महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-066
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भीष्मेण युधिष्ठिरम्प्रति मानवेषु पूज्यताप्रयोजकगुणप्रतिपादककृष्णनारदसंवादानुवादः।। 1 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 13-66-1x |
के पूज्या वै त्रिलोकेऽस्मिन्मानवा भरतर्पभ। विस्तरेण तदाचक्ष्व न हि तृप्यामि कथ्यतः।। | 13-66-1a 13-66-1b |
भीष्म उवाच। | 13-66-2x |
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्। नारदस्य च संवादं वासुदेवस्य चोभयोः।। | 13-66-2a 13-66-2b |
नारदं प्राञ्जलिं दृष्ट्वा पूजयानं द्विजर्षभान्। केशवः परिपप्रच्छ भगवन्क्रान्नमस्यमि।। | 13-66-3a 13-66-3b |
बहुमानपरस्तेषु भगवन्यान्नमस्यसि। शक्यं चेच्छ्रोतुमस्माभिर्ब्रूह्येतद्धर्मवित्तम।। | 13-66-4a 13-66-4b |
नारद उवाच। | 13-66-5x |
शृणु गोविन्द यानेतान्पूजयाम्यरिमर्दन। त्वत्तोऽन्यः कः पुमाँल्लोके श्रोतुमेतदिहार्हति।। | 13-66-5a 13-66-5b |
वरुणं वायुमादित्यं पर्जन्यं जातवेदसम्। स्थाणु स्कन्दं महालक्ष्मीं विष्णुं ब्रह्माणमेव च।। | 13-66-6a 13-66-6b |
वाचस्पतिं चन्द्रमसमपः पृथ्वीं सरस्वतीम्। सततं ये नमस्यन्ति तान्नमस्याम्यहं विभो।। | 13-66-7a 13-66-7b |
तपोधनान्वेदविदो नित्यं वेदपरायणान्। महार्हान्वृष्णिशार्दूल सदा सम्पूजयाम्यहम्।। | 13-66-8a 13-66-8b |
अभुक्त्वा देवकार्याणि कुर्वते येऽविकत्थनाः। सन्तुष्टाश्च क्षमायुक्तास्तान्नमस्याम्यहं विभो।। | 13-66-9a 13-66-9b |
सम्यग्यजन्ति ये चेष्टीः क्षान्ता दान्ता जितेन्द्रियाः। सत्यं धर्मं क्षितिं गाश्च तान्नमस्यामि यादव।। | 13-66-10a 13-66-10b |
ये वै तपसि वर्तन्ते वने मूलफलाशनाः। असञ्चयाः क्रियावन्तस्तान्नमस्यामि यादव।। | 13-66-11a 13-66-11b |
ये भृत्यभरणे शक्ताः सततं चातिथिव्रताः। भुञ्जते देवशेषाणि तान्नमस्यामि यादव।। | 13-66-12a 13-66-12b |
ये वेद प्राप्य दुर्धर्षा वाग्मिनो ब्रह्मचारिणः। याजनाध्यापने युक्ता नित्यं तान्पूजयाम्यहम्।। | 13-66-13a 13-66-13b |
प्रसन्नहृदयाश्चैव सर्वसत्वेषु नित्यशः। अपृष्ठतापान्स्वाध्याये युक्तास्तान्पूजयाम्यहम्।। | 13-66-14a 13-66-14b |
गुरुप्रसादे स्वाध्याये यतन्तो ये स्थिरव्रताः। शुश्रूषवोऽनसूयन्तस्तान्नमस्यामि यादव।। | 13-66-15a 13-66-15b |
सुव्रता मुनयो ये च ब्राह्मणाः सत्यसङ्गराः। वोढारो हव्यकव्यानां तान्नमस्यामि यादव।। | 13-66-16a 13-66-16b |
भैक्षचर्यासु निरताः कृशा गुरुकुलाश्रयाः। निःसुखा निर्धना ये तु तान्नमस्यामि यादव।। | 13-66-17a 13-66-17b |
निर्ममा निष्प्रतिद्वन्द्वा निष्ठिता निष्प्रयोजनाः। ये वेदं प्राप्य दुर्धर्षा वाग्मिनो ब्रह्मवादिनः।। | 13-66-18a 13-66-18b |
अहिंसानिरता ये च ये च सत्यव्रता नराः। दान्ताः शमपराश्चैव तान्नमस्यामि केशव।। | 13-66-19a 13-66-19b |
देवतातिथिपूजायां युक्ता ये गृहमेधिनः। कपोतवृत्तयो नित्यं तान्नमस्यामि यादव।। | 13-66-20a 13-66-20b |
येषां त्रिवर्गः कृत्येषु वर्तते नोपहीयते। शिष्टाचारप्रवृत्ताश्च तान्नमस्याम्यहं सदा।। | 13-66-21a 13-66-21b |
ब्राह्मणाः श्रुतसम्पन्ना ये त्रिवर्गमनुष्ठिताः। अलोलुपाः पुण्यशीलास्तान्नमस्यामि केशव।। | 13-66-22a 13-66-22b |
`अवन्ध्यकाला येऽलुब्धास्त्रिवर्गे साधनेषु च। विशिष्टाचारयुक्ताश्च नारायण नमामि तान्।।' | 13-66-23a 13-66-23b |
