महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-124
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भीष्मेण युधिष्ठिरम्प्रति गोमाहात्म्यप्रतिपादकव्यासशुकसंवादानुवादः।। 1 ।।
`युधिष्ठिर उवाच। | 13-124-1x |
पवित्राणां पवित्रं यच्छ्रेष्ठं लोकेषु पूजितम्। महाव्रतं महाभाग तन्मे ब्रूहि पितामह।। | 13-124-1a 13-124-1b |
भीष्म उवाच। | 13-124-2x |
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्। पितुः पुत्रस्य संवादं व्यासस्य च शुकस्य च।। | 13-124-2a 13-124-2b |
ऋषीणामुत्तमं कृष्णं भावितात्मानमच्युतम्। पारम्पर्यविशेषज्ञं सर्वशास्त्रार्थकोविदम्।। | 13-124-3a 13-124-3b |
कृतशौचः शुकस्तत्र कृतजप्यः कृताह्निकः। परं नियममास्थाय परं धर्ममुपाश्रितः।। | 13-124-4a 13-124-4b |
प्रणम्य शिरसा व्यासं सूक्ष्मतत्वार्थदर्शिनम्। शुकः पप्रच्छ वै प्रश्नं दानधर्मकुतूहलः।। | 13-124-5a 13-124-5b |
बहुचित्राणि दानानि बहुशः शंससे मुने। महार्थं पावनं पुण्यं किंस्विद्दानं महाफलम्।। | 13-124-6a 13-124-6b |
केन दुर्गाणि तरति केन लोकानवाप्नुते। केन वा महदाप्नोति इह लोके परत्र च।। | 13-124-7a 13-124-7b |
के वा यज्ञस्य वोढारः केषु यज्ञः प्रतिष्ठितः। किञ्च यज्ञस्य यज्ञत्वं किञ्च यज्ञस्य भेषजम्। यज्ञानामुत्तमं किञ्च तद्भवान्प्रब्रवीतु मे।। | 13-124-8a 13-124-8b 13-124-8c |
स तस्मै भजमानाय जातकौतूहलाय च। व्यासो व्रतनिधिः प्राह गवामिदमनुत्तमम्।। | 13-124-9a 13-124-9b |
धन्यं यशस्यमायुष्यं लोके श्रुतिसुखावहम्। यत्पवित्रं पवित्राणां मङ्गलानां च मङ्गलम्।। | 13-124-10a 13-124-10b |
सर्वपापप्रशमनं तत्समासेन मे शृणु। यदिदं तिष्ठते लोके जगत्स्थावरजङ्गमम्। गावस्तत्प्राप्य तिष्ठन्ति गोलोके पुण्यदर्शनाः।। | 13-124-11a 13-124-11b 13-124-11c |
मातरः सर्वभूतानां विश्वस्य जगतश्च ह। रुद्राणामिह साध्यानां गाव एव तु मातरः।। | 13-124-12a 13-124-12b |
रुद्राणां मातरो ह्येता ह्यादित्यानां स्वसा स्मृताः। वसूनां च दुहित्रस्ता ब्रह्मसन्तानमूलजाः।। | 13-124-13a 13-124-13b |
यासामधिपतिः पूषा मरुतो वालबन्धनाः। ऐश्वर्यं वरुणो राजा विश्वेदेवाः समाश्रिताः।। | 13-124-14a 13-124-14b |
य एवं वेद ता गावो मातरो देवपूजिताः। स विप्रो ब्रह्मलोकाय गवां लोकाय वा ध्रुवः।। | 13-124-15a 13-124-15b |
गावस्तु नावमन्येत कर्मणा मनसा गिरा। गवां स्थानं परं लोके प्रार्थयेद्यः परां गतिम्।। | 13-124-16a 13-124-16b |
न पद्भ्यां ताडयेद्गा वै न दण्डेन न मुष्टिना। इमां विद्यामुपाश्रित्य पावनीं ब्रह्मनिर्मिताम्।। | 13-124-17a 13-124-17b |
मातॄणामन्ववाये च न गोमध्ये न गोव्रजे। नरो मूत्रपुरीषस्य दृष्ट्वा कुर्याद्विसर्जनम्।। | 13-124-18a 13-124-18b |
शुद्धाश्चन्दनशीताङ्ग्यश्चन्द्ररश्मिसमप्रभाः। सौम्याः सुरभ्यः सुभगा गावो गुग्गुलुगन्धयः।। | 13-124-19a 13-124-19b |
सर्वे देवाऽविशन्गा वै समुद्रमिव सिन्धवः। दिवं चैवान्तरिक्षं च गवां व्युष्टिं समश्नुते।। | 13-124-20a 13-124-20b |
दधिना जुहुयादग्निं दधिना स्वस्ति वाचयेत्। दधि दद्याच्च प्राशेत गवां व्युष्टिं समश्नुते।। | 13-124-21a 13-124-21b |
घृतेन जुहुयादग्निं घृतेन स्वस्ति वाचयेत्। घृतमालभ्य प्राश्नीयाद्गवां व्युष्टिं समश्नुते।। | 13-124-22a 13-124-22b |
