महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-153
← अनुशासनपर्व-152 | महाभारतम् त्रतयोदशपर्व महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-153 वेदव्यासः |
अनुशासनपर्व-154 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति सकलसेव्यताप्रयोजकगुणप्रतिपादकेन्द्रमातलिसंवादानुवादः।। 1 ।।
`युधिष्ठिर उवाच। | 13-153-1x |
केषां देवा महाभागाः सन्नमन्ते महात्मनाम्। लोकेऽस्मिंस्तनृषीन्सर्वञ्श्रोतुमिच्छामि सत्तम।। | 13-153-1a 13-153-1b |
भीष्म उवाच। | 13-153-2x |
इतिहासमिमं विप्राः कीर्तयन्ति पुराविदः। अस्मिन्नर्थे महाप्राज्ञास्तं निबोध युधिष्ठिर।। | 13-153-2a 13-153-2b |
वृत्रं हत्वाऽप्युपावृत्तं त्रिदशानां पुरस्कृतम्। महेन्द्रमनुसम्प्राप्तं स्तूयमानं महर्षिभिः।। | 13-153-3a 13-153-3b |
श्रिया परमया युक्तं रथस्थं हरिवाहनम्। मातलिः प्राञ्जलिर्भूत्वा देवमिन्द्रमुघाच ह।। | 13-153-4a 13-153-4b |
नमस्कृतानां सर्वेषां भगवंस्त्वं पुरस्कृतः। येषां लोके नमस्कुर्यात्तान्ब्रवीतु भवान्मम।। | 13-153-5a 13-153-5b |
तस्य तद्वचनं श्रुत्वा देवराजः शचीपतिः। यन्तारं परिपृच्छन्तं तमिन्द्रः प्रत्युवाच सः।। | 13-153-6a 13-153-6b |
धर्मं चार्थं च कामं च येषां चिन्तयतां मतिः। नाधर्मे वर्तते नित्यं तान्नमस्यामि मातले।। | 13-153-7a 13-153-7b |
ये रूपगुणसम्पन्नाः प्रमदाहृदयंगमाः। निवृत्ताः कामभोगेषु तान्नमस्यामि मातले।। | 13-153-8a 13-153-8b |
स्वेषु भोगेषु सन्तुष्टाः सुवाचो वचनक्षमाः। अमानकामाश्चार्घार्हास्तान्नमस्यामि मातले।। | 13-153-9a 13-153-9b |
धनं विद्यास्तथैश्वर्यं येषां न चलयेन्मतिम्। चलितां ये निगृह्णन्ति तान्नित्यं पूजयाम्यहम्।। | 13-153-10a 13-153-10b |
इष्टैर्दारैरुपेतानां शुचीनामग्निहोत्रिणाम्। चतुष्पादकुटुम्बानां मातिले प्रणमाम्यहम्।। | 13-153-11a 13-153-11b |
महतस्तपसा प्राप्तौ धनस्य विपुलस्य च। कत्यागस्तस्य न वै कार्यो योऽऽत्मानं नावबुध्यते।। | 13-153-12a 13-153-12b |
येषामर्थस्तथा कामो धर्ममूलविवर्धितः। धर्मार्थौ तस्य नियतौ तान्नमस्यामि मातले।। | 13-153-13a 13-153-13b |
धर्ममूलार्थकामानां ब्राह्मणानां गवामपि।। पतिव्रतानां नारीणां प्रणामं प्रकरोम्यहम्।। | 13-153-14a 13-153-14b |
ये भुक्त्वा मानुषान्भोगान्पूर्वे वयसि मातले। तपसा स्वर्गमायान्ति शश्वत्तान्पूजयाम्यहम्।। | 13-153-15a 13-153-15b |
असंभोगान्नचासक्तान्धर्मनित्याञ्जितेन्द्रियान्। संन्यस्तानचलप्रख्यान्मनसा पूजयामि तान्।। | 13-153-16a 13-153-16b |
ज्ञानप्रसन्नविद्यानां निरूढं धर्ममीप्सितम्। परैः कीर्तितशौचानां मातले तान्नमाम्यहम्'।। | 13-153-17a 13-153-17b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि त्रिपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः।। 153 ।। |
अनुशासनपर्व-152 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-154 |