अब्भक्षा वायुभक्षाश्चक सुधाभक्षाश्च ये सदा। व्रतैश्च विविधैर्युक्तास्तान्नमस्यामि माधव।। | 13-66-24a 13-66-24b |
अयोनीनग्नियोनींश्च ब्रह्मयोनींस्तथैव च। सर्वभूतात्मयोनींश्च तान्नमस्याम्यहं सदा।। | 13-66-25a 13-66-25b |
नित्यमेतान्नमस्यामि कृष्ण लोककरानृषीन्। लोकज्येष्ठान्कुलज्येष्ठांस्तमोघ्नँल्लोकभास्करान्।। | 13-66-26a 13-66-26b |
तस्मात्त्वमपि वार्ष्णेय द्विजान्पूजय नित्यदा। पूजिताः पूजनार्हा हि सुखं दास्यन्ति तेऽनघ।। | 13-66-27a 13-66-27b |
अस्मिँल्लोके सदा ह्येते परत्र च सुखप्रदाः। चरन्ते मान्यमाना वै प्रदास्यन्ति सुखं तव।। | 13-66-28a 13-66-28b |
ये सर्वातिथयो नित्यं गोषु च ब्राह्मणेषु च। नित्यं सत्ये चाभिरता दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 13-66-29a 13-66-29b |
नित्यं शमपरा ये च तथा ये चानसूयकाः। नित्यस्वाध्यायिनो ये च दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 13-66-30a 13-66-30b |
सर्वान्देवान्नमस्यन्ति य चैकं वेदमाश्रिताः। श्रद्दधानाश्च दान्ताश्च दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 13-66-31a 13-66-31b |
तथैव विप्रप्रवरान्नमस्कृत्य यतव्रताः। भवन्ति ये दानरता दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 13-66-32a 13-66-32b |
तपस्विनश्च ये नित्यं कौमारब्रह्मचारिणः। तपसा भावितात्मानो दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 13-66-33a 13-66-33b |
देवतातिथिभृत्यानां पितॄणां चार्चने रताः। शिष्टान्नभोजिनो ये च दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 13-66-34a 13-66-34b |
अग्निमाधाय विधिवत्प्रणता धारयन्ति ये। प्राप्तः सोमाहुतिं चैव दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 13-66-35a 13-66-35b |
मातापित्रोर्गुरुषु च सम्यग्वर्तन्ति ये सदा। यथा त्वं वृष्णिशार्दूलेत्युक्त्वैवं विरराम सः।। | 13-66-36a 13-66-36b |
तस्मात्त्वमपि कौन्तेय पितृदेवद्विजातिथीन्। सम्यक्पूजयसे नित्यं गतिमिष्टामवाप्स्यसि।। | 13-66-37a 13-66-37b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि षट्षष्टितमोऽध्यायः।। 66 ।। |
13-66-1 मानवैर्भरतर्षभेति झ.थ.ध.पाठः।। 13-66-4 तेषु मानवेषु बहुमानपरः सन् कान्नमस्यप्तीति योज्यम्।। 13-66-8 महार्हान् महान् अर्हः पूजा येषाम्, अतिपूज्यानित्यर्थः।। 13-66-9 अविकत्थनाः श्लाघाहीनाः।। 13-66-10 सत्यं धर्मं च यजन्ति पूजयन्ति। क्षितिं गाश्च यजन्ति ब्राह्मणेभ्यः प्रयच्छन्ति। यज देवपूजासङ्गतिकरणदानेषु। सस्यं धनं क्षितिमिति थ.ध पाठः।। 13-66-14 आपृष्ठतापान् यावन्मध्याह्नम्।। 13-66-15 स्वाध्याये ब्रह्मयज्ञे मन्त्रजपे वा।। 13-66-18 निर्ह्रीका निष्प्रयोजनाः इति झ.पाठः। निर्ह्रीकाः दिग्म्बराः।। 13-66-20 कपोतवृत्तयः कणश आदाय ये सङ्ग्रहं न कुर्वन्तीत्यर्थः।। 13-66-21 त्रिवर्गो धर्मार्थकामाः। कृत्येषु कर्तुं योग्येषु कर्मसु वर्तते उत्तममध्यमाधमभावेन वर्तते नतु हीयते अधममध्यमोत्तमभावेनेत्यर्थः।। 13-66-24 सुधा वैश्वदेवशेषः।। 13-66-25 अयोनीन् अकृतदारान्। अग्नियोनीन् दाराग्निहोत्रयुतान्। ब्रह्मणो वेदस्य योनीन् आश्रयभूतान्। अब्योनीनग्नियोनींश्चेति थ.ध. पाठः।। 13-66-26 लोकज्येष्ठाञ्ज्ञाननिष्ठानिति थ.ध. पाठः।। 13-66-31 स्वाध्याये सर्वे यज्ञा अन्तर्भवन्तीत्यर्थः।।
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