महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-241
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महेश्वरेण पार्वतींप्रति प्राणिनां शुभाशुभत्वनिश्चायकलिङ्गकथनम्।। 1 ।।
उमोवाच। | 13-241-1x |
मानुषेष्वेव जीवत्सु गतिर्विज्ञायते न वा। यथा शुभगतिर्जीवो नासौ त्वशुभभागिति।। | 13-241-1a 13-241-1b |
एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं तन्मे शंसितुमर्हसि।। | 13-241-2a |
महेश्वर उवाच। | 13-241-3x |
तदहं ते प्रवक्ष्यामि जीवितं विद्यते यथा। द्विविधाः प्राणिनो लोके दैवमासुरमाश्रिताः।। | 13-241-3a 13-241-3b |
मनसा कर्मणा वाचा प्रतिकला भवन्ति ये। तादृशानासुरान्विद्धि मर्त्यास्ते नरकालयाः।। | 13-241-4a 13-241-4b |
हिंस्राश्चोराश्च धूर्ताश्च परदाराभिमर्शकाः। नीचकर्मरता ये च शौचमङ्गलवर्जिताः।। | 13-241-5a 13-241-5b |
शुचिविद्वेषिणः पापा लोकचारित्रदूषकाः। एवं युक्तसमाचारा जीवन्तो नरकालयाः।। | 13-241-6a 13-241-6b |
लोकोद्वेगकराश्चान्ये पशवश्च सरीसृपाः। वृक्षाः कण्टकिनो रूक्षास्तादृशान्विद्धि चासुरान्।। | 13-241-7a 13-241-7b |
अपरान्देवपक्षांस्तु शृणु देवि समाहिता।। | 13-241-8a |
मनोवाक्कर्मभिर्नित्यमनुकूला भवन्ति ये। तादृशानमरान्विद्धि ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-241-9a 13-241-9b |
शौचार्जवपरा धीराः परार्थं नाहरन्ति ये। ये समाः सर्वभूतेषु ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-241-10a 13-241-10b |
भयाद्वा वृत्तिहेतोर्वा अनृतं न वदन्ति ये। सत्यं वदन्ति सततं ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-241-11a 13-241-11b |
धार्मिकाः शौचसम्पन्नाः शुक्ला मधुरवादिनः। नाकार्यं मनसेच्छन्ति ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-241-12a 13-241-12b |
स्वदुःखमिव मन्यन्ते परेषां दुःखवेदनम्। दरिद्रा अपि ये केचिद्याचिताः प्रीतिपूर्वकम्। ददत्येव च यत्किञ्चित्ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-241-13a 13-241-13b 13-241-13c |
आस्तिका मङ्गलपराः सततं वृद्धसेविनः। पुण्यकर्मपरा नित्यं ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-241-14a 13-241-14b |
व्रतिनो दानशीलाश्च धर्मशीलाश्च मानवाः।। ऋजवो मृदवो नित्यं ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-241-15a 13-241-15b |
गुरुशुश्रूषणपरा देवब्राह्मणपूजकाः। कृजज्ञाः कृतविद्याश्च ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-241-16a 13-241-16b |
जितेन्द्रिया जितक्रोधा जितमानमदाः स्मृताः। लोभमात्सर्यहीना ये ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-241-17a 13-241-17b |
निर्मा निरहङ्कारः सानुक्रोशाः स्वबन्धुषु। दीनानुकम्पिनो नित्यं ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-241-18a 13-241-18b |
ऐहिकेन तु वृत्तेन पारत्रमनुमीयते। एवंविधा नरा लोके जीवन्तः स्वर्गगामिनः।। | 13-241-19a 13-241-19b |
यदन्यच्च शुभं लोके प्रजानुग्रहकारि च। पशवश्चैव वृक्षाश्च प्रजानां हितकारिणः। तादृशान्देवपक्षस्थानिति विद्धि शुभानने।। | 13-241-20a 13-241-20b 13-241-20c |
शुभाशुभप्रयं लोके सर्वं स्थावरजङ्गमम्। दैवं शुभमिति प्राहुरासुरं चाशुभं प्रिये।। | 13-241-21a 13-241-21b |
।। इति श्रीमन्यहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि एकचत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 241 ।। |
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