन पापाद्विमुच्यते।। | 13-199-11a 13-199-11b |
कृष्णपक्षे तु यः श्राद्धं पितॄणामश्नुते द्विजः। अन्नमेतदहोरात्रात्पूतो भवति ब्राह्मणः।। | 13-199-12a 13-199-12b |
न च सन्ध्यामुपासीत न च जाप्यं प्रवर्तयेत्। न सङ्किरेत्तदन्नं च ततः पूयेत ब्राह्मणः।। | 13-199-13a 13-199-13b |
इत्यर्थमपराङ्णे तु पितॄणां श्राद्धमुच्यते। यथोक्तानां यदश्नीयुर्ब्राह्मणाः पूर्वकेतिताः।। | 13-199-14a 13-199-14b |
मृतकस्य तृतीयाहे ब्राह्मणो योऽन्नमश्नुते। स त्रिवेलं समुन्मज्ज्य द्वादशाहेन शुध्यति।। | 13-199-15a 13-199-15b |
द्वादशाहे व्यतीते तु कृतशौचो विशेषतः। ब्राह्मणेभ्यो हविर्दत्त्वा मुच्यते तेन पाप्मना।। | 13-199-16a 13-199-16b |
मृतस्य दशरात्रेण प्रायश्चित्तानि दापयेत्। सावित्रीं रैवतीमिष्टिं कूश्माण्डमघमर्षणम्।। | 13-199-17a 13-199-17b |
मृतकस्य त्रिरात्रे यः समुद्दिष्टे समश्नुते। सप्तत्रिषवणं स्नात्वा पूतो भवति ब्राह्मणः।। | 13-199-18a 13-199-18b |
सिद्धिमाप्नोति विपुलामापदं चैव नाप्नुयात्।। | 13-199-19a |
यस्तु शूद्रैः समश्नीयाद्ब्राह्मणोऽप्येकभोजने। अशौचं विधिवत्तस्य शौचमत्र विधीयते।। | 13-199-20a 13-199-20b |
यस्तु वैश्यैः सहाश्नीयाद्ब्राह्मणोऽप्येकभोजने। स वै त्रिरात्रं दीक्षित्वा मुच्यते तेन कर्मणा।। | 13-199-21a 13-199-21b |
क्षत्रियैः सह योऽश्नीयाद्ब्राह्मणोऽप्येकभोजने। आप्लुतः सह वासोभिस्तेन मुच्येत पाप्मना।। | 13-199-22a 13-199-22b |
शूद्रास्य तु कुलं हन्ति वैश्यस्य पशुबान्धवान्। क्षत्रियस्य श्रियं हन्ति ब्राह्मणस्य सुवर्चसम्।। | 13-199-23a 13-199-23b |
प्रायश्चित्तं च शान्तिं च जुहुयात्तेन मुच्यते। सावित्रीं रैवतीमिष्टिं कूश्माण्डमघमर्षणम्। | 13-199-24a 13-199-24b |
तथोच्छिष्टमथान्योन्यं सम्प्राशेन्नात्र संशयः। रोचना विरजा रात्रिर्मङ्गलालम्भनानि च।। | 13-199-25a 13-199-25b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि एकोनद्विशततमोध्यायः।। 199 ।। |
13-199-5 आदित्योदयनं तत्पर्यन्तं स्थित्वा।। 13-199-6 विवृतं लोकप्रत्यक्षं धारयन्।। 13-199-11 ग्रहसूतकयोः कारागारस्ताशौचवतोः।। 13-199-13 नच संध्यामुपासीतेत्यत्र अस्नात इति शेषः। न सङ्किरेदिति पुनर्भोजन न कुर्यादित्यर्थः।। 13-199-14 अश्नीयुरित्यर्थमिति सम्बन्धे अपराह्णे क्षुद्बोधात्सम्यगन्नमश्नन्त्वित्यर्थः। केतिताः निमन्त्रिताः।। 13-199-16 हविरन्नम्। 13-199-17 सावित्रीं जपन्। रैवतीं रैवतं साम। इष्टिं पवित्रेष्टिम्। कूश्माण्डं यद्देवादेवहेडनमित्यनुवाकपञ्चकम्। अघमर्षणं जले निमज्ज्य दश प्रणवसंयुक्तगायत्र्याः ऋतंचेति तृचस्य वा त्रिर्जपः।। 13-199-20 अशौचं प्रायश्चित्ताभाव एव।। 13-199-25 विरजा दूर्वा रात्रिर्हरिद्रेति विश्वः।।
अनुशासनपर्व-198 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-200 |