महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-195
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रेणुकनामकेन करेणुना देवादीन्प्रति दिग्गजगदितधर्मनिवेदनम्।। 1 ।।
[भीष्म उवाच। | 13-195-1x |
ततः पद्मप्रतीकाशः पद्मोद्भूतः पितामहः। उवाच वचनं देवान्वासवं च शचीपतिम्।। | 13-195-1a 13-195-1b |
अयं महाबलो नागो रसातलचरो बली। तेजस्वी रेणुको नाम महासत्वपराक्रमः।। | 13-195-2a 13-195-2b |
अतितेजस्विनः सर्वे महावीर्या महागजाः। धारयन्ति महीं कृत्स्नां सशैलवनकाननाम्।। | 13-195-3a 13-195-3b |
भवद्भिः समनुज्ञातो रेणुकस्तान्महागजान्। धर्मगुह्यानि सर्वाणि गत्वा पृच्छतु तत्र वै।। | 13-195-4a 13-195-4b |
पितामहवचःक श्रुत्वा ते देवा रेणुकं तदा। प्रेषयामासुरव्यग्रा यत्र ते धरणीधराः।। | 13-195-5a 13-195-5b |
रेणुक उवाच। | 13-195-6x |
अनुज्ञातोऽस्मि देवैश्च पितृभिस्चक महाबलाः। धर्मगुह्यानि युष्माकं श्रोतुमिच्छामि तत्त्वतः। कथयध्वं महाभागा यद्वस्तत्त्वं मनीषितम्।। | 13-195-6a 13-195-6b 13-195-6c |
दिग्गजा ऊचुः। | 13-195-7x |
कार्तिके मासि चाश्लेषा बहुलस्याष्टमी शिवा। तेन नक्षत्रयोगेन यो ददाति गुडौदनम्। इमं मन्त्रं जपच्छ्राद्धे यताहारो ह्यकोपनः।। | 13-195-7a 13-195-7b 13-195-7c |
बलदेवप्रभृतयो ये नागा बलवत्तराः। अनन्ता ह्यक्षया नित्यं भोगिनः सुमहाबलाः।। | 13-195-8a 13-195-8b |
तेषां कुलोद्भवा ये च महाभूता भुजङ्गमाः। ते मे बलिं प्रयच्छन्तु बलतेजोभिवृद्धये।। | 13-195-9a 13-195-9b |
यदा नारायणः श्रीमानुज्जहार वसुन्धराम्। तद्बलं तस्य देवस्य धरामुद्धरतस्तथा।। | 13-195-10a 13-195-10b |
एवमुक्त्वा बलिं तत्र वल्मीके तु निवेदयेत्।। | 13-195-11a |
गजेन्द्रकुसुमाकीर्णं नीलवस्त्रानुलेपनम्। निर्वपेत्तं तु वल्मीके अस्तं याते दिवाकरे।। | 13-195-12a 13-195-12b |
एवं तुष्टास्ततः सर्वे अधस्ताद्भारपीडिताः। श्रमं तं नावबुध्यामो धारयन्तो वसुन्धराम्।। | 13-195-13a 13-195-13b |
एवं मन्यामहे सर्वे भारार्ता निरपेक्षिणः। ब्राह्मणः क्षत्रियो वैश्यः शूद्रो वा यद्युपोषितः।। | 13-195-14a 13-195-14b |
एवं संवत्सरं कृत्वा दानं बहुफलं लभेत्। वल्मीके बलिमादाय तन्नो बहुफलं मतम्।। | 13-195-15a 13-195-15b |
ये च नागा महावीर्यास्त्रिषु लोकेषु कृत्स्नशः। कृतातिथ्या भवेयुस्ते शतं वर्षाणि तत्त्वतः।। | 13-195-16a 13-195-16b |
दिग्गजानां च तच्छ्रुत्वा देवताः पितरस्तथा। ऋषयश्च महाभागाः पूजयन्ति स्म रेणुकम्।।] | 13-195-17a 13-195-17b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि पञ्चनवत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 195 ।। |
13-195-2 नागो गजः।।
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