गावः संजीवना यास्तु गावो दानमनुत्तमम्। ताः पुण्यगोपाः सुफला भजमानं भजन्तु माम्।। | 13-124-23a 13-124-23b |
येन देवाः पवित्रेण स्वर्गलोकमितो गताः। तत्पवित्रं पवित्राणां मम मूर्ध्नि प्रतिष्ठितम्।। | 13-124-24a 13-124-24b |
वीणामृदङ्गपणवा गवां गात्रं प्रतिष्ठिताः। क्रीडारतिविहारार्थे त्रिषु लोकेषु वर्तते।। | 13-124-25a 13-124-25b |
न तत्र देवा वर्तन्ते नाग्निहोत्राणि जुह्वति। न यज्ञैरिज्यते चात्र यत्र गौर्वै न दृश्यते।। | 13-124-26a 13-124-26b |
क्षीरं दधि घृथं यासां रसानामुत्तमो रसः। अमृतप्रभवा गावस्त्रैलोक्यं येन जीवति।। | 13-124-27a 13-124-27b |
इमामाहूय धेनुं च सवत्सां यज्ञमातरम्। उपाह्वयन्ति यां विप्रा गावो यज्ञहविष्कृतम्।। | 13-124-28a 13-124-28b |
या मेध्या प्रथमं कर्म इयं धेनुः सरस्वती। पौर्णमासेन वत्सेन कामं कामगुणान्विता।। | 13-124-29a 13-124-29b |
यत्र सर्वमिदं प्रोतं यत्किंचिज्जङ्गमं जगत्। स गौर्वै प्रथमा पुण्या सर्वभूतहिते रता।। | 13-124-30a 13-124-30b |
धारणाः पावनाः पुण्या भावना भूतभावनाः। गावो मामभिरक्षन्तु इह लोके परत्र च।। | 13-124-31a 13-124-31b |
एष यज्ञः सहोपाङ्ग एष यज्ञः सनातनः। वेदाः सहोपनिषदो गवां रूपाः प्रतिष्ठिताः।। | 13-124-32a 13-124-32b |
एतत्तात मया प्रोक्तं गवामिह परं मतम्। सर्वतः श्रावयेन्नित्यं प्रयतो ब्रह्मसंसदि।। | 13-124-33a 13-124-33b |
श्रुत्वा लभेत ताँल्लोकान्ये मया परिकीर्तिताः। श्रावयित्वापि प्रीतात्मा लोकांस्तान्प्रतिपद्यते | 13-124-34a 13-124-34b |
धेनुमेकां समादद्यादहन्यहनि पावनीम्। तत्तथा प्राप्नुयाद्विप्रः पठन्वै गोमतीं सदा।। | 13-124-35a 13-124-35b |
अथ धेनुर्न विद्यते तिलधेनुमनुत्तमाम्। दद्याद्गोमतिकल्पेन तां धेनुं सर्वपावनीम्।। | 13-124-36a 13-124-36b |
आह्निकं गोमतीं नित्यं यः पठेत सदा नरः। सर्वपापात्प्रमुच्येत प्रयतात्मा य आचरेत्।। | 13-124-37a 13-124-37b |
घृतं वा नित्यमालभ्य प्राश्य वा गोमतीं जपेत्। स्नात्वा वा गोकरीषेण पठन्पापात्प्रमुच्यते।। | 13-124-38a 13-124-38b |
मनसा गोमतीं जप्येद्गोमत्या नित्यमाह्निकम्। न त्वेन दिवसं कुर्याद्व्यर्थं गोमत्यपाठकः।। | 13-124-39a 13-124-39b |
गोमतीं जपमाना हि देवा देवत्वमाप्नुवन्। ऋषित्वमृषयश्चापि गोमत्या सर्वमाप्नुवन्।। | 13-124-40a 13-124-40b |
बद्धो बन्धात्प्रमुच्येत कृच्छ्रान्मुच्येत सङ्कटात्। गोमतीं सेवते यस्तु लभते प्रियसङ्गमम्।। | 13-124-41a 13-124-41b |
एतत्पवित्रं कार्त्स्न्येन एतद्व्रतमनुत्तमम्। एतत्तु पृथिवीपाल पावनं शृण्वतां सदा।। | 13-124-42a 13-124-42b |
पुत्रकामाश्च ये केचिद्धनकामाश्च मानवाः। अद्धाने चोरवैरिभ्यो मुच्यते गोमतीं पठन्।। | 13-124-43a 13-124-43b |
पूर्ववैरानुबन्धेषु रणए चाप्याततायिनः। लभेत जयमेवाशु सदा गोमतिपाठकः।। | 13-124-44a 13-124-44b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि चतुर्विंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 124 ।। |
13-124-1 देवव्रत महाभागेति क.पाठः।। 13-124-18 मातॄणामनुपाते चेति थ.पाठ.।। 13-124-26 यत्र गौर्वै न दुह्यते इति थ.पाठ।।
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